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कैशलेस इकोनॉमी का सपना अच्छा, लेकिन इन मुश्किलों से पार पाना जरूरी

नोटबंदी की घोषणा को 8 नवंबर को एक साल पूरा हो रहा है. इस मौके पर सरकार इसकी वजह से हुए फायदों का जश्न मनाने की तैयारी कर रही है. मोदी सरकार के मुताबिक नोटबंदी का एक फायदा यह भी हुआ कि हम कैशलेस इकोनॉमी की तरफ बढ़ रहे हैं.

कैशलेस इकोनॉमी का सपना कैशलेस इकोनॉमी का सपना
विकास जोशी
  • नई दिल्ली,
  • 07 नवंबर 2017,
  • अपडेटेड 4:30 PM IST

नोटबंदी की घोषणा को 8 नवंबर को एक साल पूरा हो रहा है. इस मौके पर सरकार इसकी वजह से हुए फायदों का जश्न मनाने की तैयारी कर रही है. मोदी सरकार के मुताबिक नोटबंदी का एक फायदा यह भी हुआ कि हम कैशलेस इकोनॉमी की तरफ बढ़ रहे हैं. सरकार की मंशा कैशलेस इकोनॉमी को और भी मजबूत करने की है.

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स्वीडन पहली कैशलेस इकोनॉमी

हालांकि कैशलेस इकोनॉमी के सपने को पूरी तरह हकीकत का रूप देने से पहले मोदी सरकार को कुछ हकीकत से रूबरू होना जरूरी है और इसके लिए मोदी सरकार स्वीडन की तरफ देख सकती है, जो दुनिया की पहली 100 फीसदी कैशलेस इकोनॉमी बढ़ने की तरफ बढ़ रहा है.

आम आदमी को चुकानी पड़ रही कीमत

स्वीडन में 90 फीसदी से भी ज्यादा लेनदेन कैशलेस होते हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि स्वीडन दुनिया की पहली ऐसी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है, जहां 100 फीसदी कैशलेस लेनदेन होगा और नगदी का अंश नहीं होगा. कैशलेस हो रहे स्वीडन का एक दूसरा पहलू भी है, जिसकी कीमत यहां आम आदमी को चुकानी पड़ रही है. कैशलेस इकोनॉमी का भार आम आदमी को उठाना पड़ रहा है.

बैंक में पैसे रखने के लिए देना पड़ता है चार्ज

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स्वीडन कई  सालों से खुद को कैशलेस इकोनॉमी के तौर पर ढालने में जुटा  हुआ है, लेकिन आम लोगों के लिए ये थोड़ा मुश्क‍िल साबित हो रहा है. लोगों को बैंक में अपने पैसे रखने के लिए चार्ज देना पड़ रहा है. इससे आम आदमी की जेब पर अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है.

भारत में ये है नोटबंदी का असर

भारतीय बैंकों की बात करें , तो इन्होंने भी बचत खातों पर ब्याज दर में कटौती शुरू कर दी है. नोटबंदी के बाद कई बैंकों ने ब्याज दर घटाकर 3.50 फीसदी तक कर दी है. इसके अलावा फिक्स्ड डिपोजिट पर मिलने वाली ब्याज दर में कटौती की गई है. इसका सबसे ज्यादा असर उन लोगों पर पड़ रहा है, जिनका बचत का सबसे बड़ा साधन एफडी और बचत खाते हैं.

साइबर हमलों का खतरा

कैशलेस इकोनॉमी इलेक्ट्रोनिक माध्यम के जरिये लेनदेन करती है. इसकी वजह से इसको लेकर साइबर हमलों का खतरा भी बढ़ जाता है. पिछले महीनों में एसबीआई  के डेबिट कार्ड  और कुछ बैंकों के एटीएम हैक होने की खबरें हम सुन चुके हैं. ऐसे में जब तक मजबूत साइबर सुरक्षा घेरा तैयार नहीं हो जाता, तब तक कैशलेस इकोनॉमी के सपने को साकार करना काफी खर्चीला साबित हो सकता है.

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दुकानदार नहीं लेते कैश

स्वीडन में कई दुकानों के बाहर आपको ऐसे बोर्ड  लिखे मिल जाएंगे, जिन पर लिखा है कि हम कैश स्वीकार नहीं करते. स्वीडन सेंट्रल बैंक के एक सर्वे के मुताबिक यहां 41 फीसदी लोग 700 रुपये से कम लेनदेन के लिए आज भी कैश के ही इस्तेमाल करने को तरजीह देते हैं. इसमें ज्यादातर वरिष्ठ नागरिक और वो लोग शामिल हैं, जिन्हें डिजिटल लेनदेन का ज्यादा ज्ञान नहीं है.

दुकानदार नहीं लेंगे कैश तो...

भारत में  जनसंख्या का एक बड़ा भाग ऐसा है, जिसे एटीएम से पैसे निकालने के लिए भी किसी दूसरे के सहयोग की जरूरत पड़ती है. डिजिटल लेनदेन को लेकर जो माध्यम मौजूद हैं, वह आज भी उनसे अनजान हैं. ऐसे में सरकार को चाहिए कि वह कैशलेस सोसायटी तैयार करने से पहले उसके लिए लोगों को तैयार करे. क्योंकि जिस दिन दुकानों ने कैश लेना बंद कर दिया, उस दिन से कैशलेस लेनदेन न जानने वालों को सबसे ज्यादा दिक्कतें पेश आएंगी. 

बुनियादी ढांचा

कैशलेस इकोनॉमी का सपना साकार करने के लिए भारत को न सिर्फ वित्तीय जागरूकता को लेकर काम करना होगा, बल्क‍ि इसके लिए मजबूत बुनियादी ढांचा भी तैयार करना होगा. भले ही मोदी सरकार लगातार कैशलेस ट्रांजैक्शन को बढ़ावा देने में जुटी हुई है, उसके बावजूद कई दुकानों के पास आज भी पीओएस मशीनें नहीं हैं. कैशलेस सोसायटी के लिए वित्तीय जागरूकता और बुनियादी ढांचा मजबूत करना प्राथमिकता होनी चाहिए.

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