
देश की एक और एयरलाइंस बंदी के कगार पर है. विजय माल्या की शानदार एयरलाइंस किंगफिशर को लोग अभी भूले भी नहीं थे कि अब मारन परिवार की एयरलाइंस धन के अभाव में लड़खड़ाती दिख रही है. बुधवार की सुबह उसकी एक भी उड़ान नहीं हो सकी. कारण बताया गया कि विमानों को ईंधन सप्लाई करने वाली कंपनियों ने अपने हाथ खड़े कर दिए. उनका कहना है कि स्पाइसजेट के पास उनका काफी बकाया हो गया है और अब उधार देना संभव नहीं होगा.
बुधवार की घटना के बाद अब इस निजी एयरलाइंस के भविष्य के बारे में चिंता होनी ज़ाहिर है. इस एयरलाइंस की एक खासियत यह रही है कि इसने ही आम भारतीय को विमान में बैठने का मौका दिया और एविएशन इंडस्ट्री को एक दिशा दी. लेकिन आज इसे सहारे की जरूरत है. लगातार घाटे में रहने के कारण इसका वित्तीय स्वास्थ्य चौपट हो गया है. इसने खर्च में कटौती करने के लिए लीज पर लिये विमान भी लौटा दिए और कई रूटों पर उड़ानें भी रद्द कर दीं. फिर भी इसकी हालत में सुधार नहीं हो रहा. अब इसे पूरी तरह से चलाने के लिए कम से कम 1500 करोड़ रुपये चाहिए. यह रकम इतनी बड़ी है कि मारन बंधु अपनी ओर से नहीं लगा सकते. अभी तो वे एयरसेल-मैक्सिम के कानूनी विवाद और सीबीआई के पचड़े में फंसे हुऐ हैं. उनका औद्योगिक साम्राज्य लड़खड़ा रहा है और ऐसे में इतनी बड़ी रकम उगाहना तुरंत संभव नहीं होगा. सरकार प्रयास कर रही है कि उसे कुछ लोन मिल जाए ताकि वह अपना कामकाज सुचारू रूप से चला सकें.
स्पाइसजेट कोई छोटी-मोटी एयरलाइंस नहीं है, यह देश-विदेश के 46 शहरों में उड़ान भरती है. इसमें 20,000 लोग सीधे या परोक्ष रूप से काम करते हैं. इस एयरलाइंस के बंद हो जाने पर उनके परिवारों का क्या होगा, इस बारे में भी सोचना होगा. सिर्फ यह कह देने से कि यह एयरलाइंस कर्ज नहीं चुका पा रही है, उस पर कार्रवाई करना गलत होगा. किंगफिशर के डूबने से कितने परिवारों पर गाज गिरी यह सभी जानते हैं.
लेकिन यह समस्या क्यों खड़ी हुई, इस पर भी एक नज़र डालना उचित होगा. सरकार ने निजी एयरलाइनों को उड़ान भरने की इजाजत तो दे दी लेकिन कोई समुचित एविएशन पॉलिसी नहीं बनाई. जेट ईंधन के दाम इतने ज्यादा थे कि एयरलाइनों की कमर पतली हो गई. राज्यों में तो इस पर 20 फीसदी से भी ज्यादा वैट लगा हुआ है. यह सरकारी लूट है. इस तरह से वैट लगाना सरासर गलत है. राज्य सरकारें राजस्व कमाने के लिए रास्ते तो ढूंढ़ती नहीं हैं सो वे पेट्रोल-डीजल पर मनमाने ढंग से टैक्स लगाती हैं. दूसरा मामला है नए एयरपोर्ट का, जहां एयरलाइनों को बहुत किराया देना पड़ रहा है. कर्मचारियों का वेतन बढ़ता जा रहा है और अन्य तरह के खर्च भी बढ़ गए हैं. ऐसे में वे कैसे अपने को लाभदायक स्थिति में रख सकती हैं? विदेशी निवेश के रास्ते में भी बहुत रोड़े हैं और वहां से पैसा लाना कोई आसान काम नहीं है.
बहरहाल स्पाइसजेट को बचाए रखना बेहद जरूरी है और इसके लिए इसके प्रमोटरों को आगे बढ़कर निवेश करना ही होगा. वे बैंकों के कर्ज के भरोसे नहीं रह सकते. उधर सरकार को चाहिए कि वह एक समुचित और विस्तृत विदेश नीति बनाए और जेट ईंधन पर लगाए गए भारी भरकम वैट को कम करें. यह इंडस्ट्री देश के लिए जरूरी है और इसमें रोजगार देने की अपार संभावना है. उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार इस बारे में दूरगामी फैसले लेगी न कि स्पाइसेजट को महज लोन दिलाकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेगी.