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बीजेपी के लिए बोझ बनीं आनंदीबेन पटेल!

चुनाव के एक साल पहले बीजेपी को बोझ लगने लगीं आनंदीबेन पटेल. उन्हें मुख्यमंत्री की गद्दी से हटाने और पटेल वोटों को फिर अपने पाले में लाने का इरादा.

आनंदीबेन पटेल अपने निवास पर आनंदीबेन पटेल अपने निवास पर
उदय माहूरकर
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  • 07 जून 2016,
  • अपडेटेड 12:49 PM IST

इस बात को उन्होंने अफवाह बताकर खारिज कर दिया, मगर बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल को हटाने पर संजीदगी से विचार कर रहा है. यह उस बड़ी चुनावी रणनीति का हिस्सा है जो पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने 2017 में होने वाले गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए बनाई है.

सत्ता में कायम रहने के लिए नेतृत्व में बदलाव जरूरी
माना जा रहा है कि अगर बीजेपी को राज्य में सत्ता कायम रखनी है, तो नेतृत्व में बदलाव बेहद जरूरी है, खासकर उस वक्त जब पार्टी तकरीबन दो दशक से चली आ रही अपनी हुकूमत के खिलाफ सत्ता विरोधी रुझान का सामना कर रही है. उम्मीद है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जल्दी ही आनंदीबेन पटेल को हटाने के बारे में अंतिम फैसला लेंगे. 2014 में मोदी ने ही उन्हें गुजरात की मुख्यमंत्री के तौर पर चुना था. इस साल वे वैसे भी 75 साल की हो जाएंगी. इससे बीजेपी को उन्हें हटाने की एक वाजिब वजह भी मिल जाएगी, क्योंकि मोदी ने कैबिनेट मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों की यही अघोषित उम्र तय कर रखी है.

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नितिनभाई और भूपेंद्रसिंह हैं प्रबल दावेदार
राज्य के मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए प्रमुख दावेदारों में दो पटेल नेताओं के नाम हैं. इनमें स्वास्थ्य मंत्री नितिनभाई पटेल का नाम सबसे आगे है. उनके बाद शिक्षा मंत्री भूपेंद्रसिंह चूड़ास्मा का नाम है, जो राजपूत समुदाय से हैं. तीसरे संभावित के तौर पर वित्त और ऊर्जा मंत्री सौरभ पटेल का नाम लिया जा रहा है. हो सकता है आखिर में पलड़ा अप्रत्याशित तौर पर राज्य बीजेपी अध्यक्ष और परिवहन तथा जल आपूर्ति मंत्री विजय रूपानी के हक में झुक जाए. जैन समुदाय से आने वाले रूपानी को मोदी-शाह का पसंदीदा माना जाता है और आरएसएस का नेतृत्व भी उनके नाम पर रजामंद है.

माथुर कमेटी की रिपोर्ट से शुरू हुई आनंदीबेन को हटाने की मुहिम
आनंदीबेन को हटाने की मुहिम ओमप्रकाश माथुर की रिपोर्ट के साथ शुरू हुई. माथुर प्रधानमंत्री के नजदीकी सहायक और बीजेपी के राज्यसभा सदस्य हैं. वे गुजरात के प्रभारी महासचिव भी रह चुके हैं. उन्होंने 25 अप्रैल को पार्टी की हालत पर अंदरूनी रिपोर्ट सौंपी जिसमें कहा गया कि अगस्त 2015 में हार्दिक पटेल की अगुआई में चले पाटीदार आंदोलन के बाद आनंदीबेन की लोकप्रियता रसातल में चली गई. इस आंदोलन ने बीजेपी के सबसे मजबूत पटेल वोट बैंक को खत्म कर दिया. राज्य के कुल वोटों में पटेलों के 12-15 फीसदी वोट किसी भी पार्टी की तकदीर को बना या बिगाड़ सकते हैं. आनंदीबेन ने भीषण गलती यह की कि उन्होंने हार्दिक के खिलाफ तो राजद्रोह का मुकदमा ठोक दिया, मगर उन पुलिस अफसरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं की जिन्होंने आंदोलनरत पटेलों पर पिछले साल 25 अगस्त को अहमदाबाद में एक जनसभा के दौरान खूब लाठियां भांजी थीं.

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गांवों में आनंदीबेन के ख‍िलाफ गुस्सा
माथुर की रिपोर्ट के बाद आर्थिक तौर पर पिछड़े वर्गों के लिए 10 फीसदी आरक्षण का ऐलान किया गया. इसमें आर्थिक तौर पर पिछड़े वर्गों की परिभाषा में बड़ी बारीकी से सालाना 6 लाख रु. से कम कमाने वालों को शामिल किया गया था. इससे राज्य के ताकतवर पटेलों के भी इसके दायरे में आने की उम्मीद की गई. लेकिन गांव-देहातों में आनंदीबेन के खिलाफ उनका गुस्सा जस का तस कायम रहा.

पंचायत चुनावों में बीजेपी का खराब प्रदर्शन
पटेलों के आंदोलन से गलत ढंग से निपटने का फौरी अंजाम नवंबर 2015 के पंचायत चुनावों में बीजेपी के खराब प्रदर्शन की शक्ल में सामने आया. पार्टी 31 में से 23 जिला पंचायतें हार गई. गुजरात के ग्रामीण इलाकों में 18 सालों के ठहराव के बाद आए कांग्रेस के उभार को बीजेपी आने वाले दिनों का संकेत मान रही है. पार्टी का मानना है कि अगर वह मौजूदा मुख्यमंत्री की जगह किसी ऐसे शख्स को नहीं लाती है जो राज्य इकाई का कायापलट करके सत्ता की बागडोर संभाल सके, तो चीजें और बिगड़ सकती हैं.

माना जाता है कि आनंदीबेन राज्य के पार्टी नेताओं और पार्टी कार्यकर्ताओं दोनों से कट गई हैं और उनमें कड़े मुकाबले वाले विधानसभा चुनावों के दौरान पार्टी की अगुआई करने के लिए जरूरी चतुराई और सूझबूझ की कमी है. उन पर और उनके परिवार पर भ्रष्टाचार के आरोप भी हैं. हालांकि उनके मुख्यमंत्री काल के दौरान उनके या उनके परिवार के सदस्यों के खिलाफ भ्रष्टाचार का कोई सीधा आरोप नहीं है. उन पर जो आरोप है भी, वह 2010 के एक मामले से जुड़ा है, जिसमें उनकी सामाजिक कार्यकर्ता और महिला कारोबारी बेटी अनार पटेल के बिजनेस पार्टनर को गिर शेर अभयारण्य के बाहरी छोर पर जमीन आवंटित की गई थी.

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मोदी की छाया से नहीं उबर पाईं आनंदीबेन
आनंदीबेन की दिक्कत यह है कि उनकी शख्सियत में कोई निजी करिश्मा या जादू नहीं है और वे उस शख्स की छाया से कभी उबर नहीं पाईं जिसने उन्हें अपने वारिस के तौर पर चुना था. मोदी के मंत्रिमंडल में बतौर शिक्षा और राजस्व मंत्री उन्होंने अच्छा काम किया था. मुख्यमंत्री के तौर पर भी राजकाज के कुछ मामलों में उन्होंने अच्छा काम किया है. मसलन, स्वच्छ भारत मिशन के तहत देश भर में जो 13 लाख शौचालय बनाए गए हैं, उनमें से 37 फीसदी यानी 5,00,000 शौचालय गुजरात में हैं.

अपने पर लगे आरोपों को राजनीति से प्रेरित बताते हुए अहमदाबाद के कर्णावती क्लब में 30 मई को एक स्थानीय क्रिकेट मैच के आखिर में उन्होंने कहा, ''खेलों में और सियासत में भी आखिरी मिनट तक टिके रहना बेहद जरूरी है और तरक्की वही कर सकते हैं जो विचलित हुए बगैर टिके रहते हैं." हालांकि राज्य बीजेपी के नेता उन्हें हटाए जाने की बातों को बेबुनियाद बता रहे हैं. राज्य बीजेपी के अध्यक्ष विजय रूपानी ने कहा, ''ये सब अफवाहें हैं. फिलहाल हम 2017 के गुजरात चुनावों में बीजेपी की भारी जीत का खाका बनाने में जुटे हैं."

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