
उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य महकमे में इन दिनों खासी हलचल है. कारण, 5,000 करोड़ रु. के राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) घोटाले को अंजाम देने वालों पर सीबीआइ का कसता शिकंजा. सीबीआइ को तफ्तीश में ऐसे सुबूत मिले हैं जिनके बूते उसके हाथ इस मामले से जुड़े बड़े रसूखदारों तक पहुंच सकते हैं.
एनआरएचएम घोटाला पिछले साल उस समय चर्चा में आया, जब 2 अप्रैल को लखनऊ में तैनात सीएमओ डॉ. बी.पी. सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. हालांकि इससे पहले 27 अक्तूबर, 2010 को एक और सीएमओ डॉ. विनोद कुमार आर्या की हत्या की जा चुकी थी. इसके बाद बसपा सरकार में तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री अनंत कुमार मिश्र और परिवार कल्याण मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा को अपनी कुर्सी से हाथ धोना पड़ा था.
पिछले साल नवंबर में हाइकोर्ट के आदेश के बाद सीबीआइ ने पूरे प्रदेश में एनआरएचएम घोटाले की जांच अपने हाथ में ले ली थी. सीबीआइ ने अब तक प्रदेश में कई जगहों पर 200 से अधिक छापे मारकर 12 एफआइआर दर्ज की हैं. दस्तावेजों को अपने हाथ में लेने के बाद पिछले दो हफ्तों में सीबीआइ जांच में और तेजी आ गई है. इसमें स्वास्थ्य विभाग के 75 मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) सीधे तौर पर कानूनी शिकंजे में फंसते नजर आ रहे हैं. बात सिर्फ सीएमओ तक ही सीमित नहीं है.
सीबीआइ ने छापेमारी करके स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग में बीते पांच वर्षों के दौरान ठेके लेने वाले ठेकेदारों पर भी शिकंजा कसा है. सीबीआइ के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, जांच में इस बात के पुख्ता सबूत मिले हैं कि पिछले पांच साल में ऐसे कई ठेकेदारों को दवा और मेडिकल उपकरण सप्लाई करने का टेंडर दिया गया जो यह काम करते ही नहीं थे. सरकार के दो पूर्व मंत्रियों ने अपने-अपने लोगों को बतौर ठेकेदार पेश कर इन्हें ठेके दिलाए और काम न होने पर भी पूरा भुगतान कराया. ठेकेदारों और सीएमओ के फोन सर्विलांस से भी सीबीआइ को हैरत भरी जानकारियां मिली हैं.
कुशीनगर में तैनात रहे एक सीएमओ दिनभर में दो दर्जन से अधिक बार पूर्वांचल के एक दबंग ठेकेदार से बातचीत करते थे. इन सीएमओ ने जिले में स्वास्थ्य विभाग के सारे ठेके इन्हीं ठेकेदार के गुर्गों को सौंपे थे. एनआरएचएम के धन की लूट के लिए ठेकेदारों का प्रभाव इस कदर बढ़ गया था कि वे सीएमओ की तैनाती में भी दखल रखने लगे थे. सीबीआइ जांच की जद में सेहत महकमे के अधिकारी ही नहीं फंस रहे हैं बल्कि जल निगम, यूपीएसआइडीसी के अधिकारियों पर भी गाज गिरनी तय है. इन एजेंसियों को 3,000 करोड़ रु. से अधिक के निर्माण कार्य सौंपे गए और काम पूरा हुए बगैर पैसा जारी कर दिया गया.