
मुंबई की सड़क पर सब्जी बेचते-बचते छगन भुजबल कब महाराष्ट्र के कद्दावर नेता बन गए, ये शायद किसी ‘सक्सेस स्टोरी’ से कम नही है. मुंबई के माझगांव में शिवसेना के शाखा प्रमुख से लेकर महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री तक का सफर, राजनीति में यशस्वी होने की कोशिश करने वाले किसी भी राजनीतिक कार्यकर्ता के लिए सीखने लायक है.
महाराष्ट्र के दो बड़े नेता शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे और मराठा स्ट्रॉन्गमैन शरद पवार दोनों के साथ नजदीकी से काम करने का अनुभव महाराष्ट्र में शायद ही किसी को मिला होगा. अपनी बात मनवाने के लिए जरूरत पड़ने पर इन दोनों नेताओं को अपना बल दिखाने से भुजबल कभी नहीं चूके. उन्होंने शिवसेना तब छोड़ी जब पार्टी की दबंगाई चरम पर थी और बाल ठाकरे के नाम से बड़े-बड़े कांपते थे, वैसे ही उन्होंने तब एनसीपी का रास्ता चुना जब ये माना जा रहा था की अगर वो कांग्रेस में रहते तो शायद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनने का मौका उन्हें मिलता.
अपनी शर्तों पर की राजनीति
भुजबल ने राजनीति अपनी शर्तों पर की. उसके लिए जरूरी निडरता उनमें थी, लेकिन कई बार ये निडरता नेता को बेपरवाह बना देती है और नेता का पतन शुरु होता है. छगन भुजबल का
उदाहरण इस के लिए दिया जाएगा. इस वक्त वो महाराष्ट्र की राजनीति के पहले इतने बड़े नेता होंगे, जिन्हें भ्रष्टाचार के आरोप में सलांखो के पीछे जाना पड़ा हो. उनके नजदीकी कहते हैं ये
नौबत उनकी बेपरवाही ले आई है.
घोटालों में फंसता गया भुजबल परिवार
सन 2003–04 में जब भुजबल अपने करियर के चरम पर थे, उपमुख्यमंत्री होते हुए वो एनसीपी के महाराष्ट्र में मुखिया रहे. पार्टी में शरद पवार के बाद उनकी बात मानी जाती, पवार के
सिपाहसालार के रूप में कांग्रेस भी उनसे बच कर रहती और विलासराव देशमुख के होते हुए भी वो महाराष्ट्र की कांग्रेस-एनसीपी सरकार का चेहरा बने हुए थे. महज एक साल पहले शिवसेना की
सरकार गिराने की कोशिश भुजबल के नेतृत्व में असफल कर दी गई थी और सब कुछ ठीक चल रहा था. ऐसे में तेलगी स्कैम आया. देखते-देखते स्कैम की चपेट में भुजबल परिवार भी आ
गया. भतीजे समीर, जिसे प्रवर्तन निदेशालय पहले ही गिरफ्तार कर चुकी है, सरकार द्वारा गठित एसआईटी उनसे पूछताछ कर चुकी थी.
पार्टी ने कर लिया किनारा
अब बारी छगन भुजबल की थी. अपने करियर के चरम पर होते हुए भी एसआईटी जांच की आंच में पार्टी न फंस जाए, इस डर से उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. एसआईटी ने उनसे पूछताछ की
लेकिन मामला सीबीआई के पास जाने के बाद छगन भुजबल और उनके भतीजे समीर दोनों बाल-बाल बच गए. कहा जाता है कि भुजबल को तब लगा की मुश्किल वक्त में पार्टी उनके साथ
खड़ी नहीं है लेकिन उनके नेता शरद पवार ने उन्हें साफ कह दिया कि ऐसे मामलों मे फंसे तो उसका सामना अकेले ही करना पड़ता है, पार्टी एक हद के बाद किनारा ही कर लेती है.
शुरू की जाति की राजनीति
इस मामले से भुजबल ने एक सीख ली. अबतक खुलकर राजनीति करने वाले भुजबल अब जाती की राजनीति कर अपनी जमीन ढूढंने लगे. उन्हें लगा राजनीति में टीके रहना है, तो उनका
अपना समर्थकों का बेस होना चाहिए और वो तभी हो पाएगा जब वो ओबासी की राजनीति करेंगे. वो तेलगी स्कैम गिरफ्तारी से तो बचे लेकिन राजनीति ने हाशिये पर जाने के बाद उससे बाहर
निकलने के लिए उन्हें मराठा पार्टी में ओबीसी नेता बनने का रास्ता ही दिखाई दिया. कमाल की बात तो ये है कि शिवसेना में रहते मंडल आयोग का विरोध करने वाले भुजबल ओबीसी आरक्षण
के सबसे बड़े समर्थक बन गए.
बन गई भ्रष्टाचारी की छवि
पहले भी उन्होंने ये रास्ता चुना था, जब 1991 में शिवसेना में बाल ठाकरे ने उनके बजाए मनोहर जोशी को चुना, जिससे नाराज भुजबल ने अपना ओबीसी कार्ड निकाला था. हांलाकी उस वक्त
शरद पवार ने उन्हें तुरंत कांग्रेस में जगह दे दी थी लेकिन इस बार खुलकर जाती की राजनीति करने के बजाए उनके सामने कोई रास्ता नहीं बचा था. तो तेलगी स्कैम में वो बच तो निकले,
लेकिन उनकी राजनीति की दिशा बदल गई. हालांकि इस स्कैम ने उनकी छवि भी बदल दी. महाराष्ट्र में भ्रष्टाचार का वो चेहरा बन चुके थे. भुजबल के समर्थकों उम्मीदों थी कि वो अपनी छवि को बदलने के लिए कुछ करेंगे लेकिन उन्होंने उम्मीदों पर पानी फेर दिया.
आरोपों को लेकर बेपरवाह रहे भुजबल
दोबारा सत्ता में लौटने के बाद उनसे गृह मंत्रालय तो छिन गया लेकिन बदले में पीडब्ल्यूडी यानि लोकनिर्माण मंत्रालय मिला. मंत्रालय में गलत तरीके से तबादले और कॉन्ट्रैक्ट देने की
चर्चा भी तुरंत ही शुरु हुई. जब महाराष्ट्र सदन मामले में भुजबल के नजदीकी कॉन्ट्रैक्टर चमनकर को कॉन्ट्रैक्ट देने को लेकर पहली बार विरोधी शिवसेना ने आरोप लगाया, तो फिर आम आदमी
पार्टी और बाद में मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण तक ने गड़बड़ी की बात कही, लेकिन भुजबल इसे कैबिनेट का निर्णय बताकर डंटे रहे. एनसीपी के सूत्र कहते हैं कि तेलगी मामले से बाहर निकल
कर भुजबल बेपरवाग हो गए थे.
महाराष्ट्र सदन घोटाले में घिरे भुजबल
इसके बाद आरोपों की झड़ी लग गई. छगन भुजबल पर राज्य के एंटी करप्शन ब्यूरो ने महाराष्ट्र सदन घोटाले में करोड़ों के हेराफेरी का आरोप लगाया है. इस मामले में भुजबल के बेटे पंकज और भतीजे समीर के साथ 14 लोग आरोपी हैं. नए महाराष्ट्र सदन का निर्माण 100 करोड़ रुपये की लागत से किया गया था और तब महाराष्ट्र में कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन की सरकार थी. आरोप लगा कि कंस्ट्रक्शन के ठेके देने में गड़बड़ियां हुई थी. मनमाने तरीके से कंपनियों को ठेके दिए गए. साथ ही इस घोटाले से मिले धन को सफेद करने के लिए समीर भुजबल और पंकज ने तकरीबन 62 फर्जी कंपनियां बनाईं, बैंक अकाउंट खोले. विदेश में कोयले की खान और थर्मल पॉवर प्लांट दिखाया.
घोटालों पर घोटाले, फंसते गए छगन
मामला यहा नहीं रुका, इसके अलावा छगन भुजबल के खिलाफ मुंबई के कालीन विश्वविद्यालय लैंड स्कैम, मुंबई-नासिक टोल रोड सहित अलग-अलग 9 प्रोजेक्ट्स में अपने करीबियों को
ठेके देकर करीब 890 रुपये के घोटाले का भी आरोप है. इन्हीं सब आरोपों के आधार पर प्रवर्तन निदेशालय ने जून 2015 में छगन भुजबल, उनके बेटे पंकज और भतीजे समीर सहित 17 लोगों
के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट और फेमा के तहत दो एफआईआर दर्ज की थी और समीर भुजबल के बाद अब खुद छगन भुजबल की गिरफ्तारी हुई.
फर्जी कंपनियों का जाल तोड़ने की कोशिश
ईडी यानि प्रवर्तन निदेशालय के सूत्रों का कहना है कि जांच में निकल कर सामने आया है कि कोलकाता की कई फर्जी कंपनीयों ने समीर और पंकज भुजबल की कंपनियो में प्रीमियम दोनों
में शेयर खरिदे और ये पैसा नवी मुंबई में हेक्स वर्ल्ड नाम का हाउसिंग प्रोजेक्ट बनाने में लगाया गया. आमतौर पर कालाधन छुपाने के लिए ऐसी फर्जी कंपनियों का जाल बनाया जाता है,
लेकिन ईडी का दावा है ये जाल तोड़ने में वो कमयाब होंगे.
भुजबल पहले ही दावा कर रहे हैं कि इस बार वो इन आरोपों से साफ होकर बाहर निकलेंगे लेकिन शायद वो ये भूल रहे हैं कि तेलगी स्कैम से बाहर निकलने के बाद उन्हें खोया हुआ उपमुख्यमंत्री पद तो मिल गया लेकिन उनकी राजनीति और पार्टी पर पकड़ कमजोर हो गई थी. अब इस मामले से उस बची-कुची पकड़ को भी धक्का लग गया है. ओबीसी दांव तो पहले ही खेल चुके हैं और 69 साल की उम्र में नया दांव खेलने की ताकत कम ही रह गई है.