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पंजाब में चरमपंथियों से सियासी दलों की दोस्ती का पुराना इतिहास

नब्बे के दशक के मध्य से राज्य के चुनावों में खालिस्तान कभी चर्चा का बिंदु नहीं रहा लेकिन मुख्य धारा के राजनीतिक दलों पर लगातार अलगाववादियों में दिलचस्पी लेने के आरोप लगते रहे. राज्य में 2017 का चुनाव भी इससे अलग नहीं है.

अलगाववादी से सियासी दलों को परहेज नहीं अलगाववादी से सियासी दलों को परहेज नहीं
खुशदीप सहगल
  • अमृतसर,
  • 31 जनवरी 2017,
  • अपडेटेड 4:09 AM IST

पंजाब चुनाव की तारीख नजदीक आने के साथ ही राजनीतिक दलों ने खुद को राज्य के चरमपंथी इतिहास से जोड़ना शुरू कर दिया है. ये कोई असाधारण बात भी नहीं है. सिखों के हार्टलैंड में छोटे दुकानदार खुलेआम ऐसी टीशर्ट बेच रहे हैं जिन पर ऑपरेशन ब्लूस्टार में मारे गए चरमपंथी नेता जरनैल सिंह भिंडरावाले की तस्वीर छपी हुई है. हैं. यहां पर ऐसे केलैंडर भी हैं जिन पर अस्सी और नब्बे के दशकों में सुरक्षा ऑपरेशन्स में मारे गए सिख चरमपंथियों की तस्वीरें हैं. लेकिन ग्राहकों में भिंडरावाले के प्रतीकों की सबसे ज्यादा मांग है.

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अमृतसर में एक दुकानदार ने नाम नहीं खोलने की शर्त पर बताया कि चरमपंथियों के पोस्टर, टी-शर्ट और फोटो की मांग है इसलिए हम उन्हें बेच रहे हैं. अस्सी के दशक में पंजाब के चरमपंथ से जुड़े प्रतीकों को प्रतिबंधित कर दिया गया था. जिसके बाद करीब डेढ़ दशक पहले ये प्रतीक दोबारा दिखने शुरू हो गए थे. 2003 में जब शिरोमणि अकाली दल के नेता प्रकाश सिंह बादल को कांग्रेस के कैप्टन अमरिंदर सिंह से सत्ता गंवाए एक साल ही हुआ था, तब अमृतसर में सिख धार्मिक मामलों की सर्वोच्च संस्था अकाल तख्त ने भिंडरावाले को 'शहीद' घोषित किया था.

अकाल तख्त के प्रमुख को शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) की ओर से नियुक्त किया जाता है. एसजीपीसी का नियंत्रण तब प्रकाश सिंह बादल के शिरोमणि अकाली दल के पास था जो कि अब भी उन्हीं के पास है. खालिस्तानी प्रतीकों, नारों और 2003 में भिंडरवाले के शहीद दर्जे के बावजूद, सिख होमलैंड की मांग करने वालों को पंजाब में समर्थन मिलना बहुत पहले ही बंद हो गया था.

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नब्बे के दशक के मध्य से राज्य के चुनावों में खालिस्तान कभी चर्चा का बिंदु नहीं रहा लेकिन मुख्य धारा के राजनीतिक दलों पर लगातार अलगाववादियों में दिलचस्पी लेने के आरोप लगते रहे. राज्य में 2017 का चुनाव भी इससे अलग नहीं है.

पंजाब में इस बार आम आदमी पार्टी के जरिए चुनावी आगाज करने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर भी ऐसे ही आरोप लग रहे हैं. केजरीवाल पर विरोधी आरोप लगा रहे हैं कि वो प्रवासी सिखों में मौजूद खालिस्तान समर्थक तत्वों के संपर्क में हैं. अतीत में ऐसे ही आरोप और प्रत्यारोप बादल परिवार और कैप्टन अमरिंदर सिंह एक-दूसरे पर भी लगाते रहे हैं.

खालिस्तान के समर्थन में दो गुट

फिलहाल पंजाब में खालिस्तान की वकालत करने वाले दो गुट हैं. जिनमें से एक दल खालसा है जो भारतीय संविधान में निष्ठा नहीं होने की बात कहता है. दूसरा सिमरनजीत सिंह मान का शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) है, जो कई वर्षों से चुनावी राजनीति में संघर्ष कर रहा है.

शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) के रुख के विपरीत दल खालसा राज्य या राष्ट्रीय चुनावों में हिस्सा नहीं लेता. खालसा दल के प्रवक्ता कंवरपाल सिंह का कहना है कि हम भारतीय व्यवस्था के तहत चुनावों का बहिष्कार करते हैं . कंवरपाल सिंह के मुताबिक उनके गुट का किसी भी राजनीतिक दल से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संबंध नहीं है. कंवरपाल सिंह ने कहा कि हम स्वतंत्र, संप्रभु पंजाब के हिमायती हैं. हम चाहते हैं कि सिखों को आत्मनिर्णय का अधिकार दिया जाए.

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एसजीपीसी और अन्य धार्मिक संस्थाओं के कथित दुरुपयोग के लिए खालसा दल बादल परिवार को जिम्मेदार ठहराता है. साथ ही खुद को बादल परिवार का कड़ा विरोधी बताता है. खालसा दल की नजर में आम आदमी पार्टी भी अलग नहीं है. कंवरपाल सिंह ने कहा कि AAP पंजाब समर्थक या पंथ (सिख समुदाय) समर्थक नहीं है बल्कि राष्ट्रीय सोच वाली भारत समर्थक पार्टी है. हम एक दूसरे से बिल्कुल अलग है.

विदेश में बैठे हाशिए पर पहुंचे खालिस्तानी नेता भी खालसा दल की विचारधारा का ही समर्थन करते हैं. कई मौकों पर वो दौरे पर आने वाले भारतीय सिख नेताओं (चाहे वो किसी भी दल के हों) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करते भी दिखते हैं. उन्होंने बादल पिता-पुत्र से लेकर कैप्टन अमरिंदर सिंह और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, सभी का विरोध किया है.

मिसाल के तौर पर न्यूयॉर्क स्थित संस्था 'सिख फॉर जस्टिस' ने तो मनमोहन सिंह पर वित्त मंत्री रहते वक्त भारत में सिख समुदाय के खिलाफ मानवीय अपराधों को फंडिंग करने का आरोप भी लगाया. पंजाब में बादलों ने जिस तरह से धार्मिक मुद्दों को हैंडल किया उससे उन्हें अब उदारवादी सिखों के विरोध का भी सामना करना पड़ रहा है क्योंकि समुदाय के सर्वोच्च धार्मिक प्रशासन एसजीपीसी का नियंत्रण भी उन्हीं के पास है .

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अकाल तख्त पर भी सवाल

उदारवादी सिखों का प्रभावशाली खेमा उस वक्त हैरान रह गया था जब अकाल तख्त ने डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम को 2015 में माफ करने का ऐलान किया था. गुरमीत राम रहीम पर गुरु गोबिंद सिंह जैसी पोशाक पहनने की वजह से धार्मिक बेअदबी का आरोप था. कई सिख मानते हैं कि गुरमीत राम रहीम को माफी की पटकथा बादलों ने ही तैयार की थी. हालांकि बादल परिवार ने हमेशा ऐसे आरोपों का खंडन किया. सिखों के विरोध की वजह से अकाल तख्त को माफी देने का फैसला बाद में वापस लेना पड़ा था लेकिन तब तक इसकी संस्थागत साख पर आंच आ गई थी.

एसजीपीसी की एक वरिष्ठ सदस्य किरनजोत कौर का कहना है कि जो लोग अपनी आस्था को लेकर फिक्र करते हैं और अपनी धार्मिक संस्थाओं की प्रतिष्ठा की बहाली चाहते हैं, उन्हें चरमपंथी नहीं कहा जा सकता. ये उनका अधिकार है कि वो लोकतांत्रिक तरीके से काम करते हुए सिस्टम से अनियमितताओं को दूर करें.

न्यू जर्सी में 53 वर्षीय दिलवर सिंह सेखों गैस का सफल कारोबार चलाते हैं. वो 1996 में अमेरिका जाकर बस गए थे. सेखों खालिस्तान समर्थक हैं, लेकिन फिलहाल उनकी चिंता अलग राष्ट्र की 'राजनीतिक मांग' नहीं है बल्कि पंजाब की ड्रग समस्या है. सेखों का कहना है कि पंजाब का नौजवान संकट में है और ड्रग्स में डूबा है. ना ही शिरोमणि अकाली दल और ना ही कांग्रेस ने इस समस्या को कभी गंभीरता से लिया है.

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