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पंजाब नेशनल बैंक महाघोटाले के मामले में सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय ने तेजी से जांच शुरू कर दी है. इस मामले की नई-नई परतें खुलती जा रही हैं. इस घोटाले में जैसे-जैसे नई चीजें सामने आ रही हैं, उससे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि इसमें सिर्फ पीएनबी के कर्मचारी नहीं, बल्कि इलाहाबाद बैंक और एक्सिस बैंक समेत इस मामले से जुड़े अन्य बैंकों के कर्मचारी भी शामिल हो सकते हैं. भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व निदेशक विपिन मलिक ने यह आशंका जताई है.
90 दिनों का LoU 1 साल तक कैसे चला?
आरबीआई के पूर्व निदेशक विपिन मलिक ने आजतक से इस मामले को लेकर बात की. उन्होंने सवाल उठाया कि जब भी कोई बैंक लेटर ऑफ अंडरटेकिंग (LoU) जारी करता है, तो वह सिर्फ 90 दिनों के लिए होता है. लेकिन यह पहला ऐसा मामला है, जहां 12 महीनों के लिए LoU अथवा लेटर ऑफ क्रेडिट दिया गया है.
दूसरे बैंकों ने भी की लापरवाही
उन्होंने बताया कि नियमों के मुताबिक ऐसा होना संभव नहीं था. मलिक ने कहा कि जब एक्सिस बैंक और इलाहाबाद बैंक समेत अन्य बैंकों के पास यह 1 साल का LoU पहुंचा होगा, तो उनके कान अपनेआप खड़े हो जाने चाहिए थे. उनके मन में सवाल उठने शुरू हो जाने चाहिए थे कि आखिर 1 साल की बैंक गारंटी कहां से आई है. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ और इसकी तरफ ध्यान नहीं दिया गया.
मलिक ने आशंका जताई कि इस मामले में सिर्फ पीएनबी के कर्मचारी नहीं, बल्कि दूसरे बैंकों के कर्मचारी भी शामिल हो सकते हैं. उन्होंने कहा कि हालांकि इसको लेकर परदा तब ही उठेगा, जब इस मामले की जांच पूरी हो जाएगी.
मलिक ने इस मामले को लेकर कई सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक की तरफ से हो रही जांच का अभी खुलासा नहीं हुआ है, लेकिन रिजर्व बैंक स्विफ्ट प्रणाली पर नजर रखता है. केंद्रीय बैंक देश के बाहर बैंकों की शाखाओं पर भी नजर रखता है. ऐसे में क्यों नहीं आरबीआई की पकड़ में यह चूक आई. उन्होंने कहा कि इन सब हालातों को देखने से पता लगता है कि कहीं-न-कहीं बड़ी चूक जरूर हुई है. ये तो साफ है कि इस काम को चंद लोगों ने नहीं किया है, इसमें कई लोगों की मिलीभगत है. जो अलग-अलग स्तर पर इस मामले में मिले हुए हैं.
विपिन ने बताया कि पंजाब नेशनल बैंक में Finacle नाम का सॉफ्टवेयर इस्तेमाल किया जाता है. उन्होंने कहा कि मेरे ख्याल से यह सॉफ्टवेयर इंफोसिस या विप्रो ने लगाया है. इसमें दो चीजें आती हैं- एक, कोर बैकिंग सिस्टम (CBS) और SWIFT. ये दोनों चीजें एक-दूसरे से जुड़ी होती हैं. अगर SWIFT सीबीएस से कनेक्ट हो जाए, तो इसके जरिये सारी डिटेल्स मिल सकती हैं.
इस डिटेल में यह साफ पता चल जाता है कि आखिर क्लाइंट कौन है. उसकी लिमिट क्या है. क्लाइंट ने बाकी बैंकों से कितना पैसा लिया हुआ है. कितना बकाया है. कहीं डिफॉल्टर तो नहीं. इस सिस्टम में ऐसा होता है कि अगर कोई चीज लिमिट से बाहर हो, तो SWIFT उस पर एक्शन ही नहीं लेगी. उन्होंने कहा कि जब भी कोई फॉरेन ट्रांजैक्शन होता है, तो उसका ऑडिट होता है. इस मामले में वह ऑडिट कैसे रह गया?
आरबीआई के पूर्व निदेशक ने कहा कि जब नियमों का पालन नहीं किया जाता है, तो इससे उसमें चूक होने की आशंका बनी रहती है. ऐसे में इस तरह की हेराफेरी की आशंका अपनेआप बढ़ जाती है. इस मामले में साफ नजर आता है कि बैंक कर्मचारियों ने नियमों की अनदेखी की है.