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ऑनलाइन बिक्री: इंटरनेट की सवारी से हिंदी की चांदी

हिंदी की किताबें गोदामों से निकलकर इंटरनेट के जरिए देश के दूर-दराज के इलाकों में पहुंच रही हैं. घर बैठे किताबें पाने के बढ़ते प्रचलन से लेखकों के साथ प्रकाशकों के भी आए अच्छे दिन

नरेंद्र सैनी
  • नई दिल्ली,
  • 19 जुलाई 2016,
  • अपडेटेड 6:08 PM IST

मुसलमान और हिंदू हैं दो, एक, मगर, उनका प्याला,
एक, मगर, उनका मदिरालय, एक, मगर, उनकी हाला,
दोनों रहते एक न जब तक मस्जिद मंदिर में जाते,
बैर बढ़ाते मस्जिद मंदिर, मेल कराती मधुशाला!

दिल्ली के 24 वर्षीय विक्रांत सिंह के किसी दोस्त ने जब ट्विटर पर उनके साथ ये लाइनें साझा कीं तो उन्हें मजेदार लगीं. शराब और समाज के मेल की यह कल्पना उनके दिल में गहरे उतर गई. हालांकि शेरो-शायरी से उनका कोई नाता नहीं था. वे ठहरे आइटी सरीखी नीरस फील्ड से. पर उन्होंने तुरंत हरिवंश राय बच्चन की मधुशाला का ऑनलाइन ऑर्डर कर दिया. विक्रांत कहते हैं, ''इसे पढ़कर मुंह से यही निकला, लाजवाब! हर दौर में मौजूं.'' यही वजह है कि 1935 में प्रकाशित रूबाइयों की यह किताब आज भी बिक्री के मामले में टॉप 10 में जगह बनाए हुए है. ऑनलाइन स्टोर Amazon.in के प्रवक्ता के मुताबिक, ''हमने जबसे हिंदी बुक स्टोर लॉन्च किया है, हौसले बढ़ा देने वाला रिस्पॉन्स मिल रहा है. अगर हम 2015 में बिक्री में उछाल की तुलना 2014 के साथ करें तो यह वृद्धि 350 फीसदी थी.''

हिंदी के इस बढ़ते बाजार की वजह से अमेजन ने सुरेंद्र मोहन पाठक का अलग से बुक स्टोर लॉन्च कर दिया है. हो भी क्यों न, उनकी पिछली तीन किताबों कोलाबा कॉन्सपिरेसी, क्रिस्टल लॉज और गोवा गलाटा में हरेक की 30,000 से ज्यादा प्रतियां बिक चुकी हैं. हार्पर कोलिंस में हिंदी के प्रभारी नवीन तिवारी बताते हैं, ''सुंरेंद्र मोहन पाठक और बेजान दारूवाला हमारे सबसे ज्यादा बिकने वाले लेखक हैं.'' एक प्रकाशक का दावा तो यह भी है कि 2015 में हिंदी की लगभग साढ़े सात लाख किताबें ऑनलाइन बिकीं, जो इसके बढ़ते बाजार का संकेत है.

कौन-सी किताबें बिक रहीं
हालांकि बड़ा सवाल यह है कि ऑनलाइन बाजार में किस तरह की किताबें बिक रही हैं तो इसका जवाब बड़ा मजेदार है. यहां सेल्फ हेल्प से लेकर अनूदित किताबों का बोलबाला है. हिंद युग्म प्रकाशन के शैलेष भारतवासी मानते हैं कि ऑनलाइन दुनिया में भी हिंदी की वैसी ही किताबों की मांग है जैसी पहले हुआ करती थी. वे कहते हैं, ''ऑनलाइन बिक्री के अस्तित्व में आने से पहले जिस तरह की किताबों की मांग थी, वही अब भी है. ऑनलाइन दुकानों के न आने से पहले भी कविताओं के इक्के-दुक्के पाठक थे, अब भी वही स्थिति है. पहले सबसे अधिक सेल्फ हेल्फ की किताबें बिकती थीं, आज भी बिकती हैं. साहित्य में लोकप्रिय कहानी, उपन्यास बिकते थे, वे आज भी बिक रहे हैं.''  

इसका अंदाज अमेजन की हिंदी बेस्टसेलर की ताजा लिस्ट देखकर लग जाता है. इसमें छह किताबें अनूदित हैं और बाकी की चार हिंदी की मूल किताबें पांच से छह दशक पुरानी हैं. मधुशाला (1935), गोदान (1936) और रश्मिरथी (1952) आज भी युवाओं को लुभा रही हैं. हिंदी के ऐसे क्लासिक के बाद सबसे अधिक मांग अनूदित साहित्य की है और उसके बाद बारी लुगदी साहित्य की आती है.

ऑनलाइन किताबों की बिक्री में युवाओं का बड़ा हाथ है. शैलेष कहते हैं, ''20 से 45 आयु वर्ग केही खरीदार अधिक हैं.'' यही नहीं, देश के ग्रामीण इलाकों से हिंदी की किताबों की अच्छी मांग पैदा हो रही है. ऑनलाइन की सबसे बड़ी यूएसपी घर बैठे किताबों के पहुंचने को माना जा रहा है. मंजुल प्रकाशन के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर मुनीष वर्मा भी इससे इत्तेफाक रखते हैं. वे कहते हैं, ''दूर-दराज के इलाकों में किताबें आसानी से पहुंच रही हैं. ऐसे इलाकों में भी इसने दुनिया बदल दी है, जहां किताबों की दुकानें ही नहीं हैं'' अमेजन के प्रवक्ता के मुताबिक, ''इस साल हमने अपने हिंदी बुक स्टोर में 10,000 नए टाइटल शामिल कर लिए हैं. फिलहाल अमेजन में हिंदी के 51,000 टाइटल मौजूद हैं. इस कैटगरी के लिए हमारे 1,500 से ज्यादा सेलर्स हैं.''  



हिंदी का भी बदला है रूप
किताबों की दुनिया के ऑनलाइन में पहुंचने से हिंदी भाषा के स्वरूप में भी बदलाव आया है. बाजार और हिंग्लिशदां युवा पीढ़ी के मूड का भी भरपूर ख्याल रखा जा रहा है. हिंद युग्म के शैलेष भारतवासी ने तो हिंग्लिश से भी एक कदम आगे बढ़ाते हुए अपनी किताबों में जहां भी अंग्रेजी के शब्द आते हैं, वहां रोमन लिपि का ही इस्तेमाल किया है. पर वाणी प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अरुण महेश्वरी भाषा को लेकर अलग ही नजरिया रखते हैं. वे कहते हैं, ''ऑनलाइन बाजार के लिए हमने अपनी भाषा से लेकर ब्रांडिंग तक पर मेहनत की है. न सिर्फ नई हिंदी बल्कि नए कलेवर में रची-बसी नई हिंदी पर सोच-समझकर काम किया गया है, ताकि यह नए पाठकों तक उसी रूप में पहुंच सके जिस रूप में वे चाहते हैं. यह ऐसी हिंदी है जो न संस्कृतनिष्ठ है, न अंग्रेजी शब्दों से प्रभावित है. कुल मिलाकर परंपरा और आधुनिकता को साथ-साथ लेकर आगे बढऩे की कोशिश है.'' उनका कहना सही है. युवा हिंदी की ऐसी किताबें पसंद कर रहे हैं जो समझने में आसान और उनको छूती हुई निकलें. विक्रांत कहते हैं, ''मधुशाला की भाषा ऐसी है जो लिरिकल है और समझने में आसान है.'' वैसे आरोप लग रहे हैं कि किताबें बाजार के मुताबिक लिखी जा रही हैं. शैलेष कहते हैं, ''किताबें बाजार के हिसाब से नहीं लिखी जानी चाहिए बल्कि किताबों का बाजार बनना चाहिए. हिंदी के प्रकाशक किताबों के प्रचार-प्रसार में पेशेवर तरीके से प्रयास नहीं करते इसलिए युवाओं में उनकी हवा तक नहीं है.''

अगला पड़ाव ई-बुक्स
हिंदी की किताबें ई-बुक प्लेटफॉर्म पर भी पहुंच चुकी हैं, और वहां उन्होंने अपने टारगेट पाठकवर्ग के बीच दस्तक देनी शुरू कर दी है. नवीन बताते हैं कि हार्पर कोलिंस से प्रकाशित कहानियां, बेजान दारूवाला का राशिफल और सुरेंद्र मोहन पाठक के पॉपुलर उपन्यास ई-बुक्स में सर्वाधिक बिकने वालों में हैं. उधर, जगरनॉट पब्लिकेशन का पूरा बिजनेस ही ऐप आधारित है. उन्होंने अंग्रेजी की किताबों के लिए ऐप लॉन्च कर दी है,  और इसको एक लाख लोगों ने डाउनलोड भी कर लिया है. यह ऐप मुफ्त है, ऐसी ही तैयारी हिंदी के लिए भी की जा रही है, और अगले दो-तीन महीने में हिंदी की ऐप भी लॉन्च कर दी जाएगी.

जगरनॉट पब्लिकेशन की हिंदी की प्रमुख रेणु अगाल कहती हैं, ''हमने हिंदी के कुछ लेखकों का चयन किया है और हम विभिन्न प्रकाशकों को भी अपनी ऐप पर लाएंगे, जिससे पाठकों को एक ही जगह ढेर सारी सामग्री मिले.'' बेशक, उनकी तैयारी ऐप पर पॉपुलर साहित्य लाने की है. लेकिन ऐप की क्या जरूरत है?  कई किताबें हम सिर्फ एक बार पढऩा चाहते हैं. उनकी तैयारी पाठकों और लेखकों के बीच रिश्ते कायम करने की भी है. वे बताती हैं, ''पाठक लेखकों से सवाल कर सकेंगे और उन्हें इसके जवाब भी मिलेंगे. इंग्लिश में तो ऐसा हो भी रहा है.'' उनकी तैयारी ऐसे लेखकों की कृतियां भी लाने की है जो कॉपीराइट के दायरे से बाहर हो चुके हैं.

हिंदी का पाठक वर्ग ऐप के लिए कितना तैयार है? राजपाल ऐंड संस के मार्केटिंग डायरेक्टर प्रणव जौहरी मानते हैं कि भारत में ई-बुक्स अभी बहुत ही शुरुआती अवस्था में है. वे कहते हैं, ''विदेश में तो कुछ समय पहले ई-बुक्स में बहुत तेजी आई थी लेकिन अब हालात बदले हैं. सिर्फ टेक्स्टबुक्स ही ज्यादा बिकती हैं. लिटरेचर और फिक्शन में तो किताबें ही पसंद की जाती हैं. भारत में ई-बुक्स का इतना इंपैक्ट नहीं है.'' ऑनलाइन बिक्री हिंदी प्रकाशक और लेखक, दोनों के लिए फायदे की बात है लेकिन लंबा सफर तय करना अभी बाकी है क्योंकि सेल्फ हेल्प, नॉन-फिक्शन और इंस्पिरेशनल बुक्स में हिंदी के लेखक न के बराबर हैं, जबकि अनूदित किताबें हिट हैं. शैलेष कहते हैं, ''हिंदी किताबों के ऑनलाइन बाजार को हजार गुना से अधिक बढ़ाया जा सकता है.''

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