
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने करीब 9 साल 5 माह के बाद आरुषि हत्याकांड में आरोपी बनाए गए उसके पिता राजेश तलवार और मां नूपुर को बरी कर दिया. इस दिवाली पर तलवार दंपति को एक बड़ी सौगात मिली है. कह सकते हैं कि सालों बाद जलवायु विहार के मकान संख्या- डी-5 में इस साल दिवाली के दीप जलेंगे.
कई साल के लंबे इंतजार के बाद तलवार दंपति को राहत मिली है. शुक्रवार की सुबह उन्होंने जेल में ठीक से नाश्ता किया. नाश्ते में उन दोनों ने पूड़ी और आलू की सब्जी खाई. बीती रात दोनों खुशी की वजह से ठीक से सोए भी नहीं. जेल सूत्रों के मुताबिक दोनों अपनी-अपनी बैरक में चहल कदमी करते नजर आए.
मई 2008 में आरुषि की हत्या के बाद से ही तलवार दंपति को चैन नहीं मिला. पहले पुलिस इस डबल मर्डर केस को घुमाती रही और फिर रही सही कसर सीबीआई ने पूरी कर दी. गाजियाबाद की सीबीआई कोर्ट ने इस मामले पर लंबी सुनवाई करने बाद 26 नवंबर, 2013 के दिन तलवार दंपति को उम्रकैद की सजा सुनाई थी.
जिसके बाद के तलवार दंपति ने सीबीआई कोर्ट के फैसले के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील की थी. इससे पहले साल 2012 में डबल मर्डर के चार साल बाद आरुषि की मां नूपुर तलवार को कोर्ट में सरेंडर करना पड़ा और फिर जेल जाना पड़ा.
26 नवंबर 2013 को सीबीआई कोर्ट का फैसला आया तो सीबीआई के विशेष न्यायाधीश एस. लाल ने अपने 208 पन्नों के फैसले में आरोपी राजेश और नूपुर तलवार को दोषी करार दे दिया. यहां से पूरा मामला ही बदल गया.
लेकिन इन सबके बावजूद भी तलवार दंपति ने हार नहीं मानी. जनवरी 2014 में आरुषि के पिता राजेश और मां नूपुर तलवार ने सीबीआई कोर्ट के फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी. तीन साल तक मामले पर सुनवाई चलती रही.
अगस्त 2017 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि तलवार दंपति की अपील को दोबारा सुनेंगे. फिर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मामले पर सुनवाई करने के बाद सितंबर 2017 यानी पिछले माह आरुषि हत्याकांड में फैसला सुरक्षित किया.
और अब गुरुवार यानी 12 अक्टूबर 2017 को हाई कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी के बाद आरुषि-हेमराज मर्डर केस में राजेश तलवार और नूपुर तलवार को हत्या के आरोप से बरी कर दिया.
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि तलवार दंपति ने आरुषि का कत्ल नहीं किया. इसलिए दोनों को रिहा कर दिया जाए. पर क्या इस रिहाई से पिछले नौ सालों के गम और जख्म मिट जाएंगे? अपनी ही बेटी के कत्ल का संगीन इल्जाम सिर पर लिए जी रहे मां-बाप क्या इस सदमे से कभी उबर पाएंगे?
सवाल उन चार -पांच साल की कैद का नहीं है जो तलवार दंपत्ति ने जेल में काटी. ये तो कोई सज़ा नहीं थी. उस सज़ा के आगे जो अपनी ही बेटी के कातिल होने की तोहमत तलवार दंपति ने झेली, उस सज़ा की टीस उम्र भर नहीं जाने वाली.