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पद्मावती पर सियासी सूरमाओं ने खींचीं तलवारें, सेंसर बोर्ड का फिर क्या काम?

अगर रानी पद्मावती को हिंदुस्तान का गौरवशाली इतिहास मान लें तो भी ये 714 साल पुरानी बात है जब अपने सम्मान और सतीत्व के लिए चित्तौड़ की रानी ने जौहर कर लिया था.

पद्मावती पर सियासी सूरमाओं ने खींचीं तलवारें पद्मावती पर सियासी सूरमाओं ने खींचीं तलवारें
परमीता शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 22 नवंबर 2017,
  • अपडेटेड 8:01 AM IST

फिल्म पद्मावती कब आएगी, इसकी तारीख किसी को पता नहीं, यहां तक कि अभी तो सेंसर बोर्ड को भी इसकी जानकारी नहीं. लेकिन पद्मावती पर छिड़ी राजनीति के बार में सब जानते हैं. 14वीं सदी की चित्तौड़ की उस रानी के बहाने सियासत के सूरमाओं ने तलवारें निकाल ली हैं.

अगर रानी पद्मावती को हिंदुस्तान का गौरवशाली इतिहास मान लें तो भी ये 714 साल पुरानी बात है जब अपने सम्मान और सतीत्व के लिए चित्तौड़ की रानी ने जौहर कर लिया था. लेकिन 21वीं सदी के हिंदुस्तान में सतीत्व की उस देवी की सियासी अग्निकुंड में हर रोज परीक्षा ली जा रही है. इतिहास की धधकती आग को राजनीतिक तंदूर बनाने वाले शायद नहीं समझते कि इसकी लपटों में देश का बहुत कुछ झुलस रहा है. राजपूतों की आन-बान-शान अब सियासी दुकान पर बिक रही है.

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जिनके हाथों में कानून का डंडा है, वो भी, जिनके हाथों में सत्ता का झंडा है, वो भी और जो हुकूमत का पंडा है, वो भी, सभी एक स्वर में बोल रहे हैं कि संजय लीला भंसाली की पद्मावती नहीं चलेगी तो नहीं चलेगी. आखिर आस्था का सवाल जो ठहरा.

बस राज्यों की चौहद्दी बदलती है लेकिन एक फिल्म पर मचा महाभारत नहीं थमता. उत्तर प्रदेश के योगी हों, मध्य प्रदेश के चौहान हों, महाराष्ट्र के देवेंद्र हों, हरियाणा के खट्टर हों, राजस्थान की रानी हों या पंजाब वाले कांग्रेस के महाराजा हों, पद्मावती पर सियासी प्रपंच ने सबको एकजुट कर दिया है.

मान लिया कि पद्मावती इतिहास के माथे पर लिखी नारी मर्यादा की एक सशक्त हस्ताक्षर हैं. ये भी मान लिया कि 700 साल पुराना इतिहास कइयों को प्रेरणा देता है लेकिन जब किसी ने फिल्म देखी ही नहीं तो हाय तौबा क्यों और इस प्रलाप का आलम देखिए कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कहती हैं कि फिल्म का विरोध अभिव्यक्ति का गला घोंटना है लेकिन उनके ही मंत्री कहते हैं कि नहीं जी, ऐसी फिल्म कैसे चलेगी.

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सवाल राजपूतों के सम्मान का है या वोट के फरमान का, जिस गुजरात में वोट पड़ने वाले हैं, वहां राजपूतों की संख्या करीब 8 फीसदी है. जबकि पूरे देश में राजपूतों की संख्या करीब करीब 4 फीसदी है, तो क्या इसलिए भंसाली की पद्मावती बड़े पर्दे पर आएगी या नहीं आएगी, ये फैसला सेंसर बोर्ड से पहले सियासी बोर्ड करने लगे हैं.

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