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आखिर धार्मिक कट्टरपंथ के आगे क्यों नतमस्तक हुई पाकिस्तान सरकार?

पाकिस्तान में इस्लामिक कट्टरपंथ और इसके सामने सरकार के घुटने टेकने का एक और मामला सामने आया  है .

आखिर धार्मिक कट्टरपंथ के आगे क्यों नतमस्तक हुई पाकिस्तान सरकार ? आखिर धार्मिक कट्टरपंथ के आगे क्यों नतमस्तक हुई पाकिस्तान सरकार ?
दीपक कुमार
  • कराची ,
  • 09 सितंबर 2018,
  • अपडेटेड 7:54 AM IST

पाकिस्तान की नई पीटीआई सरकार ने नवगठित आर्थिक सलाहकार परिषद में चुने गए अर्थशास्त्री आतिफ आर. मियां को अहमदिया समुदाय के होने की वजह से हटा दिया है. दरअसल, आतिफ मियां की 18 सदस्यीय आर्थिक सलाहकार परिषद में नियुक्ति के बाद पाकिस्तान के धार्मिक कट्टरपंथियों समेत राजनीतिक दलों ने विरोध शुरू कर दिया था.

इमरान खान की सरकार ने इस विरोध के करीब एक सप्ताह बाद आतिफ मियां को इस्तीफा देने को कह दिया. बता दें कि पाकिस्तान में अहमदी को गैर-मुस्लिम समझा जाता है. पाकिस्तान के चुनाव कानून के अनुसार उन्हें अलग वोटर्स रजिस्ट्रेशन लिस्ट में गैर-मुस्लिम के रूप में लिस्ट किया गया है.  

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इस्लामिक कट्टरपंथ का दवाब

रेडिकल इस्लामिस्ट ग्रुप 'तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टीएलपी) ने आतिफ मियां की नियुक्ति के बाद जबरदस्त विरोध किया था और आंदोलन की धमकी दे डाली थी. रेडिकल इस्लामिस्ट ग्रुप टी.एल.पी का नेतृत्व खादिम हुसैन रिजवी करते हैं. इन्होंने पार्लियामेंट के शपथ में हुए बदलाव का विरोध करते हुए नेशनल हाई वे को लंबे समय तक रोक रखा था. डॉक्टर आतिफ के खिलाफ सोशल मीडिया के अभियान में कट्टरपंथी धार्मिक-राजनीतिक दल मुत्ताहिदा मजलिस-ए-अमाल और पख्तूनवा मिली अवामी पार्टी भी शामिल थीं.   

हाफिज सईद ने उगला जहर

आतंकी हाफिज सईद के नेतृत्व में मिली मुस्लिम लीग के लोग भी सोशल मीडिया पर अहमदिया मुसलमानों के खिलाफ सक्रिय रहे. आतंकी हाफिज सईद ने एक वीडियो जारी कर अहमदिया मुसलमानों के खिलाफ जम कर जहर उगला. आतंक का सरगना हाफिज ने अहमदिया मुसलमानों पर देश के खिलाफ साजिश का आरोप लगाते हुए कहा कि मैं एक साजिश से आपको आगाह करना चाहता हूं. नई हुकूमत बनने के बाद कादियानी अपने बिलों से निकलकर बाहर आ रहे हैं. वो समझते हैं की अब हमारा काम बन जाएगा, ये सोचते हैं कि शायद अब हमें खड़े होने का मौका मिल जाए.

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हाफिज ने कहा कि पाकिस्तान में कादियानियों पर सख्त पाबंदियां हैं. कादियान पाकिस्तान में मस्जिद नहीं बना सकते. अजान नहीं पढ़ सकते, इश्तिहार नहीं छाप सकते. नई सरकार बनी है, अब ये बिलों से बाहर आ रहे हैं. दुनिया में जो किरदार यहूदियों का है. वही किरदार कादियानियों का है. ईसाई भी गैर-मुस्लिम हैं लेकिन कादियानी उनसे भी ज्यादा खतरनाक हैं. ये मुसलमानों को धोखा देते हैं. ये अपने इबादतखाने को मस्जिद कहते हैं, कालिमा पढ़ते हैं. पाकिस्तान में कादियानी के लिए सभी रास्ते बंद हैं, हुकूमत की जिम्मेदारी है कि इस बात को समझें."       

 राजनीतिक दल भी कट्टरपंथियों के साथ

अहमदी डॉ. आतिफ के खिलाफ अभियान चलाने वालों में नवाज शरीफ की पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन) भी शामिल रही है. पार्टी ने नियुक्ति के खिलाफ सीनेट में नोटिस भी दिया था. पिछले साल नवाज शरीफ के दामाद कैप्टेन सफदर ने पार्लियामेंट में अहमदी मुसलमानो के खिलाफ जमकर भाषणबाजी की थी. साथ ही सेना में नियुक्ति लगाने की मांग की थी.         

कौन हैं डॉ. आतिफ मियां ?

दरअसल इमरान खान की सरकार ने पाकिस्तान की माली आर्थिक हालात से निपटने के लिए एक 18 सदस्यों की आर्थिक सलाहकार परिषद बनाई. इसमें पाकिस्तानी मूल के विदशों में काम कर रहे अर्थशास्त्रियों को रखा गया. इसी परिषद में उन्हें नियुक्त किया गया.  डॉ .आतिफ विख्यात प्रिंसटोन यूनिवर्सिटी से जुड़े हुए हैं. इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड ने इन्हें "टॉप 25 ब्राइटेस्ट यंग इकोनॉमिक्स' की लिस्ट में शमिल किया है.

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कौन हैं अहमदिया मुसलमान ?

अहमदिया समुदाय अपने आप को मुसलमान तो कहता है, लेकिन पैगम्बर मोहम्मद को आखिरी पैगम्बर नहीं मानता है.  पाकिस्तान में इस समुदाय को मुसलमान नहीं समझा जाता है. मुस्लिम कट्टरपंथी इसे इस्लाम का दुश्मन मानता है. अहमदिया सम्प्रदाय की स्थापना मिर्ज़ा गुलाम अहमद ने की थी. मिर्जा अहमद का जन्म पंजाब के 'क़ादियान' नमक स्थान पर हुआ था. यही वजह है कि इसे मानने वाले 'अहमदी' या 'कादियानी' कहे जाते हैं.  

अत्याचार नई बात नहीं

7 सितंबर 1974 को पाकिस्तान के संविधान में दूसरा संशोधन कर अहमदिया समुदाय को पाकिस्तान में गैर-मुस्लिम घोषित कर दिया गया. इसके बाद 1984 में पाकिस्तान आर्डिनेंस  के जरिये अहमदिया समुदाय का खुद को मुस्लिम कहना गैर-कानूनी और अपराध घोषित कर दिया गया. पाकिस्तान में अहमदिया समुदाय के प्रवेश पर प्रतिबंध वाले होर्डिंग्स एंड बैनर्स काफी आम हैं.   

अहमदिया समुदाय के खिलाफ लगातार मॉब अटैक, टार्गेटेड किलिंग और उनके धार्मिक संस्थाओ का अपमान होता रहा है. पिछले महीने ही फैसलाबाद के घसीटपुरा इलाके में अहमदिया समुदाय के मस्जिद को जला दिया गया. हिंसा में कम से कम एक मौत और कई लोग घायल हुए.

अहमदिया जमात के प्रवक्ता के ट्वीट के अनुसार, "दो लोगो की मामूली लड़ाई को 'मुल्ला' और ' अपराधियों' ने मिलकर अहमदिया मस्जिद पर हमला करने के लिए इस्तेमाल किया. हथियारों से लैस भीड़ ने मस्जिद को तहस-नहस कर दिया और बाद में जला दिया." इससे पहले मई में सियालकोट में 135 साल पुराने ऐतिहासिक अहमदिया मस्जिद को तोड़ दिया गया. अलजज़ीरा की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 1984 से अबतक हुए 100 से ज्यादा हिंसा की घटनाओं  में अहमदिया समुदाय के करीब 264 सदस्य मारे गए हैं.

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 अहमदिया समुदाय के खिलाफ पाकिस्तान में हिंसा दशकों पुरानी: 

 - 1953 में एंटी-अहमदिया हिंसा में 6 अहमदिया को मार दिया गया   

 - 1974 में अहमदिया समुदाय के खिलाफ हुए हिंसा के संविधान संशोधन करके उन्हें गैर-मुस्लमान बना दिया गया.

- एक रिपोर्ट के अनुसार 1984 और 2009 के बीच पाकिस्तान में 105 अहमदिया को टारगेट करके मार दिया गया.

- मई, 2010 में लाहौर में अहमदिया समुदाय के दो मस्जिदों को जला दिया गया, इसमें करीब 90 जान गई.

- अहमदिया समुदाय द्वारा जुटाए गए एक आंकड़े के अनुसार,  1984 और 2009 के बीच 22 अहमदिया समुदाय के मस्जिद तोड़े गए. वहीं 28 मस्जिद को प्रशासन ने सील कर दिया जबकि 9 जला दिए गए और 14 पर कब्जा कर लिया गया.    

इमीग्रेशन एंड रिफ्यूजी बोर्ड ऑफ कनाडा के आकलन के अनुसार, पाकिस्तान में अहमदिया समुदाय की जनसंख्या करीब 20 लाख है. पाकिस्तान में अहमदिया समुदाय की आर्थिक और शैक्षणिक हालत अच्छी है. पाकिस्तान के एकमात्र नोबेल विजेता डॉ अब्दुस सलाम और देश के पहले विदेश मंत्री अहमदिया ही थे.   

पाकिस्तान मीडिया भी मानती है कट्टरपंथ से सामने झुकी सरकार     

पाकिस्तान के अखबार डॉन के अनुसार मेरिट के आधार पर किये गए नियुक्ति को रद्द कर दिया गया और प्रोफेशनल कॉम्पिटेंस और क्वालिफिकेशन से कोई लेना-देना नहीं है. अतिवादी धार्मिक उन्माद ने एक तेज दिमाग को देश की सेवा करने से रोक दिया. 

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