
धर्मेंद्र प्रधान पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) हैं और उनके लिए पिछले दो साल अत्यंत अनुभवपूर्ण रहे हैं. जो व्यक्ति अपने शुरुआती दिनों में प्रेजेंटेशन के दौरान बहुत ऊर्जा न दिखा पाता हो और संकोची रहा हो, उसने आज अपने उस मंत्रालय का पूरी तरह कायापलट कर दिया है. वह मंत्रालय जो पहले कई विवादों में फंसा हुआ था और जिसे अक्सर कॉर्पोरेट हितों के लिए जाना जाता रहा है. आज प्रधान दृढ़ता से कहते हैं, ''हम जनता के हितों के लिए नीतियां बनाते हैं, न कि शेयरधारकों के लिए...जिस मंत्रालय को कभी कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय की एक शाखा कहा जाता था, आज वह गरीबों के लिए काम कर रहा है.''
मंत्रालय का जिम्मा संभालने के वक्त मात्र 44 साल के प्रधान को विरासत में कई बड़ी समस्याएं मिली थीं. कॉर्पोरेट का काम लटका पड़ा था, सख्त संसदीय जांच थी और सूचनाएं लीक हो रही थीं. ऐसे में साख और पारदर्शिता को फिर से स्थापित करना उनकी पहली प्राथमिकता थी. वे कहते हैं कि प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से उनके मंत्रालय की कड़ी निगरानी से उन्हें काफी मदद मिली. वे कहते हैं, ''मुझे जब भी सलाह की जरूरत होती है, प्रधानमंत्री या पीएमओ हमेशा उपलब्ध होते हैं. मोदी ने ही लोगों से अपनी एलपीजी सब्सिडी छोडऩे की अपील की थी. मुझे इसे लेकर शक था, मैंने कल्पना भी नहीं की थी कि एक करोड़ लोग
अपनी सब्सिडी छोड़ देंगे. लेकिन लोगों ने ऐसा किया.'' श्गिव इट अप्य अभियान ने सरकार के करीब 10,000 करोड़ रु. बचाए.
अरुण जेटली के 'खेमे' के आदमी माने जाने वाले प्रधान रणनीति के तहत खुद को प्रचार-प्रसार से दूर रखते हैं. ऐसे कई अवसर रहे हैं, जब उनके मंत्रालय से संबंधित लक्ष्यों और कार्यक्रमों को खुद मोदी ने घोषित किया है और प्रधान को उन्हें अमल में लाने के लिए उपाय खोजने पड़े हैं. लेकिन इस बात का पूरा श्रेय इस चीज को जाता है कि उन्होंने एलपीजी के लिए सबसे बड़ा डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर सिस्टम तैयार किया, जिसके तहत सरकार देश में 16.5 करोड़ एलपीजी उपभोक्ताओं में से 15 करोड़ को एलपीजी सब्सिडी दे रही है.
उनके मंत्रालय ने हाल ही में 8,000 करोड़ रु. की उज्जवला योजना शुरू की है, जिसके तहत गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) के परिवारों को कुकिंग गैस का कनेक्शन दिया जाता है. प्रधान ने कतर के साथ भारत के एलएनजी समझौते पर फिर से बातचीत शुरू की है ताकि छह महीने की बातचीत के बाद प्राकृतिक गैस के आयात की लागत 12 डॉलर प्रति यूनिट से कम करके 5 डॉलर की जा सके. अन्स्र्ट ऐंड यंग इंडिया के दिलीप खन्ना कहते हैं, ''लंबी अवधि के ऊर्जा समझौते पर फिर से बात करना आसान नहीं है. इस क्षेत्र से जुड़े लोग इस बात से चकित हैं कि भारत ने यह काम कैसे संभव कर दिखाया.''
मंत्रालय ने हाल ही में कुछ नई नीतियां शुरू की हैं ताकि इस क्षेत्र की बाधाओं को दूर किया जा सके और तेल तथा गैस की खोज में कॉर्पोरेट निवेशकों की दिलचस्पी को जिंदा किया जा सके. लेकिन प्रधान अब भी यह बताने के लिए तैयार नहीं हैं कि तेल ब्लॉकों की बोली कब लगाई जाएगी.
बहरहाल कुछ विशेषज्ञ इन प्रयासों की सराहना तो करते हैं, लेकिन कहते हैं कि भारत में अब भी ऊर्जा की कोई एकीकृत योजना नहीं है और सरकार ने अभी तक कंपनियों के लिए इस क्षेत्र में भयमुक्त होकर काम करने का माहौल नहीं बनाया है.
रात में छह घंटे से ज्यादा न सोने और गृह राज्य ओडिशा की खबरें पढऩे-सुनने के साथ दिन का कामकाज शुरू करने वाले प्रधान कहते हैं कि वे इस सेक्टर में निवेश की धीमी रफ्तार को लेकर जरा भी चिंतित नहीं हैं. उनके शब्दों में, ''यह जरूर होगा.''
उनके बारे में लोगों को पूरा विश्वास है. यह शायद इस बात का एहसास है कि वे—शासन के मामले में नौसिखुआ—बहुत कम समय में कैबिनेट के ऊंचे पायदान तक पहुंच गए हैं.