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PM मोदी के दौरे से इजरायल-फिलिस्तीन के खूनी इतिहास में फंसी भारतीय कूटनीति

भारत समेत दुनिया के तमाम देश फिलिस्तीन पर कब्जा करके याहूदी बस्ती बसाने के इजरायल के कदम की तीखी आलोचना करते आ रहे हैं. ऐसे में पीएम मोदी के इजरायल तक सीमित दौरे को भारतीय कूटनीति में बड़े बदलाव के रूप में देखा जा रहा है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
नंदलाल शर्मा
  • नई दिल्ली ,
  • 03 जुलाई 2017,
  • अपडेटेड 7:52 AM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इजरायल दौरे को लेकर फिलिस्तीन समेत कई अरब देशों में कूटनीतिक उठापटक तेज हो गई है, जिसके चलते भारतीय कूटनीति इजरायल-फिलिस्तीन विवाद में फंस गई है. मोदी पहले भारतीय प्रधानमंत्री हैं, जो इजरायल का दौरा कर रहे हैं. दिलचस्प बात यह है कि भारत अंतरराष्ट्रीय मंच पर जिस फिलिस्तीन का समर्थन करता रहा है, पीएम मोदी वहां नहीं जाएंगे. इजरायल और फिलिस्तीन के बीच पिछले 50 साल का खूनी संघर्ष आज भी जारी है.

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जून 1967 में छह दिन तक अरब-इजरायल जंग हुई, जिसके बाद इजराइल ने फिलिस्तीन के वेस्ट बैंक, ईस्ट यरूशलम और गाजा पट्टी पर कब्जा कर लिया. भारत समेत दुनिया के तमाम देश फिलिस्तीन पर कब्जा करके याहूदी बस्ती बसाने के इजरायल के कदम की तीखी आलोचना करते आ रहे हैं. ऐसे में पीएम मोदी के इजरायल तक सीमित दौरे को भारतीय कूटनीति में बड़े बदलाव के रूप में देखा जा रहा है.

संयुक्त राष्ट्र में इस मामले को लेकर इजरायल के खिलाफ प्रस्ताव भी लाया जा चुका है, लेकिन उसको इस पर अमेरिका का साथ मिलता रहा है. हालांकि भारत ने हमेशा ही इजराइल के खिलाफ फिलिस्तीन का समर्थन किया. हाल ही में संयुक्त राष्ट्र में ओबामा प्रशासन ने भी पहली बार इजरायल की मुखालफत की थी. इससे दोनों देशों के रिश्ते भी बिगड़े थे, लेकिन डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने के बाद इजरायल से घनिष्ठता फिर बना ली.

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अब सवाल भारत के इजरायल के करीब जाने का है. भारत पहला गैर अरब मुल्क है, जिसने इजरायल के खिलाफ फिलिस्तीन को मान्यता दी और राजनीतिक रिश्ते बनाए. हालांकि साल 1992 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने अपनी पूर्ववर्ती सरकार से हटकर कदम उठाया और इजरायल को मान्यता दी. इसके बाद से भारत और इजरायल के रिश्ते परवान चढ़ते गए. साल 2015 में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी इजरायल का दौरा किया था, लेकिन वह जार्डन और फिलिस्तीन होते पहुंचे थे. भारत और इजरायल अपने रिश्तों की 25वीं वर्षगांठ मना रहे हैं.

भारत अक्सर ही फिलिस्तीन के पक्ष में रहा है. इसकी वजह यह रही कि भारत का मानना था कि इजरायल के करीब जाने से कई अरब देश नाराज हो जाएंगे. अगर आपके पासपोर्ट पर इजरायल का वीजा लग जाए, तो अरब देशों से वीजा मिलना मुश्किल हो जाता है. हालांकि प्रणब मुखर्जी ने इस धारणा को तोड़ा था. इन अरब देशों में काफी संख्या में भारतीय काम करते हैं और भारत पेट्रोलियम पदार्थ को लेकर भी इन पर काफी हद तक निर्भर है.

फिलहाल भारतीय अधिकारियों का कहना है कि भारत के इजरायल और फिलिस्तीन दोनों से घनिष्ठ रिश्ते हैं. मोदी के दौरे से दोनों देशों से रिश्ते में कोई फर्क नहीं पड़ेगा. हालांकि इन सबके बावजूद मोदी के दौरे से यह बात तो साफ है कि अरब क्षेत्र को लेकर भारत की कूटनीति बदल रही है.

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