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जल्लिकट्टू के बाद असम में बैन हुई बुलबुल की लड़ाई, हो रहा जमकर विरोध

असम में पुरानी परंपरा के तहत बुलबुल पक्षियों की लड़ाई पर गुवाहाटी हाई कोर्ट की वेकेशन बेंच ने रोक लगा दी है. कोर्ट के इस फैसले का जमकर विरोध हो रहा है और इसपर बड़ी बहस छिड़ गई है. कुछ ही दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के जल्लिकट्टू त्योहार पर भी बैन लगाया था.

बुलबुल की लड़ाई पर लगा बैन बुलबुल की लड़ाई पर लगा बैन
मोनिका शर्मा
  • गुवाहाटी,
  • 14 जनवरी 2016,
  • अपडेटेड 9:15 PM IST

तमिलनाडु के जल्लिकट्टू त्योहार में सांडों की लड़ाई पर सुप्रीम कोर्ट की तरफ से बैन लगाए जाने के बाद असम में भी बुलबुल की लड़ाई पर बैन लगाने को लेकर बहस तेज हो गई है. हर साल मकर संक्राति के दौरान असम में बिहू त्योहार मनाया जाता है. इस दौरान गुवाहाटी से 30 किलोमीटर दूर हजो में हयाग्रीवा-माधव मंदिर में बुलबुल पक्षियों की लड़ाई कराई जाती है.

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वेकेशन बेंच ने लगाया बैन
गुवाहाटी हाई कोर्ट की वेकेशन बेंच ने जज रूमी कुमारी फुकान ने इस परंपरा पर बैन लगा दिया है. पिछले महीने असम सरकार और मंदिर प्रबंधन के बीच चली जंग के बीच गुवाहाटी हाई कोर्ट ने इस परंपरा को जारी रखने का आदेश दिया था. लेकिन बीते मंगलवार को कोर्ट ने इस आदेश पर रोक लगा दी, जिसके चलते बुलबुलों की लड़ाई को प्रतिबंधित कर दिया गया है.

फैसले का जमकर विरोध
कोर्ट की तरफ से स्टे लगाने के बाद बुधवार को यहां लोगों ने जमकर विरोध किया. मंदिर के डोलोई (प्रमुख पंडित) शिव प्रसाद सरमा अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठ गए. शिव प्रसाद ने कहा, 'हम कोर्ट के आदेश के खिलाफ नहीं हैं लेकिन हम आहत हैं क्योंकि बुलबुल की लड़ाई हमारे मंदिर की परंपरा का एक हिस्सा है. इसके अलावा, हम पक्षियों का बेहद ख्याल रखते हैं और लड़ाई होने के बाद उन्हें आजाद कर देते हैं.'

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शिव प्रसाद के भूख हड़ताल पर बैठने के बाद समर्थन में आए लोग भी उनके साथ बैठ गए हैं.

क्या है परंपरा?
आसपास के गांव में रहने वाले लोग बुलबुल पक्षियों को पकड़ते हैं और कुछ हफ्तों तक उन्हें ट्रेनिंग देने के बाद मकर संक्रांति के मौके पर उन्हें मंदिर लाते हैं. जीतने वाले मालिकों को कई तरह के पुरस्कार दिए जाते हैं. इस लड़ाई के दौरान पक्षियों को चोट भी लग जाती है. जो पक्षी हार जाते हैं, उनकी क्रेस्ट(चोटी) काट दी जाती हैं ताकि वो इस प्रतिस्पर्धा में दोबारा हिस्सा न ले सकें.

यहां से छिड़ी बहस
इस परंपरा पर बैन लगाने की बहस पिछले साल जनवरी में छिड़ी थी, जब असम सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के पिछले आदेशों का हवाला देते हुए इसपर रोक लगाने का आदेश दे दिया था. मंदिर कमेटी ने हाई कोर्ट में रिट याचिका दायर करके इस आदेश को चुनौती दी. 22 दिसंबर को सिंगल जज की बेंच ने सरकार के आदेश को रोक दिया और इस परंपरा को जारी रखने का आदेश सुनाया.

एनिमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया ने कोर्ट के आदेश को चुनौती दी. मंगलवार को वेकेशन कोर्ट के जस्टिस रूमी कुमारी फुकान ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व आदेशों का हवाला देते हुए 22 दिसंबर के हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी. जज ने कहा कि इस मामले की आगे की सुनवाई डिविजनल बेंच करेगी.

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