आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने 23 नवंबर को राष्ट्रीय कार्यकारिणी में अपना कार्यकाल एक साल बढ़वाने के बाद राजनैतिक रूप से महत्वपूर्ण दो घोषणाएं कीं. पहली यह कि आप 2019 के लोकसभा चुनाव की दौड़ में नहीं है. दूसरी यह कि पंजाब से उनके पास अच्छी खबर है. पार्टी पूरा ध्यान 2017 में राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव पर ही लगाएगी.
और हो भी क्यों न? पार्टी अपने जन्म स्थान दिल्ली का विधानसभा चुनाव जीतने के बाद से जिस कदर अंतरकलह से घिरी उसके बाद से केजरीवाल अच्छी खबरों के लिए तरस-से गए थे. शायद इसी कलह का असर था कि वे हरियाणा जैसे राज्य तक में विधानसभा चुनाव नहीं लड़ सके, जिसे लेकर पार्टी काफी आशान्वित थी. यही नहीं, बिहार चुनाव में महागठबंधन को नैतिक समर्थन देकर, उन्होंने यह जता दिया कि सब राज्यों में खुद जोर आजमाइश करने की बजाए वे तीसरी शक्तियों को समर्थन देने की रणनीति पर चलने वाले हैं. नीतीश कुमार के शपथ ग्रहण समारोह में गैर बीजेपी नेताओं की संगत और लालू प्रसाद यादव से गले लगने के बाद केजरीवाल अब सबसे जरखेज जमीन पंजाब में सियासी झाड़ू चलाने को तैयार हैं.
आखिर पंजाब ही तो लोकसभा चुनाव 2014 का ऐसा इकलौता राज्य था, जिसने सबको चौंकाते हुए आप को 4 लोकसभा सीटें दी थीं. धमाकेदार चुनावी आगाज करते हुए आप ने न सिर्फ 24.5 फीसदी वोट हासिल किए थे, बल्कि पंजाब की दो बड़ी शक्तियों शिरोमणि अकाली दल (बादल) और कांग्रेस के वोट बैंक में क्रमशरू 8 और 7 फीसदी की सेंध लगा दी थी.
पंजाब में पार्टी की तैयारियों की बानगी मालवा इलाके में नजर आती है. गांव-गांव में गुरमुखी लिपि में छपे आम आदमी पार्टी के पोस्टरों में मुस्कुराते हुए केजरीवाल नजर आने लगे हैं. इन इलाकों का किसान कपास की फसल में कीड़े लगने और धान के गिरे हुए दाम से हलकान है. अकालियों का राज्य की सत्ता में यह लगातार दूसरा कार्यकाल है और लोग उनसे उकताने लगे हैं. ऐसे में वे बदलाव की बात कर रहे हैं. एक तरफ उनके सामने कांग्रेस का आजमाया हुआ चेहरा है, जिसकी लगाम लोकसभा चुनाव में बीजेपी के दिग्गज अरुण जेटली को मात देने वाले पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के हाथों में आती दिख रही है. दूसरी तरफ उनके सामने आम आदमी पार्टी के रूप में उम्मीदों का ऐसा घोड़ा है, जिसका कोई सवार फिलहाल नजर नहीं आता.
दरअसल, लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी एक ऐसे दौर से गुजरी जिसमें उसे अपने चार में दो सांसदों को अनुशासनहीनता के आरोप में निलंबित करना पड़ा और बचे दो सांसदों में से एक भगवंत मान एक भोग में शराब पीकर जाने जैसे गंभीर आरोप के कारण बदनामी झेल रहे हैं. ऐसे में पार्टी ने अपनी पूरी ताकत पंजाब को जिलाए रखने में लगाई है. दिल्ली और दूसरे राज्यों के विश्वस्त सिपहसालार पंजाब के रण में झोंक दिए गए हैं. दिसंबर के अंत या जनवरी तक केजरीवाल खुद भी पंजाब का रुख कर सकते हैं. लेकिन इस रणनीति में पंजाब में भी बिहार की तरह ही स्थानीय और बाहरी का मुद्दा जोर मारने लगा है.
पार्टी के असंतुष्ट नेता प्रणव राय सवाल करते हैं, ''संगठन में बदलाव के बाद पार्टी का 80 फीसदी कार्यकर्ता घर बैठ गया है. 10 फीसदी हमारे साथ और 10 फीसदी पार्टी के साथ हैं. बहुत-से नेता जो आप के साथ आए थे, अब निष्क्रिय हो गए हैं और कांग्रेस में संभावनाएं तलाश रहे हैं.'' हालांकि पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता आशुतोष इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते. उनकी दलील है, ''पुराने लोगों को हटा दिया गया और नए लोगों को लाया गया, जैसी कोई बात नहीं है. जिन लोगों में संगठन चलाने की क्षमता है, उन लोगों को जिम्मेदारियां दी गई हैं. हर आदमी जो संगठन के अंदर है, वह संगठन चला पाए, यह जरूरी नहीं है. 117 विधानसभाओं के कार्यकर्ताओं के साथ व्यक्तिः बैठक की गई है. इसमें हुए फैसले के आधार पर ही लोगों को जिम्मेदारियां दी गई हैं.'' लेकिन लोगों को सिर्फ केजरीवाल दिख रहे हैं, आपका कोई पंजाबी चेहरा सामने नहीं है? बकौल आशुतोष, ''यह बात एक हद तक सही है. पंजाब के अंदर हमारा पहला काम था संगठन को मजबूत करना. छह महीने पहले तक पंजाब में हमारे चार सांसद जरूर थे, लोगों में उत्साह था, लेकिन वहां संगठन के स्तर पर बहुत ज्यादा गुटबाजी थी. ऐसे में पहली जिम्मेदारी यह थी कि संगठन के अंदर अनुशासन रोपित किया जाए और सही लोगों को जिम्मेदारी दी जाए. संगठन का काम काफी हद तक हो चुका है. लीडरशिप को आइडेंटीफाइ किया जा रहा है. चुनाव के समय यह सोचा जाएगा कि कौन आगे बढ़ सकता है.
पार्टी ने यहां की कमान राज्य के प्रभारी संजय सिंह को सौंप दी है. पार्टी सूत्रों की मानें तो संजय अब तक 3,000 किमी से ज्यादा की यात्रा कर चुके हैं. इसके अलावा अगस्त से 2 अक्तूबर तक पार्टी ने यहां 30 से ज्यादा जनसभाएं कीं. इस तरह से देखा जाए तो हर तीन से चार विधानसभा पर पार्टी अब तक एक-एक जनसभा कर चुकी है. संजय अगर प्रदेश का दौर कर रहे हैं तो पार्टी के नेता दुर्गेश पाठक संगठन का काम देख रहे हैं. कहने को सुच्चा सिंह छोटापुर पंजाब आप के राज्य समन्वयक हैं, लेकिन पदाधिकारियों की नियुक्ति में ज्यादा चलती संजय और दुर्गेश की ही है. पंजाब में बाहरियों की भरमार के सवाल पर छोटापुर कहते हैं, ''चुनाव तो पंजाब के लोगों को ही लडऩा है. रणनीति बनाने और संगठन में अपने अनुभव का लाभ देने के लिए अनुभवी लोगों को बुलाया गया है.''
—पार्टी अभी से चुनाव फंड जमा करने की रणनीति पर भी काम करने लगी है और उसकी नजर खास तौर पर कनाडा और अमेरिका के प्रवासी पंजाबियों पर है. पार्टी ने इस काम में आशुतोष और कुमार विश्वास को लगाया है. दोनों नेता करीब 20 दिन तक दोनों देशों का दौरा कर चुके हैं. यहां उन्होंने 200 से ज्यादा एनआरआइ पंजाबियों से मुलाकात की. पार्टी की कोशिश है कि जिस तरह विदेश में बैठे पंजाबियों ने लोकसभा चुनाव में उनकी मदद की थी, उसी तरह वे लोग विधानसभा चुनाव में भी पार्टी के साथ आएं. पार्टी इन लोगों से चंदा तो चाहती ही है, साथ ही अपने-अपने गांव और कस्बे में उनके व्यक्तिगत प्रभाव का लाभ भी उठाना चाहती है.
पार्टी यह भी चाहती है कि किसी तरह पंजाब में बेहतर प्रदर्शन कर वह वापस अपने राष्टीय एजेंडे पर लौटे, लेकिन पंजाब से पहले कम से कम आधा दर्जन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं. डेढ़ साल का वक्त भारत की भुरभुरी राजनैतिक जमीन के लिए बहुत लंबा वक्त है. इस बीच पार्टी को अपना घर संभालने के साथ दिल्ली में कुछ ऐसा करके दिखाना होगा, जो उसके नारों से मेल खाता हो.