सुरेश प्रभु: रेलवे का कायापलट करने वाले

तेजी से फैसले लेना, मालढुलाई पर निर्भरता घटाने के लिए धन जुटाने की बिल्कुल नई योजनाएं समेत रेलवे विकास की ओर.

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संदीप उन्नीथन

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  • 18 मई 2016,
  • अपडेटेड 7:56 PM IST

भारत में रेल मंत्री होने के लिए इससे बुरा वक्त दूसरा नहीं रहा होगा. वैश्विक आर्थिक सुस्ती से निर्यात में कमी आई. इसकी मार रेलवे को मालढुलाई से मिलने वाले राजस्व पर पड़ी. इसी से वह सवारी यात्रा पर होने वाले कुछ खर्चों की भरपाई करता है. अब मालढुलाई सड़कों से ज्यादा और रेलवे से कम होती जा रही है. अब देश में 32 फीसदी से भी कम मालढुलाई रेलवे से होती है. मंत्रालय की आमदनी पर पहले से भारी दबाव है. उसे एक रुपया कमाने के लिए 92 पैसे खर्च करने पड़ते हैं. इस साल उसे 32,000 करोड़ रु. का और फटका लगने वाला है, जो उसे सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करते वक्त अपने 13 लाख कर्मचारियों के वेतन में वृद्धि पर चुकाना होगा.

ऐसे में उम्मीद की किरण सुरेश प्रभाकर प्रभु हैं, जिन्होंने एनडीए के दूसरे कार्यकाल के शुरू होने के छह माह बाद रेल मंत्री की कुर्सी संभाली थी. रेलवे की कायापलट का कठिन काम उन्हें मिला और वे इस चुनौती पर खरे उतरे. उन्होंने इस विशालकाय संगठन में छोटे-बड़े सुधारों को तेजी से अंजाम देना शुरू किया. प्रभु का लाया सबसे बड़ा बदलाव यह है कि छोटे-मोटे सियासी फायदों के लिए रेलवे को दुधारू गाय की तरह दुहने पर उन्होंने लगाम लगा दी. मसलन रेवडिय़ों की तरह नौकरियां देना, नई ट्रेनें चलाना और रेलवे के ठेके देना. इसकी जगह उन्होंने रेलवे को भारतीय अर्थव्यवस्था के कामकाजी घोड़े में बदलने का रास्ता चुना.

रेल मंत्री ने देरी रोकने के लिए फैसला लेने का काम अधिकारियों को सौंप दिया. एक अंदरूनी सर्वे के अनुसार फैसले लेने का औसत वक्त 500 दिनों से घटकर 80 दिन हो गया है. परियोजनाओं को छह महीनों में मंजूरी मिल जाती है, पहले इसमें 24 महीने लग जाते थे. तेज फैसलों का मतलब यह भी है कि परियोजनाएं ज्यादा तेजी से पूरी होती हैं. 2009-14 के पांच साल के मुकाबले 2015 और 2016 के दौरान ब्रॉड गेज या बड़ी लाइन के काम में 85 फीसदी की वृद्धि हुई है. इन दो सालों में नए बुनियादी ढांचे पर खर्च होने वाली रकम दोगुनी होकर 93,795 करोड़ रु. हो गई है.

रेलवे ने इस साल 1.2 अरब टन मालढुलाई के लिए खुद को तैयार कर लिया. यह उसकी अब तक की सबसे ज्यादा क्षमता है, जिसका पूरा दोहन नहीं हो सका है. वकील और चार्टर्ड अकाउंटेंट की तालीम हासिल करने वाले तकनीक पसंद प्रभु कहते हैं, ''मैं रुकावटों से परेशान नहीं होता. यह लफ्ज मेरी डिक्शनरी में नहीं है.'' पर जो लफ्ज उनके शब्दकोष में जरूर है, वह है राजस्व के नए स्रोत. मंत्रालय ने इस साल 'गैर-किराया राजस्व' में 9,600 करोड़ रु. कमाए. एक नया निदेशालय दूसरे स्रोतों से धन जुटाने का काम देखेगा. इसके लिए ट्रेन के डिब्बों को विज्ञापनों से लपेट दिया जाएगा.

इस साल पहली बार विज्ञापनों से रंगी राजधानी एक्सप्रेस चलेंगी. सेमी-हाइ स्पीड गतिमान एक्सप्रेस दिल्ली-आगरा के बीच 160 किमी प्रति घंटे की रक्रतार से दौडऩे लगी है. आयातित स्पैनिश सवारी ट्रेनों का परीक्षण इसी महीने शुरू करने की तैयारी है. ये ट्रेनें मौजूदा पटरियों पर ही 200 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ेंगी और इनसे दिल्ली-मुंबई राजधानी एक्सप्रेस का सफर घटकर महज 12 घंटे का रह जाएगा.

एनडीए में सोशल मीडिया तक सबसे ज्यादा पहुंच प्रभु के दफ्तर की है. इसमें तीन पालियों में काम होता है और हर पाली में चार अफसर यात्रियों की हजारों शिकायतों को संभालते हैं. यह यात्रियों के आराम और सफर में सुधार की छोटी मियाद के फोकस का हिस्सा है. ट्रेन और स्टेशनों पर साफ-सफाई में सुधार आया है. प्रभु ने 2019 तक सभी रेलवे फाटकों को खत्म करने और पटरियों पर गंदगी बिल्कुल न फेंकने जैसे समयबद्ध लक्ष्य तय किए हैं.

नई गठित होने वाली रेलवे योजना और निवेश संगठन से लंबी मियाद का दूरदर्शी नजरिया आएगा. यह रेलवे के मध्यम और लंबी मियाद के लक्ष्य तय करेगा, जिनमें राष्ट्रीय रेलवे योजना 2030 भी शामिल है. मगर प्रभु ने जिस कुबेर के खजाने पर पूरा जोर लगाया है, वह है डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर. इसके तहत मुंबई-दिल्ली-कोलकाता के त्रिभुज पर मालढुलाई के लिए 3,200 किमी से ज्यादा लंबी विशेष पटरियां बिछाई जा रही हैं. इससे मालगाडिय़ों की रफ्तार चार गुना बढ़ जाएगी, ढुलाई की लागत में अच्छी-खासी कमी आएगी और रेलवे एक बार फिर मुकाबले में खड़ा हो पाएगा.

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