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मोदी को घेरने के लिए तीसरे मोर्चे के नेताओं की मोर्चाबंदी

जनता परिवार के पुराने साथियों की सहमति के बाद नीतीश कुमार ने नरेंद्र मोदी पर निशान साधते हुए पूछा कि सरकार बनते ही मोदी क्यों भूल गए काले धन के आंकड़े.

पीयूष बबेले
  • नई दिल्ली,
  • 10 नवंबर 2014,
  • अपडेटेड 1:03 PM IST

लगातार जीत के जश्न में डूबे भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के राष्ट्रीय मुख्यालय 11 अशोक रोड से कुछ दूर यानी 16 अशोक रोड से एक नया खतरा पार्टी की ओर बढ़ता दिख रहा है. यहां समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के सरकारी बंगले पर गुरुपर्व के पावन मौके पर सियासी दिग्गज पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा, राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और जनता दल (यू) के अध्यक्ष शरद यादव दो घंटे से ज्यादा वक्त तक अपने सियासी वजूद पर माथापच्ची करते रहे. घुटे हुए नेताओं की इस महफिल में इंडियन नेशनल लोकदल की नुमाइंदगी युवा सांसद दुष्यंत चौटाला को करनी पड़ी क्योंकि उनके पिता अजय चौटाला और दादा ओमप्रकाश चौटाला, दोनों ही भ्रष्टाचार के मामले में जेल में बंद हैं.

बहरहाल मुलाकात के बाद सुशासन बाबू नीतीश कुमार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकास मॉडल को चुनौती देने के लिए मीडिया के सामने आए. उन्होंने कहा कि ये सभी पार्टियां मिलकर संसद में मोदी सरकार से हर चुनावी वादे पर सफाई मांगेंगी. मुलायम, लालू, शरद और देवेगौड़ा भीतर बैठे रहे और बाहर नीतीश ने घोषणा की, ‘‘हम सब लोगों ने साथ आने का फैसला किया है. यह कोई थर्ड फ्रंट जैसी चीज नहीं है, हम इससे आगे पूर्ण एकता के बारे में सोच रहे हैं.

लेकिन फिलहाल बातचीत शुरू ही हुई है.’’ यानी उन्होंने वी.पी. सिंह के जमाने के जनता दल जैसी पार्टी बनाने की मंशा जाहिर कर दी. यह उस अफसाने की पहली आधिकारिक घोषणा थी जिसकी तैयारी शरद यादव लोकसभा चुनाव की हार के बाद से कर रहे थे और जिसकी शुरुआत लालू-नीतीश की दोस्ती की दूसरी पारी से हुई थी. इंडिया टुडे ने अपने 29 अक्तूबर के अंक में बताया भी था कि शरद यादव इस बार गठबंधन नहीं, बल्कि वी.पी. सिंह के जनता दल जैसी राष्ट्रीय पार्टी के बारे में सोच रहे हैं.

मोदी को उन्हीं के शब्दबाणों से बींधते हुए नीतीश ने पूछा कि चुनाव में हर आदमी को काले धन में से 15 लाख रु. देने का वादा करने वाले मोदी अब काले धन के आंकड़े क्यों भूलने लगे हैं? मोदी के सबसे चहेते वोट बैंक यानी युवाओं को निशाना बनाते हुए संसद में यह भी पूछा जाएगा कि चुनाव में करोड़ों युवाओं को रोजगार देने का वादा करने वाली बीजेपी ने आखिर क्यों सरकारी नियुक्तियों पर साल भर के लिए रोक लगा दी है?

उन्होंने पूछा कि चुनाव में तो कहा गया था, किसानों को फसल की लागत का डेढ़ गुना दाम दिलाया जाएगा लेकिन अब तो सरकार ने फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में मामूली बढ़ोतरी कर पूरी तरह किसान विरोधी रुख अपना लिया है.

मतलब, कांग्रेस की चुप्पी के बीच लगातार उत्सव के माहौल में झूम रही मोदी सरकार को पहली बाद संसद में विपक्ष के कुछ कड़े सवालों का सामना करना पड़ेगा. हालांकि बिहार बीजेपी के वरिष्ठ नेता और गठबंधन सरकार में नीतीश के नायब रहे सुशील कुमार मोदी पलटवार करते हैं, ‘‘गठबंधन हो भी गया तो नया क्या होगा?

बिहार में तो जेडी(यू) और आरजेडी पहले ही एक साथ हैं.’’ राष्ट्रीय परिदृश्य पर किसी तरह की चुनौती के सवाल पर उनका कहना था कि ये सारी पार्टियां अलग-अलग राज्यों में हैं, इनमें से कोई पार्टी दूसरी पार्टी से गठजोड़ कर उसके वोट बैंक में इजाफा नहीं कर सकती. उन्होंने दो टूक लहजे में कहा, ‘‘जब चुनाव होंगे तो इन ख्याली पुलावों की हकीकत सामने आ जाएगी.’’ वैसे यही दावा तो नीतीश भी कर रहे हैं.

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