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शिक्षा पर गठित संसदीय समिति ने सरकारी स्कूलों में आठवीं कक्षा तक नो डिटेंशन पॉलिसी पर दोबारा विचार करने का सुझाव दिया है. संसद में पेश रिपोर्ट में समिति ने बताया है कि 8वीं कक्षा तक फेल नहीं करने की नीति से लर्निंग स्तर में गिरावट आ रही है और इसका सबसे ज्यादा नुकसान कमजोर परिवार के छात्रों को हो रहा है.
यूपीए सरकार के कार्यकाल में भी संसदीय समिति ने नो डिटेंशन पॉलिसी के बारे में यही सलाह दी थी. शिक्षा का अधिकार कानून के तहत इसे लागू किया गया था, लेकिन स्टूडेंट्स, पैरेंट्स और टीचर्स का एक बड़ा तबका इसके खिलाफ है और इसे बदलने की मांग कर रहा है.
समिति ने कम्यूनिटी कॉलेज बंद करने के लिए यूजीसी की आलोचना भी की है . समिति ने डिस्टेंस एजुकेशन काउंसिल को वैधानिक दर्जा देने की मांग भी की है.
क्या है नो डिटेंशन पॉलिसी:
बच्चों के अंदर से एग्जाम में पास और फेल होने के मानसिक दबाव को कम करने के लिए सरकार ने नो डिटेंशन पॉलिसी बनाई थी. इसके तहत बच्चों को क्लास 8 तक फेल नहीं करने और पढ़ाई में कमजोर होने के आधार पर स्कूल से नहीं निकाले जाने पर जोर दिया गया था.