
आम आदमी पार्टी में घमासान मचा हुआ है और पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल बंगलुरु में अपना इलाज करवा रहे हैं. उनके खास चहेतों ने पार्टी के दो संस्थापकों को पार्टी से निकलवाने की मुहिम छेड़ रखी है. लेकिन मामला अब और फंसता जा रहा है .
पार्टी के एक पूर्व सदस्य ने एक स्टिंग दिखाकर पार्टी के आक्रामक नेताओं की बोलती बंद कर दी. इतना ही नहीं कांग्रेस के एक पूर्व विधायक के खुले बयान के बाद पार्टी में संकट और भी गहरा गया है. ये दोनों मामले पार्टी को कांग्रेस की मदद से सत्ता नशीन करने के बारे में हैं. उनसे पता चलता है कि फरवरी के चुनाव के पहले पार्टी सत्ता में आने के लिए किस कदर बेचैन हो गई थी और अपने सिद्धांतों को ताक पर रखकर कांग्रेसी विधायकों से समझौता करने और उन्हें खरीदने को बेकरार थी. यह पार्टी सिद्धांतों और उसूलों में यकीन रखने वाले लोगों का एक बड़ा मंच बना जिसमें देश ही नहीं दुनिया के कोने-कोने से लोगों ने शिरकत की. कई तो ऐसे भी हैं जिन्होंने अपनी आकर्षक नौकरियां ताक पर रख दीं और सिद्धांतों की खातिर पार्टी का काम करने लगे. लेकिन अब यह भ्रम टूटता दिख रहा है.
आपसी कलह और अपने को सुपीरियर दिखाने की चाहत में कुछ नेता दूसरों को नीचे गिराने में लग गए हैं. नतीजा सामने है. पार्टी के बाहर और भीतर कोहराम मचा हुआ है. जनता ही नहीं प्रतिबद्ध कार्यकर्ता भी सवाल पूछ रहे हैं. उधर एक और संस्थापक अंजलि दमानिया ने भी पार्टी छोड़ दी है. उन्हें महाराष्ट्र का केजरीवाल कहा जाता है. वह पार्टी में छिड़े घमासान और टोपी उछालने की घटनाओं से आहत हैं. उनके अलावा सैकड़ों कार्यकर्ता भी पार्टी छोड़ने को तैयार हैं. अगर ऐसा होता है तो कोई आश्चर्य नहीं कि पार्टी मुट्ठी भर नेताओं का जमावड़ा भर बनकर रह जाएगी.
अगर ध्यान से देखा जाए तो हम पाएंगे कि पार्टी ने वे सभी काम किए जिसका आरोप उसने दूसरों पर मढ़ा था. पार्टी को सत्ता में दोबारा लाने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाए गए. उसने बीजेपी पर विधायकों को खरीदने की कोशिश का आरोप लगाया था लेकिन अब पता चल रहा है कि वह खुद ही इस गेम में थी. पार्टी के कई सदस्यों पर आरोप लगा कि वे वोटरों को खरीदने की कोशिश कर रहे थे. इतना ही नहीं पार्टी ने विपक्षी दलों पर शराब बांटने का भी आरोप लगाया था लेकिन उसके ही उम्मीदवार के रिश्तेदार के घर से बड़े पैमाने पर शराब की बरामदगी हुई.
मारपीट की कुछ घटनाओं में भी उसके कार्यकर्ताओं का नाम सामने आया लेकिन पार्टी उन सबका आरोप बड़ी सफाई से दूसरों पर मढ़ती रही. यानी उसमें एक आम राजनीतिक दल के तमाम अवगुण दिखने लगे. लेकिन अरविंद केजरीवाल इन सब को बड़ी सफाई से छुपाते रहे. अब जबकि कई मामले एक साथ सामने आने लगे हैं अरविंद केजरीवाल की अनुपस्थिति लोगों को खासकर उनके समर्थकों को खटकने लगी है. ऐसा नहीं है कि वह कोई बयान नहीं दे सकते, लेकिन वह जानते हैं कि एक चुप्पी हजार वाक्यों के बराबर है. और यह समय ऐसा है कि गलतबयानी उल्टे गले पड़ सकती है. ऐसे में चुप रहना उन्हें पसंद आ रहा है. फिलहाल पार्टी की छवि के बारे में सोचने का वक्त नहीं है, अपने बारे में सोचने का वक्त है.