
यह बात जुलाई की शुरुआत की है, जब सीबीआइ की नवगठित विशेष जांच टीम (एसआइटी) कुछ बैंक अधिकारियों से मिलने मुंबई पहुंची थी. टीम विजय माल्या की कर्जदारी के मामले की जांच के सिलसिले में गई थी. ये अधिकारी बैंकों के उसी समूह के सदस्य थे, जिसने करीब 7,000 करोड़ रु. का कर्ज किंगफिशर एयरलाइंस कंपनी के मालिक को दिया था. वही कंपनी, जो अब डूब चुकी थी. अब इसकी वजह तो वे ही बेहतर बता सकते हैं कि आखिर वे इस बात को स्वीकार करने में इतना संकोच क्यों कर रहे थे कि कर्ज चुकाने को लेकर माल्या की नीयत खराब है. उनके लिए यह मामला ''नाकाम कारोबार" से ताल्लुक रखता है. एसआइटी ने ऐसे में उनसे ''स्वैच्छिक डिफॉल्टर" का मतलब पूछा, जिसका इस्तेमाल सबसे बड़े कर्जदाता भारतीय स्टेट बैंक ने माल्या के लिए नवंबर, 2015 में किया था. बैंकरों के पास इसका कोई सटीक जवाब नहीं था. इस पर एसआइटी के प्रमुख राकेश अस्थाना गरजते हुए बोले, ''अगर कोई व्यक्ति जान-बूझकर यह तय करता है कि उसे बैंक का कर्ज नहीं चुकाना है तो ऐसे व्यक्ति को स्वैच्छिक डिफॉल्टर कहा जाता है. क्या यह धोखाधड़ी नहीं है? आप लोगों ने माल्या के खिलाफ कोई एफआइआर दर्ज क्यों नहीं कराई?"
उन्होंने बैंकरों को चेतावनी दी कि यदि अब वे माल्या के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने में देरी करेंगे तो ऐसा माना जाएगा कि इसमें उनकी भी मिलीभगत है और उनके खिलाफ भी कार्रवाई होगी. उन्होंने आइडीबीआइ बैंक की सराहना की कि उसने जुलाई, 2015 में इस भगोड़े कारोबारी के खिलाफ आरोप दर्ज करवाए थे. इसके जवाब में एसबीआइ के एक उप-प्रबंध निदेशक की अध्यक्षता वाले बैंकरों के समूह ने कहा कि वे समूह की बैठक के बाद सीबीआइ को अपने फैसले से अवगत कराएंगे. हफ्ते भर के भीतर एक आपात बैठक की गई और एसबीआइ ने 27 जुलाई को माल्या के खिलाफ एफआइआर दर्ज करवाई.
राकेश अस्थाना के जांच टीम का प्रमुख बनने के बाद हुआ यह घटनाक्रम दिखलाता है कि कैसे माल्या के खिलाफ जांच में सीबीआइ ने अपना रुख बदला है. पिछले साल शुरू हुई यह जांच इस साल जून तक सुस्त पड़ी हुई थी, जिसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने चहेते अधिकारी अस्थाना को सीबीआइ में भेजकर एसआइटी का प्रमुख बना दिया. सीबीआइ में अतिरिक्त निदेशक के पद पर तैनात अस्थाना पूर्व में लालू प्रसाद यादव के चारा घोटाले और गोधरा कांड की जांच कर चुके हैं. इसके अलावा सूरत में पुलिस आयुक्त रहते हुए (2013-15) वे आसाराम बापू को जेल भिजवाने में अहम भूमिका निभा चुके हैं.
एसआइटी के आने के बाद मामले में अच्छी प्रगति हुई है और अनुमान के मुताबिक करीब चार दर्जन बैंक अधिकारी जांच के दायरे में हैं, जिन पर कार्रवाई की तलवार लटक रही है. सीबीआइ हर बैंक की जांच अलग से कर रही है. माल्या को कर्ज देने के लिए बैंकों पर सियासी दबाव बनाए जाने की बात भी की जा रही है. सूत्रों के मुताबिक बैंक अधिकारियों ने पहले ही यूपीए सरकार के दो बड़े मंत्रियों का नाम उगल दिया है, जिन्होंने माल्या को बैंक से कर्ज दिलाने में बहुत अहम भूमिका अदा की थी. पंद्रह सदस्यीय एसआइटी के गठन से पहले सीबीआइ की जांच बिखरी हुई थी क्योंकि इसके विभिन्न प्रकोष्ठ मामले के भिन्न आयामों की देखरेख में लगे हुए थे (मसलन, बैंकिंग वाला हिस्सा बैंकिंग और सिक्योरिटीज फ्रॉड विंग देख रहा था, भ्रष्टाचार वाले मामले की जांच भ्रष्टाचार निरोधक विभाग की देख रेख में हो रही थी).
अस्थाना के प्रमुख बनने के दो महीने के भीतर उनकी टीम ने बैंक के अधिकारियों के साथ 15 से ज्यादा बैठकें यह समझने के लिए की हैं कि माल्या को कैसे इस व्यवस्था में लाभ पहुंचाया गया. शुरुआत में तो बैंक अधिकारी बोलने में हिचक रहे थे. यहां तक कि माल्या के साथ सौदे के मूल कागजात देने में भी उन्होंने आनाकानी की थी क्योंकि 17 राष्ट्रीयकृत बैंकों के समूह ने माल्या को कर्ज देने के मामले में काफी रियायत बरती थी. इस समूह ने 2010 में माल्या के पहले के 4000 करोड़ रु. को कवर करने के लिए 2,500 करोड़ रु. के लोन की दूसरी किस्त मंजूर की थी. इसके लिए सुरक्षा के रूप में किंगफिशर के ब्रांड वैल्यू को स्वीकार किया गया था. कोई और भौतिक परिसंपत्ति इसमें शामिल नहीं थी. इसके पीछे एक यूके स्थित कंसल्टिंग एजेंसी ग्रान्ट थॉर्नटन द्वारा दी गई क्रेडिट रेटिंग को आधार बनाया गया था. जैसे ही कंपनी का यह कर्ज मंजूर किया गया, किंगफिशर की ब्रांड वैल्यू धराशाई हो गई.
रियायतों के दुरुपयोग की एक और मिसाल 2006 में आइडीबीआइ के केएफएल को दिए गए कर्ज के मामले में मिलती है, जब बैंक के सीएमडी योगेश अग्रवाल ने कर्ज की प्रक्रिया शुरू करने के लिए एक रविवार को बैंक खोल दिया था. केवल दो दिनों में किंगफिशर को यह लोन मिल गया था. केएफएल के नाम आइडीबीआइ का 950 करोड़ रु. से ज्यादा का कर्ज है और बैंक ने 2015 में दर्ज कराई एफआइआर में माल्या पर लोकसेवकों के साथ मिलकर बैंक के फंड की हेराफेरी, धोखाधड़ी और षडयंत्र का आरोप लगाया है. एसआइटी अब 17 अलग-अलग आरोप पत्र दायर करने की योजना बना रही है.
प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा यह आश्वस्त किए जाने के बाद कि इस मामले में कोई राजनीतिक दखलंदाजी नहीं की जाएगी, एसआइटी अब माल्या को लंदन से वापस लाने पर जोर दे रही है. बावजूद इसके कि यूके के कानूनी तंत्र के कारण वहां से प्रत्यर्पण करवाना तकरीबन नामुमकिन जैसी बात है, जहां ऐसे मामलों में सरकारों से ज्यादा अधिकार अदालतों के पास होते हैं. एसआइटी के एक अफसर कहते हैं, ''केवल एक एफआइआर ही प्रत्यर्पण के लिए काफी है. माल्या के खिलाफ आज दो बैंकों के एफआइआर हैं. माल्या ने जिन देशों में फंड कथित तौर पर छुपा रखा है, उन्हें साक्ष्य के लिए प्रार्थना पत्र (लेटर रोगेटरी) भेज दिए गए हैं. हम केस को मजबूत करना चाह रहे हैं ताकि ब्रिटेन की अदालत में वह टिक सके." सूत्रों के अनुसार माल्या के प्रत्यर्पण में जरूरत पडऩे पर सरकार कूटनीतिक हस्तक्षेप के लिए भी तैयार है. अस्थाना कहते हैं, ''हम सही रास्ते पर हैं और माल्या को वापस ले आने की हमें उम्मीद है."
एसआइटी के लिए हालांकि यह काम इतना आसान नहीं रहा है. इसके अफसरों ने जब बैंक के अधिकारियों को चुपचाप धमकी दी कि कि मिलीभगत के लिए उन्हें भी दोषी ठहराया जा सकता है तो बैंक अधिकारियों ने आर्थिक मामलों के विभाग के रास्ते सरकार के आला अधिकारियों से शिकायत कर डाली कि अस्थाना और उनकी टीम उन्हें धमका रही है. पीएमओ ने हालांकि इस मामले में दखल नहीं दिया. इसके बजाए यह संदेश भेज दिया कि एसआइटी को अपना काम करने की पूरी आजादी है.
एसआइटी यह भी पता कर रही है कि माल्या ने कर्ज की राशि घोषित कार्यों में लगाने के बजाए कैसे खुद हड़प ली. सीबीआइ के एक अधिकारी कहते हैं, ''माल्या ने इस कर्ज से काफी कुशलतापूर्वक परिसंपत्तियां निर्मित की हैं. अधिकतर परिवारजनों के नाम हैं, जिनमें उनकी पत्नी रेखा और बच्चे सिद्धार्थ, तान्या व लीना शामिल हैं." ब्यूरो अब तक माल्या के परिवार के नाम पर भारत से बाहर अमेरिका, यूके, फ्रांस, मॉरिशस, ब्रिटिश वर्जिन द्वीप, दक्षिण अफ्रीका और कुछ अन्य देशों में 49 परिसंपत्तियों का पता लगा चुका है, जिनकी कीमत 3,413 करोड़ रु. है. जांचकर्ताओं का कहना है कि आने वाले दिनों में कुछ और का पता लग सकता है. माल्या ने अब तक अदालत में जिन 49 परिसंपत्तियों का ब्यौरा दिया है, उनमें कुछ विसंगतियां हैं. उनमें से कुछ संपत्तियां बैंकों को सार्वजनिक नहीं की गई थीं. बहुत बाद में जाकर ऐसा हुआ, जब खुद सुप्रीम कोर्ट इस मामले से जुड़ा. माल्या के लंदन भागने के बाद बैंकों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.
बीते 23 अगस्त को प्रवर्तन निदेशालय ने माल्या और किंगफिशर एयर के खिलाफ 6,027 करोड़ रु. का कर्ज न चुकाने का एक ताजा मामला दर्ज किया. सूत्रों के अनुसार, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने ईडी को कहा था कि वह विदेश मंत्रालय से संपर्क करे ताकि भारत-यूके प्रत्यर्पण संधि के तहत प्रत्यर्पण की प्रक्रिया शुरू की जा सके. यह बात अलग है कि दोनों देशों के बीच प्रत्यर्पण का अतीत काफी खराब रहा है क्योंकि 30 दिसंबर, 1993 को प्रभाव में आने के बाद इस प्रत्यर्पण संधि के तहत अब तक एक भी रसूखदार व्यक्ति का प्रत्यर्पण नहीं हो सका है, चाहे वह संगीतकार नदीम सैफी हों या नेवी वॉर रूम लीक मामले के दोषी रवि शंकरन. पैसों की हेराफेरी के दोषी आइपीएल के पूर्व आयुक्त ललित मोदी के मामले में तो सरकार अब तक प्रत्यर्पण प्रक्रिया ही शुरू नहीं कर सकी है. इस बार हालांकि एक कटिबद्ध एसआइटी के संकल्प और पीएमओ के समर्थन से माल्या के मामले में प्रत्यर्पण का इतिहास करवट ले सकता है.
माल्या देश से भागने में इसलिए कामयाब रहे क्योंकि अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों पर जारी सीबीआइ के लुकआउट नोटिस में केवल सूचित करने का लचीला प्रावधान था, उन्हें रोकने का नहीं. अगर उन्हें रोकने के निर्देश दिए गए होते तो शायद आज माल्या जेल में होते.
पिछले कुछ वर्षों के दौरान सीबीआइ की छवि बहुत खराब रही है और उसे सत्ताधारी दल का ''पिंजड़े में बंद तोता" माना गया है. माल्या के मामले में उसकी कामयाबी शायद इस छवि को दुरुस्त कर सके.