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बीजेपी पूर्वोत्तर में महज चार साल में कहां से कहां पहुंच गई?

बीजेपी ने महज चार साल में उत्तर भारत ही नहीं, बल्कि पूर्वोत्तर में भी एक-एक करके सभी राज्यों में सरकार बनाने का काम किया है. मोदी के सत्ता में आने से पहले पूर्वोत्तर के किसी भी राज्य में बीजेपी की सरकार नहीं थी. पर मौजूदा समय में ज्यादातर राज्यों में बीजेपी की सरकारें हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 03 मार्च 2018,
  • अपडेटेड 7:01 PM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी का राजनीति आधार लगातार फैल रहा है. बीजेपी ने महज चार साल में उत्तर भारत ही नहीं, बल्कि पूर्वोत्तर के कई राज्यों में कमल खिलाया है. एक-एक करके पूर्वोत्तर के कई राज्यों में बीजेपी की सरकार बनी है. मोदी के सत्ता में आने से पहले पूर्वोत्तर के किसी भी राज्य में पार्टी की सरकार नहीं थी. पर मौजूदा समय में ज्यादातर राज्यों में बीजेपी की सरकार है.

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पूर्वोत्तर के तीन विधानसभा चुनाव के नतीजे आए. इनमें से त्रिपुरा में बीजेपी की शानदार प्रदर्शन करके सत्ता के सिंहासन पर विराजमाना होने जा रही है. वहीं नगालैंड में बीजेपी ने कुछ सीटों पर पिछड़ जाने के चलते सत्ता में नहीं पहुंच सकी है, पर एनपीएफ को कांटे की टक्कर दी है. वहीं मेघालय में बीजेपी अपना खाता खोलने में कामयाब रही है. बीजेपी के लिए ये जीत भले ही राजनीतिक रूप से छोटी हो पर वैचारिक रूप से काफी बड़ी है.

त्रिपुरा में 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी डेढ़ फीसदी वोट के साथ एक सीट भी नहीं जीत सकी थी. पर इस बार प्रचंड जीत के साथ 25 साल की सत्ता को पलट दिया था. इसके अलावा नगालैंड में बीजेपी ने महज साल पहले बनी एनडीपीपी के साथ गठबंधन करके चुनावी नतीजों के समीकरण के बदल दिए हैं. 15 साल से नगालैंड की सत्ता पर विराजमान नगा पीपुल्स फ्रंट को कड़ा मुकाबला दिया है.

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पूर्वोत्तर में बीजेपी की जड़े जमाने में संघ की अहम भूमिका मानी जाती है. 2014 से पहले पूर्वोत्तर में बीजेपी का आधार विहीन थी. बीजेपी के लिए पूर्वोत्तर की सियासी जमीन ऊसर जैसी थी, जिस पर संघ की मेहनत और नरेंद्र मोदी की रणनीति ने कमल खिलाने का काम किया है.

देश की सत्ता में मोदी सरकार के आने के बाद बीजेपी ने पूर्वोत्तर में अपने पैर पसारने के लिए संघ से बीजेपी में आए पार्टी महासचिव राम माधव को प्रभारी बनाया. कांग्रेस से नाता तोड़कर बीजेपी में शामिल होने वाले हेमंत बिस्व सरमा पूर्वोत्तर में पार्टी के खेवनहार बने. इन दोनों नेताओं के अलावा पार्टी ने केंद्रीय मंत्रियों को पूर्वोत्तर के दौरे पर भेजा. इसके अलावा बूथ स्तर पर लाखों पन्ना प्रमुख को जिम्मेदारी सौंपी गई. इन सबकी मेहनत का नतीजा है कि आज पूर्वोत्तर के आधे से ज्यादातर राज्यों में बीजेपी की सरकार बनी है.

बीजेपी ने पहले पूर्वोत्तर में पहली जीत असम में हासिल की. असम की जीत दिलाने में हेमंत बिस्व सरमा की अहम भूमिका रही है. बता दें कि 2006 तक असम के पूर्व सीएम तरुण गोगोई के राइट हैंड कहे जाते थे. यही नहीं, लोग उन्हें गोगोई का उत्तराधिकारी भी समझते थे. वक्त ने ऐसी सियासी करवट ली कि दोनों के रिश्तों में 2010 में दरार आ गई. इसके बाद हेमंत ने कांग्रेस को अलविदा कह दिया. इसके बाद 2015 में वे बीजेपी में शामिल होकर पूरे नॉर्थ ईस्ट में पार्टी का चेहरा बन गए. इतना ही नहीं नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (बीजेपी के नेतृत्व वाला गैर-कांग्रेसी पार्टियों का गठबंधन) के संयोजक बनाए गए.

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पूर्वोत्तर में बीजेपी की ऐसी जड़े जमायी हैं कि पार्टी एक के बाद एक राज्य का सियासी जंग फतह कर रही है.  बीजेपी पूर्वोत्तर के अरुणाचल, असम, मणिपुर के बाद अब त्रिपुरा में सरकार बनाने जा रही है. नगालैंड में बीजेपी गठबंधन ने एनपीएफ को कांटे की टक्टर दी है. कुछ सीटों से पिछड़ जाने के चलते सत्ता से दूर हो गई. मेघालय में बीजेपी ने 2 सीटें जीतकर खाता खोला है.

पूर्वोत्तर में कांग्रेस अपना आधार खोती जा रही है. मेघालय में कांग्रेस 29 से घटकर 20 पर आ गई है. राज्य में एनपीपी किंगमेकर की भूमिका में है. कांग्रेस को सत्ता से दूर रखने के लिए बीजेपी एनपीपी और निर्दलीय के साथ सरकार बना सकती है. इस तरह कांग्रेस पूर्वोत्तर में सिर्फ मिजोरम तक सीमित हो सकती है.

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