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नोटबंदी: राह न सूझी तो बीजेपी ने बदल दी दिशा

तीन सप्ताह बाद भी नोटबंदी पर बीजेपी को कोई राह नहीं सूझ रही. सरकार और पार्टी की ओर से काले धन के खिलाफ जंग का दावा अब कैशलेस इकोनॉमी की बहस की दिशा में मुड़ा.

पीएमओ क्लासः पीएमओ के कर्मचारियों को कैशलेस का पाठ पढ़ाते पीएम के प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्र पीएमओ क्लासः पीएमओ के कर्मचारियों को कैशलेस का पाठ पढ़ाते पीएम के प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्र
संतोष कुमार
  • नई दिल्ली,
  • 09 दिसंबर 2016,
  • अपडेटेड 12:30 PM IST

शहरों में तो दुष्प्रचार थम जाएगा, लेकिन गांवों में यह लंबा नहीं टिक पाए, इसकी चिंता कीजिए." बीजेपी संसदीय दल की बैठक में 29 नवंबर को राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की यह टिप्पणी पार्टी और सरकार के जेहन में नोटबंदी की सफलता को लेकर चल रही उधेड़बुन का हिस्सा है. इससे ठीक एक दिन पहले ही राष्ट्रीय पदाधिकारियों और राज्यों से आए प्रतिनिधियों के साथ पार्टी मुख्यालय में हुई बैठक में शाह ने इसे सबसे बड़ा अभियान बताते हुए सफल बनाने की बात कही थी. दरअसल, बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व अभी यह अंदाज नहीं लगा पाया है कि नोटबंदी का ऊंट किस करवट बैठेगा. इसकी सफलता को लेकर आशंकित बीजेपी अब उस दिशा में फोकस कर रही है, जहां उसे सर्वाधिक नुक्सान का डर सता रहा है. इसलिए संसदीय दल की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से सांसदों को दो-टूक निर्देश दिया गया कि वे सोमवार (5 दिसंबर) तक अपने क्षेत्र की पंचायतों, नगरपालिकाओं में जाएं और व्यापारियों से मिलकर उन्हें खुद डिजिटल ट्रांजैक्शन के बारे में समझाएं.

बीजेपी को एहसास हो रहा है कि नोटबंदी से अभी परेशानी का माहौल तो है लेकिन वह अभी गुस्से में तब्दील नहीं हुआ है. लेकिन परेशानी बढ़ी तो गांवों में और 60 साल से भी पुराने सर्वाधिक प्रतिबद्ध मतदाता वर्ग यानी छोटे-मध्यम व्यापारियों में प्रतिक्रिया उसके लिए घातक साबित हो सकती है.

इंस्पेक्टर राज का सता रहा डर 
बीजेपी की आशंकाओं के पीछे वजह है. नोटबंदी की प्रक्रिया के दौरान जिस तरह कुछ बैंक अधिकारियों की मिलीभगत से घपले के उदाहरण सामने आ रहे हैं, उसमें क्या सरकार इस बात की गारंटी ले सकती है कि काले धन वालों पर सख्ती के दौरान आयकर, राजस्व, कस्टम आदि विभाग के अधिकारी कुछ बैंककर्मियों के आचरण से कहीं अधिक भीषण भ्रष्टाचार का उदाहरण नहीं प्रस्तुत करेंगे? बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं, ''मोदी की भ्रष्टाचार से लडऩे की मंशा और मकसद भले कितना भी ईमानदार और प्रतिबद्ध हो लेकिन उसको अमल में लाने की मशीनरी यानी उच्च नौकरशाही से बाबुओं तक में जो कांग्रेस के शासन में भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे रहने की मनोवृत्ति है, वह रातोरात कैसे बदल जाएगी?" वे यह भी सवाल उठाते हैं कि कौन इस बात की गारंटी दे सकता है कि निचले स्तर पर अधिकारियों की मनमानी और बाबुओं का भ्रष्टाचार मोदी की ईमानदार पहल को त्रासदीपूर्ण नहीं बना देगा?

ऐसे में 2.5 लाख रु. जमा करने वाले से लेकर हर खाते को जांच के दायरे में लाने से गरीब और निर्धन तबके के उद्वेलित होने का खतरा रहेगा. जांच में आयकर अधिकारी को कई तरह की असीम शक्तियां मिल जाएंगी और अदालती चक्कर काटने के बजाए लोग रिश्वत का सहारा लेकर छुटकारा पाना चाहेंगे. सुप्रीम कोर्ट के वकील और आइटी कानून मामलों के जानकार विराग गुप्ता तो इसे सीधा-सीधा इंस्पेक्टर राज करार देते हैं. बीजेपी को भी लगता है कि ऐसा हुआ तो जन धन योजना के बाद से मोदी सरकार जिन गरीबों को भविष्य के वोट बैंक के तौर पर देख रही है, अगर सरकार ने फूंक-फूंक कर कदम नहीं रखा तो काले धन की लड़ाई सफल हो या न हो, वर्तमान और भावी, दोनों वोट बैंक पर संकट के काले बादल जरूर छा सकते हैं. पर बीजेपी के राष्ट्रीय सचिव श्रीकांत शर्मा का दावा है कि ''नोटबंदी सिर्फ पार्टी का ही नहीं, जनता का आंदोलन बन गया है. दिक्कतों के बावजूद लोग मान रहे हैं कि यह मुहिम गांव-गरीब के लिए ही है."

बीजेपी को लगता है कि जिस तरह बैंकों में तेजी से राशि जमा हुई है, उससे कम से कम तीन लाख करोड़ रु. का कालाधन जमा न हो पाने की उम्मीद पर पानी फिर सकता है. ऐसे में काले धन के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक कही जाने वाली मुहिम को झटका लगेगा. इसलिए पार्टी अब कैशलेस इकोनॉमी का राग छेड़ चुकी है. मोदी ने मन की बात से बहस का रुख मोड़ा तो 27 नवंबर की शाम को बीजेपी मुख्यालय में कर्मचारियों को कैशलेस ट्रांजैक्शन का प्रशिक्षण दिया गया. 28 नवंबर को पीएम आवास पर कर्मचारियों को प्रशिक्षण की पाठशाला खुद पीएम के प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्र और अतिरिक्त प्रधान सचिव पी.के. मिश्र ने लगाई. लेकिन सवाल है कि सिस्टम इसके लिए कितना तैयार है.

कॉल ड्रॉप से कैशलेस का सफर?
काले धन के बजाए अब कैशलेस इकोनॉमी की मुहिम से यह सवाल उठ रहा है कि जो सरकार ढाई साल में मोबाइल नेटवर्क को दुरुस्त कर कॉल ड्रॉप की समस्या दूर नहीं कर पाई, अब कैसे एक झटके में इकोनॉमी को कैशलेस कर देगी. गुप्ता कहते हैं, ''कॉल ड्रॉप की समस्या आज भी बनी हुई है, जबकि इसी वजह से केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद का यह विभाग छिन चुका है. बीजेपी के पूर्व महासचिव गोविंदाचार्य कॉल ड्रॉप पर कंपनियों को 57,000 करोड़ रु. की खुली छूट देने का आरोप लगाते हुए चिट्ठी लिख चुके हैं, लेकिन प्रसाद ने जवाब तक नहीं दिया." वे यह भी कहते हैं कि आज का कानून कैश इकोनॉमी के लिहाज से है. कैशलेस सुविधा में आज भी  उपभोक्ता असहाय महसूस करता है. वे कहते हैं, ''बैंक खाता हैक होने, गलत मोबाइल बिल आने, साइबर अपराध को लेकर उपभोक्ताओं को राहत देने वाले सशक्त कानून नहीं हैं. डाटा की सुरक्षा का कानून नहीं है, गांवों में बिजली, इंटरनेट जैसी समस्या बनी हुई है. ऐसे में मुकम्मल व्यवस्था के बिना कैशलेस इकोनॉमी की बात करना हसीन सपने जैसा ही है." बीजेपी के ही नेता मानते हैं कि तीन बड़ी मंदी को भारत ने झेल लिया तो उसकी वजह कैश इकोनॉमी थी, कैशलेस नहीं.

नोटबंदी पर आशंकाओं की वजह से बीजेपी की सरकार ने चतुराई के साथ काले धन की बहस की दिशा मोड़ी है. अगर आने वाले समय में उसकी आशंका को पुष्ट करने वाली रिपोर्ट सामने आई तो यूपी की चुनावी अधिसूचना से पहले ही सरकार टैक्स में राहत और किसी बड़े सामाजिक सेक्टर की योजना का ऐलान कर सकती है.

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