
कानून कहता है कि जीवनरक्षक दवाओं की आपूर्ति किसी भी कीमत पर नहीं रोकी जा सकती. लेकिन फिर भी गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल के लिए ऑक्सीजन की सप्लाई रोकी गई. अब सवाल ये है कि क्या इसके लिए सिर्फ वो कंपनी जिम्मेदार है जो अस्पताल को ऑक्सीजन सप्लाई कर रही थी? क्योंकि कंपनी की दलील है कि छह महीने में बकाया 69 लाख तक जा पुहंचा था. उन्हें आगे दूसरी कंपनी को पैसे देने थे, लिहाजा सप्लाई बंद करनी पड़ी.
अस्पताल प्रशासन की लापरवाही
गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में हुई मौतों के मामले में अब अस्पताल प्रशासन अलग-अलग चिट्ठियां जारी कर चाहे लाख सफाई दे. लेकिन हक़ीकत यही है कि अस्पताल प्रशासन ने अगर पहले ही ऑक्सीजन की कमियों से संबंधित्त चिट्ठियां पढ़ ली होतीं तो शायद हालात इतने भयानक ना होते. अब अस्पताल प्रशासन की लापरवाहियों पर रोया ही जा सकता है. अस्पताल में ऑक्सीजन की सप्लाई करनेवाली कंपनी पुष्पा सेल्स प्राइवेट लिमिटेड ने करीब पांच महीने पहले यानी 22 मार्च 2017 को बीआरडी मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल को चिट्ठी लिखी थी. कंपनी ने लिखा था कि 28 फरवरी तक अस्पताल पर कंपनी का बकाया 42,70,294 रुपये का हो चुका है. टेंडर के मुताबिक बिल सौंपने के 15 से 20 दिनों के अंदर भुगतान करने का भी नियम भी है. लेकिन रुपये नहीं मिले हैं, जबकि इससे पहले भी भुगतान के लिए कई बार पत्रचार किया गया है.
कर्मचारियों ने किया था प्रशासन को आगाह
कागज़ों पर लिखे बातों को पढ़कर भी अस्पताल प्रशासन ने अनदेखी कर दी. अस्पताल के कर्मचारियों ने भी अस्पताल प्रशासन को 10 अगस्त 2017 को चिट्ठी लिखी थी. तब तक ऑक्सीजन की सप्लाई धीमी पड़ने लगी थी. कर्मचारियों ने इस चिट्ठी में उन्हें याद दिलाया कि अस्पताल में 3 अगस्त को ही ऑक्सीजन ख़त्म होने की जानकारी बाल रोग विभाग के हेड को दे दी गई थी. इसके मुताबिक ऑक्सीजन की रीडिंग 900 पर है, जिससे सिर्फ़ रात तक ही सप्लाई संभव है. चिट्ठी में लिखा कि ऑक्सीजन सप्लायर कंपनी के भी बग़ैर भुगतान के और सप्लाई करने से मना कर दिया है. इससे सिर्फ़ बाल रोग विभाग ही नहीं, बल्कि पूरे अस्पताल के मरीज़ों की जान को ख़तरा है. चिट्ठियों के ज़रिए अस्पताल प्रशासन से लेकर ऑक्सीजन सप्लाई करनेवाली कंपनी तक आपसीं खींचतान में लगे रहे. नतीजा 64 बच्चों की सांसें घुट गईं.