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चंपारण सत्याग्रह की सौवीं सालगिरह पर इसे गांधी के एक और सपने व दर्शन से जोड़ते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे स्वच्छाग्रह के नये तेवर औऱ कलेवर में शुरू किया. सोमवार को इस अवसर पर पीएम ने कहा, 'चंपारण से हमें पंचामृत मिला. सत्याग्रह की शक्ति का सार्वजनिक परीक्षण हुआ, जनशक्ति की ताकत का पता चला, स्वच्छता और शिक्षा जन जन तक पहुंची, महिलाओं की स्थिति सुधरी और अपने हाथों से कते बने कपड़ों का चलन बढ़ा...'
पीएम ने कहा कि गांधी के पहले सत्याग्रह से निकले इस अमृत को जनता के जेहन तक पुहुंचने में 70 साल लग गए. आजादी तो मिल गई, लेकिन स्वच्छता के मंत्र का अर्थ जानने में 70 साल लगे. अब स्वच्छता लोगों की सोच में आ गई है. बच्चे अभिभावकों को सिखा रहे हैं. स्वच्छता के लिए किया गया काम ही तो स्वच्छाग्रह है. स्वच्छता की यही सोच ही न्यू इंडिया की नींव मज़बूत करेगी, स्वच्छ, स्वस्थ और कुशल भारत की. सत्याग्रह से स्वच्छाग्रह गांधी की देन है, गांधी का मंत्र है.
प्रधानमंत्री ने रंगारंग कार्यक्रम में मालिनी अवस्थी की स्वरलहरी और कथक, कुचीपुड़ी, छऊ और भरतनाट्यम की मिली-जुली नृत्यनाटिका की सराहना करते हुए कहा कि इतिहास से हम काफी कुछ सीख सकते हैं. इतिहास के कई मोड़ सदियों को पारस स्पर्श जैसी प्रेरणा देते हैं. हमारा कायाकल्प करते हैं. इतिहास की बात करें तो हमारे देश का इतिहास किसी एक व्यक्ति या परिवार तक सीमित नहीं है. ज़रूरत है हम आंखें खोलें और इतिहास की नवीन खोज से प्रेरणा लें.
उन्होंने कहा, 'चंपारण सत्याग्रह का सौवां साल भी ऐसा ही पारस स्पर्श का अवसर है. स्वच्छाग्रह यही अवसर है. चंपारण ने ही गांधी की सत्याग्रह की ताकत को नई धार दी. जनता तक उन्होंने सत्याग्रह का मंत्र पहुंचाया. गांधीजी मूल रूप से स्वच्छाग्रही थे. उन्होंने आज़ादी से ज़्यादा ज़रूरी स्वच्छता को बताया। स्वराज स्वच्छराज से कमतर नहीं.'
पीएम मोदी ने कहा कि चंपारण सत्याग्रह दरअसल मोहन से मोहन की यात्रा है. एक मोहन के हाथ में सुदर्शन चक्र था तो इस मोहन के हाथों में चरखा. काम दोनों ने जनता के सहयोग के साथ क्रांति का ही किया. एक ने ग्वाल बालों के साथ मिलकर गोवर्धन उठाया और ग्वालों की लाठी लगवाई, वहीं दूसरे मोहन ने गुलामी का पहाड़ उठाकर फेंक दिया. गुलामी का पहाड़ तो तोड़ दिया गया, लेकिन आज़ादी के 70 साल बाद भी गांधी का स्वच्छता का सपना अधूरा ही रहा. अब हमें स्वच्छता अभियान मिशन से पूरा करना है.
उन्होंने कहा, 'जन आंदोलन बन रहा है. मिशन शुरू हुआ तो 42% गांव की आबादी शौचालय का इस्तेमाल करती थी, अब ये आंकड़ा 65% तक पहुंच गया है. गांवों, कस्बों- राज्यों के बीच खुद को खुले में शौच से जल्द से जल्द मुक्त होने की कामना बलवती हो रही है. प्रतियोगिता-सी चल पड़ी है. इसी होड़ का नतीजा है कि अधिकतर राज्य खुद को खुले में शौच से पूरी तरह मुक्त होने के कगार पर पहुंच चुके हैं. गंगा किनारे के पांच राज्यों के 75% गांवों को खुले में शौच से मुक्त बनाने का काम चल रहा है. वेस्ट तो वेल्थ पर काम आगे बढ़ रहा है. यानी तकनीक के द्वारा ऐसी मलमूत्र से भी खाद और अन्य उपयोगी उत्पाद बनाये जा रहे हैं. यानी कचरे से भी काम की चीजें. अब जरूरत है बापू के सत्याग्रह को स्वच्छाग्रह से जोड़ कर आगे बढ़ने की....