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42 दिन बाद जिनपिंग से फिर मिलेंगे मोदी, इन 5 मुद्दों पर होगी बात

चीन में भारत के राजदूत गौतम बंबावाले ने कहा कि भारत और चीन समेत किन्हीं भी दो देशों के बीच कुछ ऐसे क्षेत्र होते हैं जहां एक दूसरे से आंख से आंख नहीं मिलाते, जहां हमारी अपनी अपनी राय होती है. लेकिन दोनों नेताओं ने उन क्षेत्रों में काम करने का निर्णय लिया जहां हमारी साझी पहल है.

पीएम मोदी-शी जिनपिंग, फाइल फोटो (getty images) पीएम मोदी-शी जिनपिंग, फाइल फोटो (getty images)
प्रज्ञा बाजपेयी
  • नई दिल्ली,
  • 08 जून 2018,
  • अपडेटेड 3:12 PM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार को चीन के पूर्वी शहर किंगडाओ में आठ सदस्यीय शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के दो दिवसीय सम्मेलन में हिस्सा लेंगे. भारत और पाकिस्तान के एससीओ के पूर्ण सदस्य बनने के बाद इस संगठन की यह पहली बैठक है.

किंगडाओ में मोदी शी समेत एससीओ के सदस्य देशों के नेताओं के साथ कई द्विपक्षीय वार्ता भी करेंगे.  इस बैठक में एससीओ सदस्यों का जोर सुरक्षा, सहयोग, आतंकवाद विरोध, आर्थिक विकास और सांस्कृतिक विनिमय के क्षेत्रों पर रहेगा.

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चीन में भारत के राजदूत गौतम बंबावाले ने कहा है कि वुहान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच बनी सहमति शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के किंगडाओ सम्मेलन में नजर आएगी. बता दें कि पीएम मोदी 27 अप्रैल को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ एक अनौपचारिक बैठक में हिस्सा लेने वुहान पहुंचे थे.

उन्होंने कहा , "हम इन क्षेत्रों में अपना सहयोग बढ़ाते रहेंगे. भारत इस दिशा में अन्य सदस्य देशों के साथ मिलकर काम करेगा." एससीओ सदस्यों में चीन, रूस, भारत, पाकिस्तान, कजाखस्तान, किर्गिजस्तान, तजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान शामिल हैं. भारतीय राजदूत ने कहा कि भारत एससीओ में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेगा.

विकास में साझेदार

उन्होंने अप्रैल में वुहान में मोदी और शी के बीच हुए अनौपचारिक सम्मेलन में उनके बीच सहमति का बखान किया और कहा कि यह किंगडाओ सम्मेलन में भी दिखेगी. उन्होंने कहा कि दोनों नेताओं में दो क्षेत्रों में सहमत बनी. पहला, भारत और चीन तरक्की और विकास में साझेदार हैं. दूसरा, भारत और चीन के बीच जितने असहमति के क्षेत्र हैं, उससे कहीं ज्यादा कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां सहमतियां हैं और हम एक दूसरे से सहयोग करते हैं."

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उन्होंने कहा,  भारत और चीन समेत किन्हीं भी दो देशों के बीच कुछ ऐसे क्षेत्र होते हैं जहां एक दूसरे से आंख से आंख नहीं मिलाते, जहां हमारी अपनी अपनी राय होती है. लेकिन दोनों नेताओं ने उन क्षेत्रों में काम करने का निर्णय लिया जहां हमारी साझी पहल है. हम वह किंगडाओ सम्मेलन में देखेंगे."

सीमा पर शांति की स्थापना

सीमा पर मतभेद के मद्देनजर भारत चीन सुरक्षा सहयोग के बारे में उन्होंने कहा, भारत और चीन को सुरक्षा के क्षेत्र में भी एक दूसरे के साथ मिलकर काम करना चाहिए. उन्होंने कहा, "हमारी सीमाएं कहां तक हैं , इस संदर्भ में हमारे बीच मतभेद हो सकते हैं. फिलहाल भारत-चीन सीमा का अंतिम समाधान नहीं है. लेकिन मैं सोचता हूं कि यह सुनिश्चित करना भारत और चीन के लिए महत्वपूर्ण है कि भारत चीन सीमावर्ती क्षेत्रों में अमन चैन बना रहे. हमें इस उद्देश्य और इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए अपने विवेक और अपनी क्षमताओं खासकर अपने नेताओं के विवेक और क्षमताओं पर कोई शक नहीं होना चाहिए."

उन्होंने कहा, "यदि हम उसे हासिल करने में समर्थ होते हैं तो इसका न केवल इस क्षेत्र , भारत प्रशांत क्षेत्र और एशिया प्रशात क्षेत्र में असर होगा बल्कि पूरी दुनिया पर इसका असर होगा." बता दें कि साल 2014 में सत्ता में आने के बाद मोदी की यह पांचवीं चीन यात्रा होगी. इससे पहले, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीनी शहर वुहान में 27 और 28 अप्रैल को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अनौपचारिक बैठक में हिस्सा लिया था.

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