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नितिन गडकरी: सड़क से उठता आदमी

तीन लाख करोड़ रु. से ज्यादा की सड़क परियोजनाएं शुरू; बंदरगाह और नौवहन भी 70,000 करोड़ रु. के निवेश के साथ प्रगति की ओर.

उदय माहूरकर
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  • 18 मई 2016,
  • अपडेटेड 5:26 PM IST

अभी नितिन गडकरी को केंद्रीय सड़क परिवहन, राजमार्ग और जहाजरानी मंत्रालय संभाले कुछ महीने ही हुए थे कि लार्सन ऐंड टुब्रो के कार्यकारी अध्यक्ष ए.एम. नाईक एक गंभीर समस्या लेकर उनसे मिले. नाईक ने कहा कि एलऐंडटी सड़क क्षेत्र से अपना काम समेटने की सोच रही है क्योंकि विलंब के कारण परियोजनाएं अब अव्यावहारिक होने की स्थिति में पहुंच चुकी हैं. दो साल बाद आज इस कंपनी के साथ रिश्ते पहले जैसे बने हुए हैं. एलऐंडटी 15,000 करोड़ रु. की लागत वाली आठ सड़क निर्माण परियोजनाओं में लगी है. नाईक इंडिया टुडे से कहते हैं, ''गडकरी ने अवरोधों को हटाकर परियोजनाओं में तेजी लाने का अच्छा काम किया है. जिन बैंकों के पैसे अटके पड़े थे, वे भी अब उनसे खुश हैं.''

तमाम निजी खिलाडिय़ों से मिल रही प्रशंसाओं के अलावा गडकरी का प्रदर्शन आंकड़ों में भी झलकता है. उन्होंने 2014 में लक्ष्य रखा था कि रोजाना 30 किमी लंबी सड़क बनाई जाएगी. उस वक्त यह दर दो किमी प्रति दिन की थी, जो उससे साल भर पहले सात किमी रोजाना से भी नीचे जा चुकी थी. ऐसे में माना गया कि गडकरी का लक्ष्य अव्यावहारिक है. आज वे भले ही 30 किमी के लक्ष्य को न छू सके हों, लेकिन पिछले हफ्ते यह दर 21 किमी रोजाना के आंकड़े को छू गई. गडकरी कहते हैं, ''ऊंचे लक्ष्य को राजनैतिक जुमलेबाजी समझा जाता है, लेकिन मैंने जान-बूझ कर ऐसा किया ताकि सर्वश्रेष्ठ नतीजे देने के लिए नौकरशाही को तैयार किया जा सके.''

वे जब कुर्सी पर बैठे थे, तब 380 परियोजनाएं विलंबित चल रही थीं. आज उनकी नब्बे फीसदी से ज्यादा परियोजनाएं चालू हैं, जिनकी कुल लागत साढ़े तीन लाख करोड़ रु. से ऊपर है. इनमें तीन साल की देरी झेल चुकी दिल्ली-जयपुर राजमार्ग परियोजना है; वन मंजूरी न मिलने के कारण करीब एक दशक की देरी से चल रही नागपुर-जबलपुर राजमार्ग परियोजना है; और चार साल की देरी झेल चुकी मुजफ्फरनगर-देहरादून राजमार्ग परियोजना है. लोगों पर चाबुक चलाने की बजाए प्यार से उनका दिल जीतने की गडकरी की शैली कारगर रही है. उनके कैबिनेट सहयोगी और पार्टी कार्यकर्ता मानते हैं कि उन तक पहुंचना और उनसे अपनी बात कहना बहुत आसान है. उनके अफसर मानते हैं कि गडकरी ऐसे बॉस हैं, जो उन्हें खुलकर काम करने की छूट देते हैं और कोई बंदिश नहीं लगाते. सड़कों को लेकर गडकरी का नजरिया व्यापक होता जा रहा है. डेढ़ लाख करोड़ रु. की सभी नई परियोजनाओं में लागत का एक फीसदी वृक्षारोपण और सुंदरीकरण के लिए आरक्षित रखा गया है. सभी अहम राजमार्गों पर पांच सौ ट्रक टर्मिनल बनाने की योजना है, जिनमें ढाबों, विश्राम स्थल, 200 ट्रकों की पार्किंग और मरम्मत केंद्रों की परिकल्पना भी है. बस एक अवरोध है. ऐसी न्याय प्रणाली, जो सड़क परियोजना से जुड़े विवादों, खासकर भूमि अधिग्रहण के मसलों पर फैसले दे सके.

बंदरगाह और नौवहन की स्थिति भी बेहतर है. बारह अहम बंदरगाहों और जहाज क्षेत्र में तीन बड़ी सरकारी कंपनियों ने 2015 में मिलकर 6,000 करोड़ रु. से ज्यादा का संयुक्त कार्यकारी मुनाफा अर्जित किया, जो किसी भी वित्त वर्ष में उच्चतम है. बस सागरमाला परियोजना अब तक शुरू नहीं हो सकी है, जिसका उद्देश्य बंदरगाह आधुनिकीकरण और तटीय समुदायों का विकास है.

गडकरी की एक महत्वाकांक्षी योजना 116 नदियों में जल परिवहन शुरू करना है. वाराणसी-हल्दिया गंगा वॉटरवे नामक 1,600 किमी लंबी 4,000 करोड़ रु. लागत की परियोजना शुरू की जानी है. इसके तीन टर्मिनल होंगे—वाराणसी, साहबगंज और हल्दिया, जहां से रेलवे और सड़क परिवहन का साधन भी मुहैया होगा. बीस स्थायी और इतने ही अस्थायी जेट्टी पर भी काम चल रहा है.
एनडीए सरकार बंदरगाहों में करीब 70,000 करोड़ रु. के निवेश की योजना बना चुकी है. पिछले महीने मुंबई में मेरिटाइम इंडिया सम्मेलन में गडकरी ने इसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया, जहां 82,000 करोड़ रु. के एमओयू पर दस्तखत किए गए. वे कहते हैं, ''हमारा लक्ष्य आसान है—बंदरगाहों और वॉटरवे का इस्तेमाल कर लॉजिस्टिक्स की लागत कम करना. देखते जाइए, इससे जीडीपी भी मजबूत होगी.'' उनका उत्साह देखकर कोई भी उत्साहित हो जाएगा.

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