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राष्ट्रपति चुनाव के लिए विपक्ष ने कसी कमर, सरकार के पत्ते खोलने का इंतजार

चुनाव आयोग ने राष्ट्रपति चुनाव की घोषणा कर दी, तो विपक्षी पार्टियां भी बेसब्री से सरकार के पत्ते खोलने तक अपने उम्मीदवार को तलाशने में जुटी हैं.

विपक्षी एकजुटता का प्रयास विपक्षी एकजुटता का प्रयास
कुमार विक्रांत
  • नई दिल्ली,
  • 07 जून 2017,
  • अपडेटेड 9:57 PM IST

चुनाव आयोग ने राष्ट्रपति चुनाव की घोषणा कर दी, तो विपक्षी पार्टियां भी बेसब्री से सरकार के पत्ते खोलने तक अपने उम्मीदवार को तलाशने में जुटी हैं. विपक्षी एकता का नेतृत्व करते हुए सोनिया गांधी 17 विपक्षी पार्टियों के नेताओं के साथ लंच पर इसकी चर्चा कर चुकी हैं, इसके पहले तमाम बड़े विपक्षी नेताओं से सोनिया-राहुल मुलाकात की थी. लेकिन अभी तक किसी एक विपक्षी उम्मीदवार का नाम फाइनल नहीं हो सका है.

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अभी तक चार नाम सामने आए हैं. उनमें सबसे पहला नाम शरद पवार का था, लेकिन पावर सोनिया को ना कह चुके हैं. बाद में आधिकारिक तौर पर एनसीपी ने साफ कर दिया कि, सोनिया ने पवार को आफर किया था, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया. दरअसल, कांग्रेस समेत सभी विपक्षी जानते हैं कि, वाईएसआर कांग्रेस के समर्थन के बाद नंबर गेम सरकार के हक़ में है. सरकार अन्नाद्रमुक और टीआरएस के संपर्क में भी है. इसलिए चुनाव हारने के लिए पवार भला कैसे हां करते.

हालांकि, पवार उस सूरत में तैयार हो सकते हैं, जब सत्ता पक्ष भी उनके नाम पर सहमत हो, जिसकी उम्मीद कम से कम विरोधियों को नहीं ही है. हाल ही में पावर ने प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात कर नई अटकलों को ज़रूर हवा दे दी है. सूत्रों के मुताबिक, पवार की कोशिश ये भी है कि, सरकार से ऐसा उम्मीदवार आए जिस पर विपक्ष को भी ऐतराज ना हो जिससे चुनाव की नौबत ना आए.

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विपक्ष में गोपालकृष्ण गांधी का नाम सबसे आगे
इसके अलावा शरद यादव और मीरा कुमार के नाम की भी चर्चा हो चुकी है, लेकिन इनका बैकग्राउंड राजनैतिक है. ऐसे में सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी ने महात्मा गांधी के प्रपौत्र गोपालकृष्ण गांधी का नाम सुझाया, जो फिलहाल रेस में आगे हैं. साथ ही कांग्रेस साफ कर चुकी है कि, विपक्षी एकता के लिए वह कांग्रेस से बाहर के उम्मीदवार के लिए तैयार है.

दरअसल, मायावती, येचुरी, पवार, अखिलेश, ममता, नीतीश, करुणानिधि, लालू समेत 17 दलों का अंकगणित भी सरकार को नहीं पछाड़ सकता. साथ ही बीजद और टीआरएस को भी साथ लाने की कोशिशें हो रही हैं. विपक्षी दलों को उम्मीद है कि AAP और ओवैसी बीजेपी के खिलाफ ही वोट करेंगे. अन्नाद्रमुक भी पत्ते नहीं खोल रही. लेकिन ये सब मिलकर भी सरकार के उम्मीदवार को नहीं हरा सकते. हां, विपक्षी शिवसेना सरीखे सरकार के सहयोगियों को जरूर तोड़ने की फिराक में है. कुल मिलाकर ये सारी कवायद राष्ट्रपति चुनाव जीतने से ज़्यादा 2019 के पहले महागठबंधन बनाने की दिशा में एक बड़ा क़दम है.

हालांकि, विपक्षी दलों की पसंद राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी भी थे, लेकिन उन्होंने भी साफ कर दिया कि, वो चुनाव नहीं लड़ेंगे यानी सरकार और विपक्ष की सहमति पर ही दोबारा राष्ट्रपति बन सकते हैं, वहीं सरकार के सूत्र साफ कर चुके हैं कि, वो अपना उम्मीदवार देंगे और प्रणव को फिर उम्मीदवार नहीं बनाएंगे.

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सरकार का सेकुलर उम्मीदवार होगा स्वीकार!
ऐसे में सियासी तक़ाज़े के तहत विपक्ष पहले सरकार के उम्मीदवार का नाम सामने आने देना चाहता है. जिसके बाद ही वो तय करेगा कि, सरकार के साथ उस उम्मीदवार पर सहमति बन सकती है कि नहीं. वैसे विपक्षी मानते हैं कि, सरकार का उम्मीदवार सेक्युलर हो और सबको स्वीकार्य हो. कई नेताओं कहना है कि हम चाहेंगे कि, ऐसा हो. लेकिन हमको मोदी सरकार से उम्मीद कम है, इसीलिए हम साथ-साथ अपने उम्मीदवार की तलाश भी कर रहे हैं.

समन्वय के लिए बनेगा ग्रुप
इस बीच सोनिया गांधी ने विपक्षी पार्टियों के समन्वय के लिए सभी पार्टियों से नेताओं का एक छोटा ग्रुप बनाने का फैसला किया है, जल्दी ही उसका गठन कर दिया जाएगा. इस मसले पर कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, 'सभी विपक्षी दलों से बात करके ये फैसला हुआ है कि राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए सोनिया गांधी सभी दलों से कुछ नेताओं की एक कमेटी बना दें, जो सबके बीच समन्वय और राय बनाने का काम करेगी.' सूत्रों के मुताबिक, शरद पवार को इस कमेटी के प्रमुख पद का आफर दिया जाएगा, साथ ही इसमें सीताराम येचुरी को भी रखा जाएगा. ममता और नीतीश से बात की जा रही है कि, वो या तो खुद कमेटी का हिस्सा बन जाएं या अपने प्रतिनिधि को बना दें.' कुल मिलाकर रायसीना हिल्स की रेस अभी जारी है.

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