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वीरभद्र सिंह का मामला अदालत में, प्लान-बी की तैयारी में कांग्रेस

हिमाचल को लेकर कांग्रेस आलाकमान नए सिरे से रणनीति तैयार करने में जुटा है

 कांग्रेस आलाकमान कांग्रेस आलाकमान
कुमार विक्रांत
  • नई दिल्ली,
  • 09 अप्रैल 2017,
  • अपडेटेड 10:44 PM IST

हिमाचल प्रदेश में इसी साल के आखिर में चुनाव होने वाले हैं. हाल ही में हुए 5 राज्यों के चुनावों में मिली असफलता ने कांग्रेस को नये सिरे से सोचने पर मजबूर कर दिया है. सीबीआई की तलवार मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह पर लगातार लटक रही है. मामला अब सबसे बड़ी अदालत की चौखट पर है. सोमवार को मामले की सुनवाई है, ऐसे में लगातार वीरभद्र सिंह के साथ खड़ी कांग्रेस ने प्लान बी भी तैयार किया है.

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दरअसल अभी तक कांग्रेस और खुद वीरभद्र सिंह सीबीआई के एक्शन को केंद्र सरकार की बदले की भावना से प्रेरित बता रहे थे. लेकिन आय से ज़्यादा संपत्ति के मामले अब सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई है, ऐसे में अब कांग्रेस आलाकमान को डर है कि, कहीं अदालत ने कोई तीखी टिप्पणी कर दी और वीरभद्र को राहत नहीं दी तो फिर नैतिकता का दबाव काफी बढ़ जाएगा.

ऐसे में वीरभद्र सिंह के साथ खड़े आलाकमान ने प्लान बी भी बनाया है. प्लान बी के तहत, अगर किसी हालात में सीएम को बदलना पड़े तो दो नाम हैं. पहला नाम है पंजाब की प्रभारी आशा कुमारी, जिनके सिर पंजाब की सफलता का ताज भी है और वो पांच बार की विधायक हैं. साथ ही दूसरा नाम है वरिष्ठ नेता कौल सिंह ठाकुर का. लेकिन फिलहाल रेस में सबसे आगे आशा कुमारी ही हैं. उधर, मामले की गंभीरता समझते हुए मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने आलाकमान को सुझाव दिया है कि, नवम्बर 2017 में चुनाव तय हैं, अप्रैल चल रहा है , ऐसे में वो जल्दी चुनाव कराकर जनता के बीच चले जाएं और जनता की अदालत में न्याय मांगे.

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दरअसल, वीरभद्र सिंह को लगता है कि, एक बार चुनाव की घोषणा हो गयी, तो वो जनता के बीच खुद को बीजेपी की साज़िश का शिकार बताकर सियासी फायदा ले पाएंगे. ऐसे में अब काफी कुछ अदालत में सुनवाई पर तय होगा, लेकिन जून में 83 साल के होने जा रहे वीरभद्र सिंह के लिए अगले कुछ दिन खासे अहम साबित हो सकते हैं.

फिलहाल इस मामले पर कांग्रेस का कोई नेता इस प्लान बी के बारे में बोलने को तैयार नहीं है. आखिर मामला कद्दावर वीरभद्र सिंह का है और पार्टी चाहती है कि, आखिर वक़्त तक वीरभद्र के साथ खड़ी रहे और इसका एहसास भी वीरभद्र सिंह को हो, जिससे पार्टी मजबूरन अगर कोई फैसला करे तो वीरभद्र भी उस फैसले को मान लें, बगावती ना हों.

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