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भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, सोमवार को झारखंड की चुनावी रैली में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को देश भर में लागू करने की प्रतिबद्धता जिस विश्वास से जाहिर कर रहे थे, उसके साफ संकेत हैं कि नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएबी) पर वे होमवर्क पूरा कर चुके हैं. सरकार संसद के मौजूदा सत्र में ही इस विधेयक को पास कराने को आतुर दिख रही है लेकिन अड़चनें भी ऐसी हैं कि विधेयक अटकने पर सरकार के इकबाल पर सवाल उठ सकता है. अड़चन की आशंका सिर्फ इस विधेयक के विरोध में एकजुट हो रहे विपक्ष से ही नहीं है, बल्कि जदयू, अगप जैसे सहयोगी दल का रुख भी सरकार के प्रतिकूल हैं.
इस विधेयक के तहत 1955 के नागरिकता कानून में बदलाव का प्रस्ताव है. नए विधेयक के प्रावधान के मुताबिक अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से भारत में आकर बसे हिंदू, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई शरणार्थियों को नागरिकता देने का प्रस्ताव है. प्रस्तावित विधेयक के मुताबिक ऐसे गैर-मुस्लिम शरणार्थी जो पिछले एक साल से लेकर छह साल तक भारत में बसे हैं, नागरिकता पाने के योग्य हैं. पहले के प्रावधानों में यह अवधि 11 साल थी.
विपक्षी दल विधेयक का विरोध क्यों कर रहे हैं? लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी कहते हैं, ''संविधान का अनुच्छेद 14 धार्मिक समानता की बात करता है जबकि यह विधेयक धार्मिक समानता की मुखालफत करता है.'' भाजपा की दलील है कि, यह प्रावधान (गैर-मुस्लिमों को नागरिकता) पहले से है. भाजपा के इस दावे के बावजूद हकीकत यह है कि खुद भाजपा के पूर्वोत्तर के राज्यों के नेता सार्वजनिक रूप से इस ऌपर आपत्ति और आशंका व्यक्त कर चुके हैं. पूर्वोत्तर के राज्यों के छात्र संगठन भी इसके विरोध में हैं. हालांकि, इन संगठनों से गृह मंत्री ने बीते 29 और 30 नवंबर को दिल्ली में मुलाकात की और उनकी आशंकाएं दूर करने की कोशिश की. पूर्वोत्तर के भाजपा नेता अनौपचारिक बातचीत में कहते हैं कि उन्होंने गृह मंत्री को अपनी आशंकाओं से अवगत कराया जिसे दूर करने का भरोसा दिया गया.
फिलहाल बड़ा सवाल यह है कि सीएबी की जरूरत सरकार को किसलिए है. माना जा रहा है कि असम में एनआरसी से लाखों की संक्चया में हिंदू बाहर हो गए तो उसे दुरुस्त करने के लिए सीएबी की जरूरत है. सीएबी आने से एनआरसी में जगह न पाने वाले गैर-मुस्लिमों को राहत मिलेगी और वे नागरिकता पाने के योग्य हो जाएंगे.
भाजपा नेताओं का दावा है कि सीएबी, संसद के इसी सत्र में पारित हो जाएगा जिसके बाद 2024 से पहले पूरा देश एनआरसी के दायरे में होगा. लेकिन भाजपा विधेयक को संसद से कैसे पास करा पाएगी जबकि ज्यादातर दल इसके विरोध में हैं? सरकार के एक मंत्री कहते हैं, ''अनुच्छेद 370 को लेकर भी यही भ्रम था, लेकिन मोदी सरकार ने इसे आसानी से कर दिखाया.''
हालांकि पिछले छह महीने में सियासत के रंग बदलते दिखने लगे हैं. अनुच्छेद 370 को लेकर सरकार अचानक सक्रिय हुई और विपक्ष कुछ सोच पाता, उससे पहले ही सरकार विधेयक पास करा ले गई. सीएबी को लेकर विपक्ष पहले से सचेत है. राज्यसभा में भाजपा की अहम सहयोगी रही शिवसेना अब विपक्षी खेमे में हैं. नीतीश कुमार भी इस मुद्दे पर सध जाएंगे, इसकी संभावना कम है क्योंकि अगले साल बिहार में चुनाव होने हैं. सरकार के सामने चुनौतियां कई हैं लेकिन गृह मंत्री ने 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए जो बैटल लाइन खींचने की कोशिश की है. उसके लिए सीएबी जायज से ज्यादा जरूरी है.
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