
दशहरा में जहां पूरे देश में रावण को असत्य का प्रतीक मानकर उसका पुतला जलाया जाएगा. वहीं एक गांव ऐसा भी है जहां रावण की पूजा होती है. मंडला जिले के वन ग्राम डुंगरिया में रावण को गोंडवाना भू-भाग गोंडवाना साम्राज्य का महासम्राट, महाज्ञानी, महाविद्वान और अपना पूर्वज मानकर दशहरा के दिन उसकी पूजा करते हैं.
यहां रावण का एक मंदिर भी बनाया गया है जो अभी कच्चा व घास-फूंस का बनाया हुआ है. उसे रावण के अनुयायी भव्य मंदिर में तब्दील करना चाहते हैं. मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य मंडला जिले के वन ग्राम डुंगरिया में ये रावण का मंदिर बना हुआ है.
ऐसा है रावण का भव्य मंदिर
लकड़ी, बांस, और घांस-फूंस से तैयार इस मंदिर में रावण की बड़ी तस्वीर रखी गई है, जिसके सामने ज्योत जलती रहती है. रावण को अपना पूर्वज व आराध्य मानकर गांव के लोग उसकी पूजा करते हैं. रावण के अनुयायी का कहना है कि रावण एक महान विद्वान, महान संत, वेद शास्त्रों का आचार्य, महापराक्रमी, दयालु राजा था. ये राम-रावण युद्ध को आर्यन और द्रविण का युद्ध मानते हैं. रावण को वे अपने पुरखा व पूर्वज मानकर उसकी पूजा कर रहे हैं.
गांव के युवा बताते हैं कि पहले हमे रावण के बारे में ज्यादा नहीं जानते थे. अब हमारे बुजुर्ग लोग बताते हैं कि ये हमारे पूर्वज हैं. इस धरती में इनका अच्छा राज चला है इसलिए इन्हें अपना आराध्य मानकर इनकी पूजा कर रहे हैं. महाराज रावण बहुत महान था. वो इतना प्रतापी था उसे सब चीजो का ज्ञान था. वो इतना बलशाली था कि उसके चलने से धरती हिलने लगती थी. पिछले साल से यहां मंदिर बनाकर रावण की पूजा शुरू की गई है जिसमे बड़ी संख्या में आदिवासी समाज के लोग शामिल होते हैं.
दहन नहीं रावण पूजन होगा
एक अन्य ग्रामीण ने बताया कि आर्यन लोग रावण का विरोध करते है. वाल्मीकि रामायण में रावण के 10 सिर नहीं हैं, लेकिन और तुलसीदास ने रावण के 10 सिर और 20 भुजाएं बना दी जो गलत हैं. हम जानते हैं कि रावण हमारा पूर्वज है और गोंडी धर्म को मानता था. इसलिए हमने यहां रावण की फोटो स्थापित की है और यहां भव्य मंदिर बनाएंगे.
दशहरा में जब पूरे देश में रावण का पुतला जलाया जाएगा तब गांव के इस छोटे मंदिर में रावण का पूजन किया जाएगा. रावण के इस मंदिर में रावण की पूजा होती है और उसके नाम के जयकारे भी लगाए जाते हैं.