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यहां सच बोलने की सजा मौत क्यों है?

आज बात ऐसे कलमकारों और उनके सच्चाई की, जिनके सच ने कुछ लोगों को इतना बेचैन कर दिया कि वो इससे घबराकर कलमकारों को ही निशाना बनाने लगे. पहले यूपी और अब एमपी में एक पत्रकार के क़त्ल की वारदात इसी का सुबूत है.

journalist burned in MP journalist burned in MP
aajtak.in
  • भोपाल/नई दिल्ली,
  • 23 जून 2015,
  • अपडेटेड 6:06 AM IST

खींचो ना कमानों को, ना तलवार निकालो
जब तोप मुकाबिल हो, तो अख़बार निकालो

मशहूर शायर अकबर इलाहाबादी की ये पंक्तियां सच्चाई की उस ताकत को बयान करती है, जिसमें बड़े से बड़े हुक्मरानों से भी टकराने का माद्दा होता है. ये और बात है कि सच्चाई सुनने का माद्दा हर किसी में नहीं होता. आज बात ऐसे कलमकारों और उनके सच्चाई की, जिनके सच ने कुछ लोगों को इतना बेचैन कर दिया कि वो इससे घबराकर कलमकारों को ही निशाना बनाने लगे. पहले यूपी और अब एमपी में एक पत्रकार के क़त्ल की वारदात इसी का सुबूत है.

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फ़क़त 19 दिनों के फ़ासले पर हुए इन दोनों ही वाकयों में दो पत्रकारों को सच बोलने की ऐसी सज़ा मिली , जिसके बारे में सुन कर ही रौंगटे खड़े हो जाते हैं. फ़र्क सिर्फ़ इतना है कि पिछली बार मुंह बंद ना रखने पर एक पत्रकार को ज़िंदा जला दिया गया, तो इस बार इसी गुनाह में एक दूसरे पत्रकार को मौत के घाट उतार कर उसकी लाश ही फूंक डाली गई और वो भी ऐसे कि घरवालों को अपने इस अज़ीज़ की पहचान उसकी की-रिंग और कपड़ों के अधजले कपड़ों के टुकड़ों से करनी पड़ी. जम्हूरियत को मुंह चिढ़ाते ये दोनों वाकये अगर जान पर खेल कर काम करने वाले पत्रकारों की हकीकत बयान करते हैं, तो ये भी बयान करते हैं कि किस तरह सत्ता से कुरबत रखनेवाले माफ़ियाओं ने क़ायदे-क़ानून को अपने पैरों की जूती समझ रखा है.

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ताज़ा मामला मध्य प्रदेश के बालाघाट का है...
कंटगी, बालाघाट
शुक्रवार, रात 9:30 बजे
अपनी क़लम से माफियाओं और अवैध धंधेबाज़ों की नींद हराम करनेवाले पत्रकार संदीप कोठारी इस रोज़ बाइक पर घर लौट रहे थे. कोठारी के साथ उनका एक दोस्त ललित राहंगडाले भी बाइक पर मौजूद था. लेकिन रात को दोनों जैसे ही एक सुनसान जगह पर पहुंचे, पीछे से आई एक कार ने पहले तो उन्हें टक्कर मार कर ज़मीन पर गिरा दिया और फिर कार से उतरे तीन लोगों ने उनकी पिटाई शुरू कर दी. हमलावरों का अंदाज़ कुछ ऐसा था, जैसे वो पहले से ही घात लगा कर बैठे हों. उन्होंने मारपीट कर कोठारी के दोस्त ललित को तो मौके से भगा दिया, लेकिन संदीप कोठारी को अपने साथ उठा ले गए. बस, यही आख़िरी वक्त था, जब किसी ने कोठारी को ज़िंदा देखा था.

इसके बाद कोठारी का दोस्त ललित किसी तरह लिफ्ट मांग कर कटंगी थाने पहुंचा और सारी बात बताई. उसकी शिकायत पर पुलिस रात को ही मौका ए वारदात पर भी आई, लेकिन सितम देखिए कि इतना सबकुछ होने के बावजूद पुलिस तब क़ातिलों का कोई सुराग़ नहीं लगा पाई. ललित हमलावरों को पहचानता तो नहीं था, लेकिन उसके बताए हुलिए के मुताबिक पुलिस ने दूसरे दिन यानी शनिवार शाम को विशाल तांडी और ब्रजेश डहरवाल नाम के दो लोगों को धर दबोचा. लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. पुलिस की माने तो तांडी और डहरवाल ने अपने एक और साथी राकेश नृस्वानी के साथ मिलकर कोठारी की जान लेने की बात कुबूल कर ली. दोनों ने पहले तो चलती कार में ही गला दबा कर कोठारी का क़त्ल किया और फिर रात को ही मध्य प्रदेश के बाहर महाराष्ट्र के वर्धा में एक रेलवे ट्रैक के किनारे उसकी लाश को डीज़ल डाल कर आग के हवाले कर दिया.

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लाश देख पहचान हुई नामुमकिन
मध्य प्रदेश की पुलिस अब दोनों की निशानदेही पर लाश बरामद करने के लिए रविवार की सुबह वर्धा पहुंची, लेकिन वर्धा पुलिस ने कोठारी की लाश शनिवार को ही बरामद कर ली थी. लाश की हालत देख कर उसे पहचान पाना भी नामुमकिन था. लेकिन उसके घरवालों ने किसी तरह बची-खुची चीज़ों को देख कर उसकी पहचान कर ली. पुलिस अब भी इस मामले के तीसरे मुलज़िम नृस्वानी की तलाश कर रही है. लेकिन इस वाकये ने बालाघाट और आस-पास के इलाके में मैंगनीज़ की अवैध खुदाई और दूसरे काले धंधों की पोल खोल दी है.

अब कोठारी के घर के लोग जहां इंसाफ़ की मांग कर रहे हैं, वहीं इसे लेकर मध्य प्रदेश में सियासत भी तेज़ हो गई है. लेकिन हक़ीक़त यही है कि इन तमाम शोर के बीच क़ातिल कुछ देर के लिए ही सही सच्चाई की आवाज़ को खामोश करने में कामयाब हो गए.

उधर शाहजहांपुर के जांबाज पत्रकार जगेंद्र के क़त्ल के मामले में मुआवज़े का ऐलान भी हो गया और इंसाफ़ को भरोसा भी.लेकिन जो सबसे बड़ा सवाल पत्रकार पर हमले के वक्त खड़ा था, वो अब भी जस का तस खडा है. ये सवाल है कि मामले के आरोपी मंत्री तक क़ानून के लंबे हाथ आख़िर कब तक पहुंचेंगे.

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जगेंद्र को अब तक इंसाफ नहीं
हुकूमत के चेहरे भी अजीब होते हैं. कभी हुकूमत पर सच्चाई की आवाज़ दबाने के लिए किसी पत्रकार को ज़िंदा जला देने का इल्ज़ाम लगता है. तो कभी वही हुकूमत इस दबती आवाज़ से भड़की चिंगारी को शांत करने के लिए अपनी तिजोरी का मुंह खोल देता है. उत्तर प्रदेश के बेबाक पत्रकार जगेंद्र सिंह की मौत को अब पखवाड़े भर का वक्त गुज़र चुका है, लेकिन सितम देखिए कि गहरे सदमे में डूबे जगेंद्र के घरवालों को अब भी इंसाफ़ के लिए धरना देना पड़ता है, दर-दर की ठोकर खानी पड़ती है.

ये और बात है कि चाटुकारों के कसीदों से बहरी हो चुकी सरकार के कानों से टकराती सिसकियां आख़िरकार उम्मीद जगाने में कामयाब होती हैं और जगेंद्र के घरवालों के लिए देर से ही सही राहत की खबर सामने आती है.

- पिछले कई दिनों से धरने पर बैठे जगेंद्र के घरवालों से सोमवार को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मुलाक़ात की और उन्होंने जहां जगेंद्र के परिवार को 30 लाख रुपए का मुआवज़ा और उनके दोनों बेटों को नौकरी देने का ऐलान किया, वहीं ये भी कहा कि अगर पत्रकार को ज़िंदा जलाने के इस मामले में सूबे के पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री राममूर्ति सिंह वर्मा कसूरवार पाए गए, तो उनके खिलाफ़ भी कड़ी कार्रवाई होगी.

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ख़बरों के मुताबिक कुछ पुलिसवालों ने शाहजहांपुर के रहने वाले पत्रकार जगेंद्र सिंह को 1 जून को उनके घर में घुस कर ज़िंदा जला दिया था. इसके बाद वो सात दिनों तक मौत से लड़ते रहे और इस दौरान उन्होंने ना सिर्फ़ अपने क़ातिलों का नाम लिया, बल्कि पूरी साज़िश का खुलासा भी किया.

अब भी खादी तक नहीं पहुंची खाकी
कानून के हाथ आरोपी खाकी तक तो पहुंचे, लेकिन खादी फिर भी बचने में कामयाब रही. जगेंद्र सिंह के घरवालों की माने तो उनकी हत्या उत्तर प्रदेश के पिछडा वर्ग कल्याण मंत्री राममूर्ति सिंह वर्मा के इशारे पर ही की गई है. चूंकि जगेंद्र काफी दिनों से मंत्री राममूर्ति सिंह वर्मा के खिलाफ अपने फेसबुक पेज पर लिख रहे थे. वर्मा उनसे नाराज़ चल रहे थे और उनके इशारे पर ही पुलिसवालों ने इस वारदात को अंजाम दिया.

हालांकि इस अफ़सोसनाक कहानी का यही अंत नहीं है. घरवालों की मानें तो कुछ लोग उन्हें मुंह खोलने पर अब इससे भी ज़्यादा बुरे अंजाम की धमकी दे रहे हैं और पुलिस भी मंत्री जी बचाने में लगी है. लेकिन पत्रकारों के साथ ज़ुल्मो सितम का सिलसिला इससे आगे भी जारी है. अभी जगेन्द्र के क़त्ल के मामले को पखवाड़े भर का वक्त ही गुज़रा है कि शाहजहांपुर में ही फिर एक बार पत्रकार को निशाना बनाया गया. आरोप है कि नशे में धुत कुछ पुलिसकर्मियों ने ही पत्रकार प्रेमशंकर से मारपीट की उधर, जम्मू कश्मीर सरकार के मंत्री गुलाम नबी लोन के कुछ बॉडीगार्ड ने भी एक पत्रकार के साथ मारपीट की.

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--बालाघाट से अतुल वैद्य के साथ अमित कुमार, भोपाल, आजतक.

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