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केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, हंसराज अहीर, गिरिराज सिंह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 'पद्मावती' को लेकर फिल्म मेकर्स को सलाह दी है कि वो लोगों की भावनाओं का भी ख्याल रखें. सभी मान रहे हैं कि किसी तबके की भावनाओं को ठेस नहीं लगनी चाहिए.
लेकिन इस विवाद से पहले उस पहलु पर गौर करते हैं कि देश बनता कैसे है, क्योंकि आजादी के बाद कोई निजाम या कोई भी रियासत भारत सरकार के अधीन आने को तैयार नहीं था. सब की भावना खुद को स्वतंत्र रखने की थी. लेकिन सरदार पटेल सिर्फ देश की भावना को समझते थे और जब जूनागढ़ रियासत ने खुले तौर पर विरोध कर दिया तो सरदार पटेल ने जूनागढ़ की घेराबंदी सेना से कर दी.
जूनागढ़ को तेल-कोयले की सप्लाई, हवाई-डाक संपर्क रोक कर आर्थिक घेराबंदी कर दी. और आखिरकार 26 अक्टूबर 1947 को जूनागढ़ भारत में शामिल हो गया. इसको देखकर तो यही साफ होता है कि देश भावनाओं से नहीं संविधान से चलता है और संविधान के आड़े कभी किसी की भावनाएं नहीं आतीं.
1971 में इंदिरा गांधी ने प्रिवी पर्स खत्म किया तो तमाम राजपरिवारों की भावनाएं आहत हुईं, विरोध भी हुआ. लेकिन निर्णय भारत सरकार ने लिया था और संविधान में संशोधन कर इसे समाप्त किया गया, यानी देश भावनाओं के आधार पर नहीं बल्कि संविधान की दायरे में संवैधानिक संस्थाओं के जरिए ही चलता है.
दरअसल जब फिल्म के चलने या ना चलने को लेकर सेंसर बोर्ड बना हुआ है तो फिर संवैधानिक पदों पर बैठे मंत्री, जो देश के लिए नीतियां तय करते हैं, वही भावनाओं को महत्वपूर्ण मानने लगे हैं, तो अगला सवाल यही है कि क्या देश में संविधान के तहत कानून का राज है या फिर भवनाओं के आसरे सियासी राज.