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वन बेल्ट, वन रोड प्रोजेक्ट; भारत इकलौता देश नहीं जिसे चीनी मंसूबों पर है ऐतराज

भारत इकलौता ऐसा देश नहीं है जिसे ड्रैगन के इरादों पर शक है. जिन 65 देशों को इस प्रोजेक्ट का हिस्सा बनाने की बात हो रही है उनमें सिर्फ 25 देश ही चीन के इस आइडिया में दिलचस्पी दिखाते नजर आ रहे हैं.

कई और देशों को भी है चीनी मंसूबों पर शक कई और देशों को भी है चीनी मंसूबों पर शक
राम कृष्ण
  • नई दिल्ली,
  • 14 मई 2017,
  • अपडेटेड 2:05 PM IST

चीन की नजर से देखें तो 'वन बेल्ट, वन रोड' परियोजना दुनिया की तस्वीर बदलने का मंसूबा है. लेकिन भारत इकलौता ऐसा देश नहीं है जिसे ड्रैगन के इरादों पर शक है. जिन 65 देशों को इस प्रोजेक्ट का हिस्सा बनाने की बात हो रही है उनमें सिर्फ 25 देश ही चीन के इस आइडिया में दिलचस्पी दिखाते नजर आ रहे हैं. यानी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के विशेष न्योते को 65 में से 44 देशों ने तवज्जो नहीं दी है. इन 44 देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह वन बेल्ट वन रोड फोरम समिट से व्यक्तिगत तौर पर किनारा काटा है. चीन की पुरजोर कूटनीतिक कोशिशों के बावजूद इन राष्ट्राध्यक्षों ने खुद शिरकत करने की बजाय अपने राजनयिकों को ही सम्मेलन में भेजना बेहतर समझा है.

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भारत बिना अधूरा रहेगा ड्रैगन का ख्वाब
चीन की इस परियोजना में नेपाल, श्रीलंका और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देश बेशक शामिल हो गए हैं, लेकिन बिना भारत को शामिल किए चीन के लिए इस परियोजना को अंजाम तक आसान नहीं होगा. दरअसल, भारत का कहना है कि चीन की वन बेल्ट वन रोड परियोजना का बड़ा हिस्सा यानी चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) से गुजरता है. चीन ने इस गलियारे के लिए भारत से इजाजत नहीं ली, जो उसकी संप्रभुता का उल्लंघन है. भारत को चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के नाम पर भी आपत्ति है. हालांकि हाल ही में चीन भारत के एतराज के बाद इसका नाम बदलने को राजी हो गया था, लेकिन बाद में मुकर गया. चीन को भारत के सहयोग की दरकार इसलिए भी है क्योंकि अमेरिका समेत कई दिग्गज देश चीनी मंसूबों को शक की नजर से देख रहे हैं.

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भारत को घेरने की चीनी चाल
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने साल 2013 में वन बेल्ट वन रोड परियोजना के आइडिया को दुनिया के सामने रखने के पहले से ही भारत को घेरने की रणनीति बना ली थी, लेकिन अब तक पूरी तरह कामयाब नहीं हो पाए हैं. भारत के पड़ोसी देश नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका और पाकिस्तान में चीन की ओर से किए जा रहे निवेश इसी रणनीति का हिस्सा हैं. ड्रैगन सोचता है कि वह इस कूटनीति के सहारे भारत को घेरने में कामयाब हो जाएगा और अपनी शर्तों पर वन बेल्ट वन रोड परियोजना में भारत को शामिल होने के लिए राजी कर लेगा. हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आगे चीन की एक नहीं चल पा रही है.

पड़ोसियों पर दबाव बनाने की रणनीति?
चीन ने भारत समेत दूसरे पड़ोसी देशों पर दबाव बनाने के लिए भव्य 'वन बेल्ट वन रोड' समिट का आयोजन किया है. चीन का दावा है कि इस समिट में 130 देशों के प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं. हालांकि सवाल यह है कि जब यह परियोजना 65 देशों को जोड़ेगी, तो 130 देशों को बुलाने की क्या जरूरत है? दिलचस्प बात यह है कि चीन ने इस समिट पर वैश्विक मीडिया का ध्यान खींचने की पूरी कोशिश कर रहा है. इसके जरिए वह भारत समेत दूसरे देशों पर दबाव बनाना चाहता है. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने वन बेल्ट वन रोड परियोजना समिट के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि यह परियोजना वैश्विक शांति और समृद्धि का प्रतीक बनेगी. जबकि हकीकत यह है कि महत्वाकांक्षी चीन की ये बातें बहुतों के गले नहीं उतर रही हैं. दक्षिण चीन सागर, तिब्बत और अरुणाचल के मसले चीनी रुख राष्ट्रपति जिनपिंग के दावों से मेल नहीं खाता.

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बादशाहत कायम करना मकसद
ड्रैगन तर्क दे रहा है कि उसकी 'वन बेल्ट, वन रोड' परियोजना से दुनिया के देशों के बीच आर्थिक सहयोग बढ़ेगा और वैश्विक मंदी के असर से निपटने में मदद मिलेगी. लेकिन भारत और अमेरिका जैसे देश इस दलील से मुतासिर नहीं हैं. अगर हम चीन के विदेशी निवेश पर नजर दौड़ाएं, तो कई देश उसके कर्ज में बुरी तरह फंस चुके हैं. अब चीन की सरकार ने अपने देश को आर्थिक मंदी से उबारने और बेजोरगारी की समस्या से निपटने के लिए न्यू सिल्क रोड का सहारा लिया है. इसके जरिए वह 65 देशों में सीधे निवेश कर सकेगा यानी इन देशों की अर्थव्यवस्था पर चीन का सीधा दखल होगा, जिसके बाद वह इनको अपने इशारे पर नचाता रहेगा.


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