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कविता: 'मां' मोम की तरह जलती ही जा रही है

'मां' पर कितना भी लिख दिया जाए, नाकाफी ही है. कई नामचीन शायरों ने मां पर बेहद खूबसूरत और हर दौर में मौजू बने रहने वाले शेर कहे हैं. नामचीन शायरों के अलावा आम लोग भी जब-तब दुनिया के इस मुकद्दस रिश्ते के पर लिखते रहते हैं. ऐसी ही एक कविता हमें आज तक के पाठक शैलेंद्र कपिल ने इलाहाबाद से लिख भेजी है.

शैलेंद्र कपिल शैलेंद्र कपिल
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 18 अगस्त 2014,
  • अपडेटेड 4:08 PM IST

'मां' पर कितना भी लिख दिया जाए, नाकाफी ही है. कई नामचीन शायरों ने मां पर बेहद खूबसूरत और हर दौर में मौजू बने रहने वाले शेर कहे हैं. नामचीन शायरों के अलावा आम लोग भी जब-तब दुनिया के इस मुकद्दस रिश्ते के पर लिखते रहते हैं. ऐसी ही एक कविता हमें आज तक के पाठक शैलेंद्र कपिल ने इलाहाबाद से लिख भेजी है, जो पेशे से रेलवे में मुख्य मालभाड़ा यातायात प्रबंधक हैं.

पढ़िए मां पर लिखी गई यह कविता

मां तेरी याद आ रही है
प्रकाश देते देते मोम की तरह तब जलती ही जा रही है
स्मृति तेरी आंखों में बार-बार आ रही है
अनुशासन की प्रतिबद्धता बेशुमार छा रही है

परिवार में रहकर एकता की गूंज गा रही है
बचत की संवेदना दिलो-दिमाग पर छा रही है
इंतजार की मुस्कान तरोताजा किए जा रही है
रूठने की अदा झकझोर करती जा रही है

संवेदनाओं से भरपूर पारियां घर करती जा रही हैं
झूठ को छिपाने की अदाएं सत्य का बोध करा रही हैं
हर हाल में मुस्कान, यथार्थ के बोझ को हल्का कर रही हैं
हर पल की पहचान दिनों-दिन सुना रही हैं
परंपराओं का बंधन वहन कर गिना रही हैं

चुपचाप एक कोने में भी प्यार ही प्यार लुटा रही हैं
हस्तक्षेप को दरकिनार, परिवार में एकजुटता ला रही हैं
सुबह से शाम, दिन और रात, अपना धर्म निभा रही हैं
कैसे भूलूं, तुझे मैं, तेरी हर बात याद आती जा रही है
लोग कैसे भूल जाते हैं, यह सोच मुझे सता रही है
 
क्या होगा परिवार का, समाज का
यह उलझन, उलझी ही जा रही है
हर पल है, तू दिल में, आत्मविश्वास दिला रही है
त्याग से ओत-प्रोत, तेरी सादगी, अब समझ में आ रही है
मूर्ख बना रहा मैं अब तक, पश्चाताप की घड़ी आ रही है
हर पल जिंदा रहने की, शक्ति तेरी तस्वीर दिला रही है
पिता के संग सदा रहो, मनोकामना अभिव्यक्त करता हूं
निर्वाह करूंगा माता-पिता का धर्म
बहन भाइयों को लेकर फिर मैं आपका स्मरण करता हूं.

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