
जान बख्शना उनका पेशा है, लेकिन हिंदुस्तान में डॉक्टरों को खुद जान का जोखिम उठाकर काम करना पड़ता है. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) की ताजा रिपोर्ट कुछ ऐसा ही दावा करती है. रिपोर्ट के मुताबिक 75 फीसदी के ज्यादा डॉक्टर काम के दौरान किसी ना किसी तरह की हिंसा का सामना कर चुके हैं.
इन मौकों पर हमलों का शिकार होते हैं डॉक्टर
आईएमए की इस रिसर्च के नतीजे बताते हैं कि डॉक्टरों और दूसरे मेडिकल कर्मचारियों पर हमले का सबसे ज्यादा खतरा विजिट के घंटों के दौरान होता है. ऐसे हालात अक्सर इमरजेंसी के दौरान या मरीजों की सर्जरी के बाद भी पेश आते हैं.
'लगातार बढ़ रही हिंसा'
अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रबंधन एवं शोध संस्थान के डीन एके अग्रवाल ने कहा, 'मेडिकल पेशे से जुड़े लोगों के खिलाफ एक दशक से ज्यादा वक्त से हिंसा हो रही है. लेकिन पिछले कुछ सालों में ऐसे मामलों की तादाद चिंताजनक हालात तक पहुंच गई है. मरीज अक्सर मेडिकल कर्मियों के साथ गाली-गलौज करते हैं या फिर शारीरिक हिंसा पर उतर आते हैं. ऐसी वारदातें साल-दर-साल पूरे देश में बढ़ रही हैं.' अग्रवाल शनिवार को दिल्ली में इस विषय पर आयोजित एक गोष्ठी में बोल रहे थे.
'मरीजों और डॉक्टरों के बीच भरोसे की कमी'
अग्रवाल के मुताबिक डॉक्टरों और मरीजों के बीच भरोसे की कमी बेहद चिंता की बात है. उनका कहना था कि मेडिकल कर्मियों में संवाद के गुणों की कमी और मानवीय संवेदना का अभाव भी इस स्थिति के लिए जिम्मेदार है.
हमलों के बढ़ते मामले
डॉक्टरों और मरीजों के बीच हिंसक विवादों की खबरें आए दिन देश के अलग-अलग हिस्सों से आती रहती हैं. पिछले महीने इस मसले पर महाराष्ट्र के रेजीडेंट डॉक्टरों ने सामूहिक अवकाश लिया था. मामले में अदालत को दखल देना पड़ा था. दिल्ली के सभी बड़े सरकारी अस्पतालों के रेजीडेंट डॉक्टर भी महाराष्ट्र के डॉक्टरों के समर्थन में एक दिन की सामूहिक छुट्टी पर चले गए थे.