
फिल्म 'लाल रंग' में गाने वाले ने सही गाया है 'सहज पके तो आवै स्वाद', हालांकि यह बात इश्क के बारे में कही गई है लेकिन रणदीप हुड्डा, यह तुम्हारे फिल्मी करियर के बाबत भी सही ही है.
स्टार किड न होने और ना ही फिल्म इंडस्ट्री में कोई गॉडफादर होने का जितना खामियाजा तुम्हें भुगतना था, तुम भुगत चुके. अब तुम्हारी बारी आई है 'धुम्मा ठा ने' की. जो सफर 'मॉनसून वेडिंग' से शुरू हुआ था, उसने अब रफ्तार पकड़ी है. 'वंस अपॉन अ टाइम इन मुंबई' के बाद 'हाईवे', 'रंग रसिया', 'किक', 'मैं और चार्ल्स' और अब 'लाल रंग' में अपनी 'कसूती' यानी दमदार एक्टिंग से तुमने साबित कर दिखाया है कि 'हरियाणा के छोरे सिर्फ बोलण के ना हैं, करंण के भी सै'. और तुम तो करने में ही ज्यादा विश्वास रखते हो. अगर तुम्हारे अंदर हरियाणवी छोरे वाली जिद और दृढ़ता नहीं होती तो मेहनत और संघर्ष से जो तुम आज पा सके हो, कभी ना पाते और कब के वापस दिल्ली या रोहतक निकल लेते.
अपने काम को लेकर तो तुमने बहुत वाहवाही बटोरी है लेकिन कभी-कभी तुम टारगेट भी हुए हो, लोगों के गुस्से और आक्रोश के. तुमने कहा था कि गुड़गांव का
नाम बदलकर 'गुरुग्राम' करने की क्या जरूरत है. वह भी तब, जब ग्राम हमारा यानी हरियाणा का शब्द ही नहीं है. मैं तो तुमसे शत प्रतिशत सहमत हूं, आखिर जो हमारी
भाषा और संस्कृति का हिस्सा नहीं, उसे हम पर थोपने का राजनीति के अलावा कोई कारण हो ही नहीं सकता. और अगर नाम बदलने से ही विकास होता तो मैं अपना
नाम नेहा से बदलकर 'विकास' करने में दो दिन भी ना लगाती.
खैर कुछ लोगों के आलोचना करने से या शहर का नाम बदलने से ना तो हमारे इतिहास पर कोई फर्क पड़ेगा और ना ही हमारी सेहत पर. लेकिन इस मुद्दे को हाथों हाथ लेने से तुमने साबित कर दिया कि रणदीप 'फिल्मां में काम करंण आला एकटर ही ना सै', एक जागरुक और तर्कसंगत नागरिक भी है.
तुमने एक इंटरव्यू में कहा था कि तुम ईमानदारी और सेल्फ क्रिटिसिज्म की सराहना करते हो. और शायद यही कारण है कि तुमने जाट होते हुए जाति आधारित
आरक्षण को क्रिटिसाइज किया. हिंसक होते आंदोलन के दौरान जाट भाइयों से शांति और संयम से काम लेने को कहा और बातचीत के माध्यम से अपनी बात रखने की
अपील की. वैसे भी रोहतक जैसे समृद्ध शहर को इसी आंदोलन की आग ने खाक कर दिया. जलाया किसी ने भी हो, जला तो अपना ही घर है.
तुम उन लाखों हिंदुस्तानियों की आवाज बने हो जिनके ख्याल से आरक्षण आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखकर ही होना चाहिए. जो गरीब हैं उन्हें यह मिलना चाहिए. मैं खुद एक जाटनी हूं और इसलिए जानती हूं कि हम कभी मेहनत करने से पीछे नहीं हटे, निराशा को कभी अपने आप पर हावी नहीं होने दिया, जब खेतों में पानी नहीं था, तब भी और जब हमारी खड़ी बोली को हमारा जड़बुद्धि होना माना जाता था, तब भी. रणदीप तुम तो इसकी सबसे बड़ी मिसाल हो क्योंकि हम सब जानते हैं कि बॉलीवुड में तुम्हें कोई रिजर्वेशन नहीं मिला और तब भी कामयाबी तुम्हारे करीब है. अर जिस तरइयां तू काम कर रा सै, भोले नाथ की सू कामयाबी तन्ने छोड़ कै जाया भी न करती...
सफेद शर्ट, सफेद पैंट, सफेद जूते और गले में कई तोले सोने की चेन और हर चौक पे जिसकी कोठी हो, वही जाट नहीं. आर्थिक तौर पर कमजोर भी जाट हो सकता
है. सूखे खेत में बारिश की बूंदों के लिए तरसने वाला भी जाट हो सकता है. विचारों, भावनाओं, संस्कृति और प्रेम को ओढ़ने और पहनने वाला भी जाट हो सकता है. मैं
तुमपर किसी रोल मॉडल जैसा बर्ताव करने की ऐसी कोई जिम्मेदारी नहीं डाल रही लेकिन आज जहां तुम हो, वहां पहुंच कर तुमने खुद एक सामाजिक जिम्मेदारी ले ली
है.
आज तुम एक ऐसी शख्सियत बन गए हो जिसे देख कर बहुत से लोग प्रेरणा लेते होंगे और तुम जैसा बनने की कोशिशों में भी लगे होंगे. अंत में मैं तो तुमसे बस इतना ही कहूंगी कि अगर ऐसी ही एंडी एक्टिंग करते रहोगे तो 'सरबजीत', 'सुल्तान' और तुम्हारी आने वाली हर फिल्म कामयाबी के शिखर तक पहुंचेगी. और अगर असल जिंदगी में ऐसे ही स्पष्टवादी, रचनात्मक और आत्म-आलोचक बने रहोगे तो कुछ की नाराजगी के बावजूद करोड़ों फैंस के दिलों पर राज करते रहोगे.