Advertisement

'वन नेशन वन राशन कार्ड' में क्या हैं पेचीदगियां? अर्थशास्त्री रीतिका खेड़ा ने बताया

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वन नेशन वन राशन कार्ड की योजना को जल्द लागू करने की बात कही है. इस पर भोजन का अधिकार से लेकर राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून की लड़ाई लड़ने वाली अर्थशास्त्री रीतिक खेड़ा कहती हैं कि वन नेशन वन राशन कार्ड सुनने में तो बढ़िया कदम लगता है, लेकिन इस पर गौर किया जाए तो कई पेचीदगियां दिखती हैं.

प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (प्रतीकात्मक तस्वीर) प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (प्रतीकात्मक तस्वीर)
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 01 जुलाई 2020,
  • अपडेटेड 12:42 PM IST

  • मजदूर कार्ड घर पर रखते हैं, ऐसे में कैसे मिलेगा राशन?
  • वन नेशन वन राशन कार्ड पर केंद्र-राज्यों की बीच असमंजस

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को राष्ट्र के संबोधन में गरीब कल्याण अन्न योजना को पांच महीने तक बढ़ाने के साथ वन नेशन वन राशन कार्ड की व्यवस्था का जिक्र भी किया. पीएम ने कहा कि देश में वन नेशन वन राशन कार्ड का सबसे बड़ा लाभ उन गरीब लोगों को मिलेगा, जो रोजगार के लिए अपना गांव छोड़कर दूसरे राज्य जाते हैं. इसके जरिए प्रवासी मजदूरों को दूसरे राज्य में आसानी ने अनाज मिल सकेगा.

Advertisement

भोजन का अधिकार से लेकर राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून की लड़ाई लड़ने वाली अर्थशास्त्री रीतिक खेड़ा कहती हैं कि वन नेशन वन राशन कार्ड सुनने में तो बढ़िया कदम लगता है, लेकिन इसकी वास्तविकता कुछ और ही है. इस पर गौर किया जाए तो कई पेचीदगियां दिखती हैं. उन्होंने कहा कि अधिकतर मजदूर राशन कार्ड अपने घरों पर रखते हैं ताकि परिवार को राशन मिल सके.

ये भी पढ़ें: यूपीए के खाद्य सुरक्षा कानून से कितना अलग है मोदी के मुफ्त राशन का ऐलान

रीतिका खेड़ा ने कहा कि सरकार अगर वन नेशन वन राशन कार्ड की व्यवस्था कर भी देती है, तो क्या गारंटी है कि वो प्रवासी मजदूरों के काम आ सकती है? मेरे हिसाब से कोई गारंटी नहीं है. इसके लिए पहले टेक्नोलॉजी और जन वितरण प्रणाली को ठीक करना होगा, जो कोई छोटा काम नहीं है. उसे हड़बड़ी में करेंगे तो गलती होनी की गुंजाइश है.

Advertisement

उन्होंने कहा कि मौजदा समय में देश में बड़ी आबादी है, जिसके पार राशन कार्ड है ही नहीं, ना शहर में ना गांव में. ऐसे में उन्हें वन नेशन वन राशन कार्ड के लागू होने से क्या फायदा मिलेगा. इसके अलावा जिन मजदूरों का कार्ड है भी उनमें से सब परिवार सहित शहर काम करने नहीं आते. वे राशन कार्ड गांव में अपने घर पर रख कर आते हैं, क्योंकि घरवाले उसे गांव में इस्तेमाल करते हैं. ऐसे में जिनके हाथ राशनकार्ड न हो उन्हें इससे क्या फायदा? फिर चार लोगों के परिवार से, एक मजदूर शहर जाता है. ऐसे में अगर वह शहर में राशन ले और डीलर केवल उसका चढ़ाने के बजाय चारों का चढ़ा दे, तो क्या होगा? जब घरवाले गांव में खरीदने जाएंगे, तो उन्हें कहा जाएगा कि चारों का कोटा उठा लिया गया है. ऐसी हालत में मजदूर और परिवार शिकायत कहां करेंगे?

ये भी पढ़ें: भारत के खिलाफ दो फ्रंट खोल रहा PAK, अल बदर आतंकियों के संपर्क में चीनी सेना

रीतिका कहती हैं कि देश में कई ऐसे राज्य हैं, जहां अनाज के साथ दाल और तेल का भी वितरण किया जाता है. तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश, केरल सहित कई राज्य है जहां पर जन वितरण प्रणाली से राज्य के द्वारा लोगों को दाल और तेल दिए जाते हैं. ऐसे में पहला सवाल है कि क्या झारखंड का मजदूर तमिलनाडु में खरीदने जाएगा, उसे यह सारी चीजें मिलेंगी?

Advertisement

उन्होंने कहा कि केंद्र के जन वितरण प्रणाली पर कुछ राज्य अपनी तरफ से सब्सिडी देते हैं. तमिलनाडु में चावल मुफ्त है जबकि बिहार में 3 रुपये प्रति किलो और ओडिशा में 1 रुपये किले है. ऐसे में उत्तर प्रदेश के मजदूर को यूपी की तरह केंद्र के रेट से दिया जाएगा या मुफ्त? फ्री दिया गया तो खर्च कौन उठाएगा, केंद्र या राज्य सरकार? केंद्र और राज्यों की बीच असमंजस की स्थिति पैदा होगी. ऐसे ही एक समस्या यह है कि राजस्थान में गेहूं ही दिया जाता है जबकि बिहार, झारखंड, ओडिशा के मजदूर चावल खाते हैं और उनके राज्यों में जन वितरण प्रणाली में चावल मिलता है. ऐसे में इन मज़दूरों को राजस्थान में गेहूं से काम चलेगा?

रीतिका खेड़ा ने कहा कि सबसे बड़ी समस्या जन वितरण प्रणाली की सप्लाई चेन को लेकर है. अभी हर राशन दुकान को तय मात्रा में राशन मिलता है. एक राशन दुकान से कितने राशन कार्ड और व्यक्ति जुड़े हुए हैं, उससे सप्लाई निर्धारित होती है. वन नेशन वन राशन कार्ड के लागू होने से उत्तर प्रदेश की राशन दुकान पर बिहार का मजदूर पहुंचता है तो डीलर के पास अपने कार्ड धारकों के लिए राशन घट जाएगा. ऐसे में उनके साथ ठगी की संभवना भी है.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement