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ऑनलाइन ऑर्डर के बाद जब न हो प्रोडक्ट की सही डिलीवरी तो उठाएं ये कदम

यदि आपने ऑनलाइन कोई मोबाइल खरीदा है और कंपनी ने मोबाइल की जगह आपके पते पर कुछ और सामान भेज दिया, तो कंपनी को बदलकर दोबारा मोबाइल देना होगा. अगर कंपनी ऐसा नहीं करती है, तो आप कानून का सहारा लेकर अपना पैसा या दोबारा सामान वापस पा सकते हैं. पढ़िए पूरी कानूनी प्रक्रिया.

सांकेतिक तस्वीर (Courtesy- Reuters) सांकेतिक तस्वीर (Courtesy- Reuters)
राम कृष्ण
  • नई दिल्ली,
  • 25 जुलाई 2019,
  • अपडेटेड 3:48 PM IST

अगर आपने ऑनलाइन शॉपिंग करके मोबाइल या कोई दूसरा सामान खरीदा है और वह खराब है या ऑनलाइन कंपनी की ओर से कोई दूसरा सामान मिल गया है, तो आप कानून का सहारा लेकर सही सामान या रकम वापस पा सकते हैं. इसके लिए भारतीय संसद ने 1986 में कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट बनाया है. इसके तहत हर कंज्यूमर का यह अधिकार है कि उसने पैसे देकर जिस सामान को खरीदा है, वो उसको एकदम दुरुस्त हालत में मिले. इसके अलावा अगर वारंटी या गारंटी की अवधि के दौरान उसमें कोई गड़बड़ी आए, तो उसको दुरुस्त करके या फिर बदलकर नया दिया जाए.

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अगर कोई दुकानदार, सप्लायर या कंपनी आपको खराब सामान या सर्विस देती है, तो उसको फौरन दुरुस्त करना होगा या फिर बदलकर देना होगा. इसके अलावा अगर आपने ऑनलाइन शॉपिंग की और कंपनी की ओर से कोई दूसरा सामान मिल गया, तो कंपनी की जिम्मेदारी होगी कि वो उसको बदलकर दे. मान लीजिए कि अगर आपने कोई मोबाइल ऑनलाइन साइट पर जाकर खरीदा है और कंपनी ने मोबाइल की जगह पत्थर भरकर आपके पते पर भेज दिया, तो कंपनी को बदलकर दोबारा मोबाइल देना होगा.

अगर कंपनी ऐसा नहीं करती है, तो आप कंज्यूमर फोरम में शिकायत कर सकते हैं. कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट 1986 में ऐसे मामलों की सुनवाई के लिए तीन स्तरीय कंज्यूमर कोर्ट बनाई गई हैं. अगर कोई मामला 20 लाख रुपये तक की कीमत का है, तो आप जिला कंजूमर फोरम में शिकायत कर सकते हैं. अगर मामला 20 लाख से ज्यादा और एक करोड़ रुपये से कम का है, तो आप राज्य कंज्यूमर कमीशन में केस कर सकते हैं.

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इसके अलावा अगर खरीदे गए सामान या सर्विस की कीमत एक करोड़ रुपये से ज्यादा है, तो फिर आप सीधे नेशनल कंज्यूमर कमीशन जा सकते हैं. वहीं, अगर आपने किसी मामले की शिकायत जिला कंजूमर फोरम में की है और उसके फैसले से संतुष्ट नहीं है, तो आप स्टेट कंज्यूमर कमीशन और उसके बाद नेशनल कंज्यूमर कमीशन जा सकते हैं.

किस जिले के कंज्यूमर फोरम में कर सकते हैं शिकायत

1. उस जिले के कंज्यूमर फोरम में जहां पीड़ित पक्ष या विपक्षी रहता हो या उसका कोई कार्यालय हो.

2. जहां से आपने सामान या सेवा खरीदी हो, उस जिले के कंजूमर फोरम में.

3. जहां पर कंपनी या किसी दुकान का मुख्यालय हो जिसके खिलाफ आप केस कर रहे हैं.

कौन कर सकता है केस

1. जिसने कोई सामान या सेवा पैसे देकर खरीदी हो. अगर सेवा या सामान में कोई कमी पाई जाती है, तो वो केस कर सकता है. हालांकि अगर कोई सामान या सेवा को बेचने के लिए खरीदता है, तो वह इस कानून के तहत केस नहीं कर सकता है. इसका मतलब यह हुआ कि अगर कोई फुटकर विक्रेता कोई सामान किसी थोक विक्रेता से खरीदता है, तो वह इस कानून के तहत कंजूमर नहीं माना जाएगा और वो केस नहीं कर सकता है.

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2. कोई कंपनी जिसने सामान या कोई सेवा खरीदी है और वह उसका उपभोग खुद या उसके कर्मचारी कर रहे हैं, तो वो इस कानून के तहत केस कर सकती है.

3. किसी कंज्यूमर का कोई वारिस या जिसको कंज्यूमर ने सामान या सेवा गिफ्ट में दिया है, वो खरीददार की तरफ से केस कर सकता है.

4. इसके अलावा राज्य सरकार और केंद्र सरकार भी ऐसे मामलों में केस कर सकती है.

शिकायत करने के सबसे आसान तरीके

1. अगर आप कंज्यूमर हैं, तो आप जिला कंज्यूमर फोरम, राज्य कंज्यूमर आयोग या फिर राष्ट्रीय कंज्यूमर आयोग में ऑफलाइन शिकायत कर सकते हैं.

2. कंज्यूमर मामले की शिकायत consumerhelpline.gov.in पर जाकर ऑनलाइन कर सकता है.

3. कंज्यूमर टोल फ्री नंबर 14404  या फिर 1800-11-4000 पर फोन करके भी शिकायत दर्ज करवा सकते हैं.

4. कंज्यूमर 8130009809 नंबर पर एसएमएस भेजकर भी शिकायत कर कर सकते हैं. एसएमएस मिलने के बाद कंज्यूमर को फोन किया जाएगा और उसकी शिकायत दर्ज की जाएगी.

क्या हैं उपभोक्ता के अधिकार

1. सुरक्षा का अधिकार यानी सही वस्तुओं और सेवाओं को पाने का अधिकार है. अगर कोई वस्तु या सेवा कंज्यूमर के जीवन और संपत्ति के लिए खतरनाक है, तो उसके खिलाफ सुरक्षा पाने का अधिकार है.

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2. सूचना के अधिकार यानी कंज्यूमर को वस्तुओं और सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा, शक्ति, शुद्धता, मानक और कीमत के बारे में जानकारी पाने का अधिकार है. इसका मतलब यह है कि अगर कोई दुकानदार या सप्लायर या फिर कंपनी आपको किसी वस्तु या सामान की सही जानकारी नहीं देती है, तो उसके खिलाफ आप केस कर सकते हैं.

3. चुनने का अधिकार यानी कंज्यूमर को वस्तुओं और सेवाओं को चुनने का अधिकार है. वो अपनी पसंद की सेवा या वस्तु का चुनाव कर सकता है. किसी भी कंज्यूमर को कोई विशेष वस्तु या सेवा लेने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा.

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