Advertisement

सही कहा इमरान, लेकिन भारत नहीं सिर्फ PAK के लिए मूर्खता है परमाणु युद्ध की सोच

आखिर इमरान खान ने युद्ध की सोच रखने वाले को मूर्ख अथवा पागल क्यों कहा? इस सवाल पर डॉ. सौम्यजीत रे का कहना है कि दरअसल लोकतंत्र की सबसे बड़ी खामी है कि इसके जरिए किसी देश के शीर्ष पद पर कोई भी आसीन हो सकता है. इमरान का ये बयान सिर्फ कट्टरवादी सोच का परिचायक है...

करतारपुर कॉरिडोर का शिलान्यास करते इमरान..(फोटो- रॉयटर) करतारपुर कॉरिडोर का शिलान्यास करते इमरान..(फोटो- रॉयटर)
राहुल मिश्र
  • नई दिल्ली,
  • 29 नवंबर 2018,
  • अपडेटेड 12:00 PM IST

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने बुधवार को करतारपुर कॉरिडोर के शिलान्यास के वक्त दावा किया कि भारत और पाकिस्तान दोनों न्यूक्लियर हथियारों से लैस देश हैं. इमरान ने कहा- इसलिए दोनों देशों के बीच किसी तरह के युद्ध के बारे में सोचना मूर्खता से भरा का काम है. अपने इस बयान के जरिए इमरान खान ने दलील दी कि चूंकि दोनों देश न्यूक्लियर हथियारों से लैस हैं लिहाजा सामरिक शक्ति में दोनों देश बराबर हैं और युद्ध की स्थिति में दोनों देशों का नष्ट हो जाना तय है.

Advertisement

हालांकि दोनों देशों की वास्तविक स्थिति और मौजूदा दौर में युद्ध के प्रचलित सिद्धांतों की मानें तो भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध में अगर न्यूक्लियर हथियारों का इस्तेमाल होता है तो जहां भारत को एक बड़ी क्षति पहुंचने की आशंका है वहीं एक बात तय है कि दुनिया के नक्शे से पाकिस्तान पूरी तरह गायब हो जाएगा.

इस बात को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में असिसटेंट प्रोफेसर और नेशनल सिक्योरिटी के क्षेत्र में काम करने वाले डॉ सौम्यजीत रे विस्तार से समझाते हैं. सौम्यजीत रे के मुताबिक कई दशक से भारतीय सेना के टॉप ब्रास का दावा है कि पाकिस्तान द्वारा न्यूक्लियर हथियारों के साथ किसी दुस्साहस को मुंहतोड़ जवाब देने का साम्यर्थ भारत में है. इस दावे के मुताबिक यदि पाकिस्तान किसी तरह का नाभिकीय हमला भारत पर करने की कोशिश करता है जहां भारत उस हमले को विफल करने से लेकर जवाबी हमले में पूरे समूचे पाकिस्तान को धरती के नक्शे से साफ कर सकता है.

Advertisement

नेहरू इंदिरा रहे नाकाम, क्या PM Modi बनाएंगे भारत को P-6?        

लिहाजा, इमरान खान का दावा सच्चाई से कोसो दूर है. भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की स्थिति में न्यूक्लियर हथियारों का इस्तेमाल हो अथवा न हो और युद्ध पूरी तरह से पारंपरिक हथियारों के सहारे लड़ा जाए तो भी एक बात साफ है कि युद्ध का नतीजा भारत के पक्ष में रहेगा.

दरअसल इमरान खान ने अपनी यह दलील दशकों पहले अमेरिकी और यूएसएसआर (मौजूदा रूस) के बीच शीत युद्ध के दौरान आए युद्ध के सिद्धांत MAD (Mutually Assured Destruction) पर आधारित है. यह सिद्धांत कहता है कि यदि न्यूक्लियर हथियारों से लैस दो देश युद्ध के दौरान न्यूक्लियर हथियारों का इस्तेमाल करते हैं तो दोनों देशों में जनजीवन समाप्त हो जाएगा. हालांकि इमरान खान ने इस सिद्धांत को और इस सिद्धांत पर शीत युद्ध के वक्त उठे तमाम पक्षों को नजरअंदाज कर दिया.

इस सिद्धांत में एक पक्ष का मानना है कि जब दो देशों के बीच भौगोलिक और सांख्यिक तौर पर बड़ा अंतर मौजूद हो तो न्यूक्लियर वॉर की स्थिति में जहां भूगोल और जनसंख्या में बड़ा देश पहले न हमला करने की संधि पर रहे और उसपर हमला होने की स्थिति में उसे एक भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है. जेएनयू के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के एक अन्य एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. राजन कुमार ने बताया कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद और शीत युद्ध के दौरान यूएसएसआर के पास अमेरिका से अधिक न्यूक्लियर हथियारों का जखीरा मौजूद था. इसके बावजूद शीत युद्ध के दशकों के दौरान अपनी अर्थव्यवस्था, लोकतांत्रिक सामाजिक परिवेश और भुगोल के चलते अमेरिका हावी रहा.

Advertisement

6 गुना हो जाएगा भारत-पाक ट्रेड, बस आतंकवाद से मुंह मोड़ लें इमरान!

प्रोफेसर राजन कुमार दूसरा उदाहरण देते हुए कहते हैं कि मौजूदा समय में अमेरिका और रूस दोनों सीरिया में हस्तक्षेप कर रहे हैं. दोनों ही देश न्यूक्लियर हथियारों से लैस हैं इसके बावजूद पारंपरिक हथियारों के सहारे दोनों देश सीरिया में अपनी शक्ति का परिचय दे रहे हैं. दोनों, अमेरिका और रूस न्यूक्लियर हथियारों से लैस देश होने के बावजूद युद्ध की संभावना को मुर्खता या पागलपन नहीं मानते.

इन तथ्यों को आधार मानते हुए सवाल उठता है कि आखिर इमरान खान ने युद्ध की सोच रखने वालों को मूर्ख अथवा पागल क्यों कहा? इस सवाल पर डॉ. सौम्यजीत रे का कहना है कि दरअसल लोकतंत्र की सबसे बड़ी खामी है कि इसके जरिए किसी देश के शीर्ष पद पर कोई भी आसीन हो सकता है. जहां पाकिस्तान बनने के बाद से ही पाकिस्तान की सेना और पाकिस्तान की लोकतांत्रिक पार्टियों के बीच वर्चस्व की लड़ाई ही है. इनके अलावा पाकिस्तान में कट्टरपंथी संस्थाएं सेना और राजनीतिक दलों पर दबाव की राजनीति करते रहे हैं.

हालांकि इस लड़ाई में हमेशा पाकिस्तान की सेना का पलड़ा भारी रहा और कट्टरपंथी शक्तियां सेना के समर्थन में रहीं. लेकिन लोकतांत्रिक दल हमेशा उसके लिए सिरदर्द साबित हुए हैं. पाकिस्तान के इतिहास में यह पहला मौका है जब पाकिस्तानी सेना ने एक कट्टरपंथी राजनीतिक दल को न सिर्फ खड़ा करने में सफलता पाई बल्कि उस राजनीतिक दल को सत्ता पर आसीन भी कर दिया. लिहाजा, इमरान खान का यह बयान पाकिस्तानी कट्टरपंथ का वह चेहरा है जो सेना और कट्टरपंथी संस्थाओं की नीतियों को आगे बढ़ाने का काम कर रही है.  

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement