
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में लगातार कमी आ रही है और अब यह 78.92 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल (153 लीटर) पर आ गई है. पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के अनुसार कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमत 12 नवंबर को 78.92 डॉलर प्रति बैरल हो गई जबकि एक दिन पहले यानी 11 नवंबर को इसकी कीमतें 79.11 डॉलर थी. रुपये के संदर्भ में 12 नवंबर को यह 4852.00 रुपये प्रति बैरल हो गई, जबकि 11 नवंबर को यह 4869.22 रुपये प्रति बैरल थी. उधर बुधवार को रुपया भी मजबूत होकर 61.48 रुपये प्रति अमेरिकी डॉलर पर बंद हुआ.
इसी साल जून के महीने में ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमत 115 डॉलर प्रति बैरल हो गई थी और एक्सपर्ट कीमतें और बढ़ने का पूर्वानुमान लगा रहे थे. हालांकि कुछ विशेषज्ञ यह भी कह रहे थे कि कच्चे तेल की कीमतें अपने उच्चतम स्तर पर आ चुकी हैं और यहां से कीमतें कम होना शुरू होंगी, और ये भविष्यवाणी सच साबित होती दिख रही है. अक्टूबर के शुरुआत में इसकी कीमतें 95 डॉलर प्रति बैरल हो गईं और अब ये कीमतें 80 डॉलर के बैरियर को तोड़कर नीचे आ चुकी हैं.
क्यों गिरे कच्चे तेल के दाम
2013 के मध्य से ही तेल की कीमतों के गिरने का अनुमान लगाया जा रहा था. इसके पीछे यह तर्क काम कर रहा था कि बाजार में डिमांड से ज्यादा इसकी सप्लाई थी. इसके पीछे तीन वजहें थीं. पहला कारण ईरान से आर्थिक प्रतिबंध का उठाया जाना है. अमेरिकी प्रतिबंध से ईरान की आर्थिक स्थिति डंवाडोल हो गई और प्रतिबंध हटने के बाद उसकी सबसे बड़ी जरूरत नकदी को बढ़ाने की थी. यहां ईरान ने अपने ऑयल रिजर्व को जितना संभव हो उतना खोल दिया. नतीजा, अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की बहुलता और इसकी कीमतों में अनुमान से ज्यादा कमी का होना.
दूसरी ओर गद्दाफी के पतन के दौर में तीन साल पहले लीबिया को अपने तेल संसाधनों का बहुत नुकसान उठाना पड़ा जो अब सुधर गया है और इसके निर्यात में उसकी वापसी हुई है. ईरान की ही तरह लीबिया को भी नकदी की आवश्यकता है और इसके लिए वो कीमतों की परवाह किए बगैर अधिक से अधिक कच्चे तेल के निर्यात पर ध्यान दे रहा है.
तीसरा सबसे बड़ा कारण अमेरिका है जो अब पहले से कम कच्चे तेल का आयात कर रहा है. 2005 तक अमेरिका को अपनी खपत का 60 फीसदी कच्चा तेल अंतरराष्ट्रीय बाजार से खरीदना पड़ता थो जो अब घटकर 30 फीसदी पर आ गया है. यानी बाजार में पहले से अधिक तेल मौजूद है. हालांकि अमेरिका में कच्चे तेल के खनन में बढ़ोतरी की तो संभावना जताई गई थी लेकिन इस साल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में आई इतनी कमी की किसी विशेषज्ञ ने संभावना नहीं जताई थी. कुल मिलाकर ये तीन बड़े कारक हैं जिसकी वजह से कच्चे तेल की कीमतों में लगातार कमी आ रही है.
पेट्रोल, डीजल की कीमतों में और होंगी कटौती
इससे पहले भी पेट्रोल-डीजल की कीमतों में लगातार गिरावट होती रही है और अब तक इनमें 10 से 13 फीसदी तक की कमी आ चुकी है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में लगातार घटते कच्चे तेल की कीमतों की वजह से अब तक पेट्रोल की कीमतों में 9.36 रुपये की कमी आ चुकी है, यही हाल डीजल का भी है. इसी साल 21 अक्टूबर को नियंत्रण मुक्त किए जाने के बाद से इसकी कीमतों में भी लगातार कमी आई है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में लगातार गिरावट का सीधा असर भारतीय बाजारों पर पड़ा और इसकी वजह से भारतीय तेल कंपनियों पर दबाव कम हुआ और वे दाम घटाने की तैयारी में हैं. यानी पेट्रोल और डीजल की कीमतों में एक बार फिर कमी होने की पूरी संभावना है.