
राजद्रोह कानून का दायरा क्या है और किन परिस्थितियों में इसे लागू किया जा सकता है, इस पर विधि आयोग की रिपोर्ट गृह मंत्रालय को मिलनी बाकी है. वहीं मोदी सरकार के कार्यकाल के तीन साल के आंकड़े बताते हैं कि राजद्रोह के आरोपियों पर दोष साबित करने की दर बहुत कम रही है.
केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से संसद को उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2014 से 2016 के बीच देश में 179 लोगों को गिरफ्तार किया गया जिनमें से सिर्फ 2 पर ही दोष साबित किया जा सका. आंकड़ों से साफ है कि राज्यों की पुलिस आरोपियों के खिलाफ दोष साबित करने में नाकाम रही.
2014 से 2016 के बीच जिन दो आरोपियों पर राजद्रोह के आरोप साबित हुए उनमें से एक झारखंड में 2014 में राज्य पुलिस की ओर से किया गया. इसी तरह आंध्र प्रदेश में पुलिस 2016 में एक आरोपी पर राजद्रोह का आरोप साबित करने में कामयाब रही.
देशद्रोह कानून को लेकर 2016 में जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में हुए विवाद को लेकर बहुत बहस हुई थी. 2016 में पूरे साल में देश भर में सिर्फ एक आरोपी ही देशद्रोह में दोषी साबित हुआ. 2016 में देश राजद्रोह के कुल 35 मामले दर्ज हुए और इनमें 48 लोगों को गिरफ्तार किया गया. 26 के खिलाफ चार्जशीट दायर हुई और आंध्र प्रदेश में सिर्फ एक आरोपी पर दोष साबित हुआ. 2016 में राजद्रोह के आरोप में सबसे ज्यादा 12 गिरफ्तारियां हरियाणा में हुई. इनमें से 8 के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई लेकिन किसी पर भी आरोप साबित नहीं हो सका.
अधिकारी ने इसके पीछे तुष्टिकरण, वोट बैंक पॉलिटिक्स जैसे कारण भी गिनाए जिनकी वजह से पुलिस अक्सर दबाव में झुक जाती है और आरोपी छूट जाते हैं. तब तीन दिन में 30 मौत हुई थीं. ये पुलिस की नाकामी की ओर ही इशारा करता है कि उस साल किसी पर राजद्रोह का आरोप साबित नहीं हो सका.
2016 में ही राजद्रोह के आरोप में राजस्थान पुलिस ने 7 लोगों को गिरफ्तार किया. वहीं केरल, मध्य प्रदेश और दिल्ली में चार चार मामले दर्ज हुए लेकिन कहीं भी आरोप साबित नहीं हो सका. आंध्र प्रदेश में एक गिरफ्तारी हुई और आरोपी पर दोष साबित हुआ.
2015 में राजद्रोह के 30 केस दर्ज हुए जिनमें 73 लोग गिरफ्तार हुए. बिहार में सबसे ज्यादा 9 मामले दर्ज हुए जिनमें 40 लोगों को गिरफ्तार किया गया. दोष साबित करना तो दूर बिहार पुलिस किसी आरोपी के खिलाफ चार्जशीट दायर करने में ही नाकाम रही.
2014 में देश में राजद्रोह के 47 मामले दर्ज हुए जिनमें 58 लोगों को गिरफ्तार किया गया. 16 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल हुई. लेकिन झारखंड में सिर्फ एक आरोपी पर ही दोष साबित हो सका.
2014 से 2016 तक के आंकड़े बताते हैं कि जम्मू और कश्मीर में सिर्फ 2015 में राजद्रोह का एक केस दर्ज हुआ जिसमें कोई प्रगति नहीं हो सकी. हाल में अलगाववादी संगठन दुख्तराने मिल्लत की प्रमुख आसिया अंद्राबी और उसकी दो सहयोगी महिलाओं पर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने राजद्रोह का आरोप लगाया है. इन्हें श्रीनगर से दिल्ली लाया गया और इस हफ्ते के शुरू में 30 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.
केंद्रीय गृह मंत्रालय के मुताबिक नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के पास 2017 का डेटा उपलब्ध नहीं है, इसे अभी तक संकलित नहीं किया जा सका है.राजद्रोह कानून 2016 में जेएनयू विवाद सामने आने के बाद काफी सुर्खियों में रहा. इसमें जेएनयू के तीन छात्रों को गिरफ्तार किया गया. इन पर 9 फरवरी 2016 को कथित तौर पर देशविरोधी नारे लगाने का आरोप था. हाल ही में जेएनयू प्रशासन ने उमर खालिद को निष्कासित किया और कन्हैया कुमार पर 10,000 रुपए का जुर्माना लगाया.
राजद्रोह कानून को कई आलोचक बहुत कठोर बताते हैं. 28 दिसंबर 2015 को कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने प्राइवेट मेम्बर बिल के जरिए आईपीसी की धारा 124 ए (राजद्रोह) को नए प्रावधान से बदलने की मांग की.
गृह मंत्रालय ने संसद को बताया कि अभी राजद्रोह कानून के दायरे और इस्तेमाल को लेकर विधि आयोग के अध्ययन की रिपोर्ट मिलना बाकी है. गृह मंत्रालय ने पूर्व में विधि और न्याय मंत्रालय से विधि आयोग से आग्रह करने के लिए कहा था कि वह 124 ए (राजद्रोह) के प्रावधानों के इस्तेमाल का अध्ययन करें और संशोधन सुझाए.
गृह राज्य मंत्री हंसराज अहीर के मुताबिक विधि आयोग धारा 124 ए का निरीक्षण कर रहा है. ड्राफ्ट रिपोर्ट तैयार की जा रही है कि राजद्रोह कानून का दायरा क्या है और किन परिस्थितियों में इसे लागू किया जा सकता है. जून में इस पर चर्चा हुई थी लेकिन रिपोर्ट को अंतिम रूप दिया जाना अभी बाकी है.
राज्यसभा संसद विजय कुमार ने सवाल में पूछा कि क्या सरकार इससे अवगत है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर राष्ट्रवाद विरोधी घटनाएं बढ़ रही हैं?आईपीसी की धारा 124 ए ( राजद्रोह) के मुताबिक जो कोई भी मौखिक अथवा लिखित शब्दों, चिन्हों अथवा अन्य प्रकार से भारत में विधि संपन्न रूप से स्थापित सरकारों के विरुद्ध नफरत, अवमानना अथवा असंतोष भड़काने का प्रयास करता है, उसे उम्र कैद और अथवा तीन साल तक बढ़ाई जा सकने वाली सजा सुनाई जा सकती है. विधि आयोग अब ‘राजद्रोह’ की स्पष्ट परिभाषा तय करने के लिए काम कर रहा है.