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कार्यक्रम में नहीं पहुंचे राजनाथ तो... गांधी के नाम पर हुई राजनीति

महात्मा गांधी के चम्पारण यात्रा के 100वें साल के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम में जमकर राजनीति हुई. इस कार्यक्रम में गृहमंत्री राजनाथ सिंह को भी आमंत्रित किया गया था लेकिन ऐन वक्त पर वो नहीं आए साथ ही एनडीए के अन्य नेताओं ने भी इस कार्यक्रम का बहिष्कार किया.

पटना में एक सम्मान समारोह के दौरान राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने स्वतंत्रता सेनानियों का सम्मान क पटना में एक सम्मान समारोह के दौरान राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने स्वतंत्रता सेनानियों का सम्मान क
सुजीत झा
  • पटना,
  • 18 अप्रैल 2017,
  • अपडेटेड 8:58 AM IST

महात्मा गांधी के चम्पारण यात्रा के 100वें साल के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम में जमकर राजनीति हुई. इस कार्यक्रम में गृहमंत्री राजनाथ सिंह को भी आमंत्रित किया गया था लेकिन ऐन वक्त पर वो नहीं आए साथ ही एनडीए के अन्य नेताओं ने भी इस कार्यक्रम का बहिष्कार किया. इस बहिष्कार के पीछे की वजह एक तो ये बताई गई कि मंच पर आरजेडी अध्य़क्ष लालू प्रसाद यादव को रखा गया है. एनडीए के नेताओं ने कहा कि एक सजाफ्ता कैदी के साथ वो कैसे मंच साझा कर सकते हैं. दूसरी वजह ये बताई गई कि इस कार्यक्रम में कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी को आमंत्रित किया गया तो बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को क्यों नहीं बुलाया गया. ये तमाम बातें हैं. हालांकि बाद में हम पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने कहा कि अगर वो एनडीए में नहीं रहते तो इस कार्यक्रम में जरूर हिस्सा लेते.

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यह कार्यक्रम गांधी के नाम पर आयोजित किया गया था जिसमें देश भर से आए स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मानित करना था. सम्मानित करने के लिए महामहिम राष्ट्रपति प्रणब मुख्रर्जी भी आए थे लेकिन राजनाथ सिंह के नहीं आने से यह कार्यक्रम पूरी तरह से राजनीतिक हो गया. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा, "जितने राजनैतिक दल हैं सबके साथ हमने बैठकर बात की थी. इसलिए कार्यक्रम में हमने सबको आमंत्रित किया, कोई पार्टी ऐसी नहीं जो बिहार में एक्टिव हो और उसे हमने आमंत्रित नहीं किया, लेकिन आना न आना उन पर निर्भर है."

उन्होंने कहा, "हमने केंद्रीय गृह मंत्री को भी आमंत्रित किया था. उन्होंने सहमति भी दे दी थी. गृह मंत्री को आमंत्रित करने का एक उद्देश्य ये भी था कि एक तो भारत सरकार के वरिष्ठ मंत्री हैं, प्रधानमंत्री के बाद वरिष्ठम मंत्री माने जाते हैं, और देश के गृह मंत्री भी हैं. स्वतंत्रता सेनानी सम्मान योजना की शुरूआत इंदिरा गांधी के दौर में किया गया वो गृह मंत्रालय के द्वारा देखा जाता है. हमने आमंत्रण दे दिया था सहमति मिल गयी थी, लेकिन अंतिम मौके पर वो नहीं आये."

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नीतीश कुमार ने कहा, "दलगत भाव से ऊपर उठकर सबको को आमंत्रित किया, लेकिन जो भी आये नहीं भी आये मुझे कोई शिकायत नहीं है. जो भी आये मैं उनका स्वागत करता हूं. यह कोई राजनैतिक उद्देश्य से आयोजित कार्यक्रम नहीं है. ये चंपारण के शताब्दी वर्ष के मौके पर राज्य के द्वारा आयोजित कार्यक्रम है. हमें आजादी नहीं मिलती तो जनता चुनकर अपने प्रतिनिधियों की सरकार नहीं बनाती. इसको मैं अपना दायित्व मानता हूं. अगर बिहार की सरकार इस तरह का कार्यक्रम न करे तो सरकार अपने कर्तव्य को लेकर जागृत नहीं है. हमने देश भर के लोगों को आमंत्रित किया. हम लोगों ने प्रयत्न किया है कि उन लोगों की उम्र ज्यादा है इसलिए हर तरह का ख्याल रखा गया है. मैं तो ये आयोजन करके अपने गठबंधन सरकार का सौभाग्य मानता हूं."

लालू ने बीजेपी पर साधा निशाना 

दूसरी तरफ आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने इस पूरे कार्यक्रम को और राजनीतिक करते हुए कहा, "नीतीश कुमार कुर्सी पर हैं इसलिए बोलने से परहेज करते हैं लेकिन मुझे कोई परहेज नहीं है."

उन्होंने बीजेपी पर सीधा हमला करते हुए कहा कि जिनका देश की आजादी में कोई योगदान नहीं है वो दावेदार बने हुए हैं. उन्होंने कहा कि यहां संविधान बदलने की बात हो रही है आरक्षण खत्म करने की बात हो रही है मैं सब जानता हूं. कट्टरपंथ के नाम पर शासन कर देश को बांटना चाहती है बीजेपी.

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सेनानियों को राजनीति रास न आई

समारोह में आए स्वतंत्रता सेनानी नेताओं के इस तेवर से हैरान थे. उन्हें यह बिल्कुल अच्छा नहीं लगा कि गांधी के नाम पर आयोजित कार्यक्रम में राजनीति हो. महात्मा गांधी ने चम्पारण की यात्रा कर जब सत्याग्रह किया था तब उसमें राजनीतिक दलों को बिल्कुल स्थान नहीं दिया था. यहां तक कि कांग्रेस के नेता भी दल की हैसियत से इसमें हिस्सा नहीं ले सकते थे लेकिन कार्यक्रम में ये सब देखकर उन्हें अच्छा नहीं लग रहा था.

सेनानियों ने कहा कि जब बेईमान नेता गांधी की दुहाई देते हैं तो बहुत खराब लगता है. हांलाकि सभी सेनानियों ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की व्यवस्था की तरीफ जरूर की.

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