
उत्तर भारत में वायु प्रदूषण गर्भ में पल रहे बच्चों के लिए खतरनाक साबित हो रहा है. 'अर्ली लाइफ एक्सपोजर टू आउटडोर एयर पॉल्यूशन : इफेक्ट ऑन चाइल्ड हेल्थ इन इंडिया' शीर्षक से आइआइटी दिल्ली में हुए एक अध्ययन में पाया गया कि पीएम 2.5 के कारण गर्भ में पल रहे बच्चों का विकास प्रभावित हो रहा है. पीएम 2.5 के कारण शुरुआती तीन महीने में भ्रूण की लंबाई 7.9 प्रतिशत और वजन 6.7 प्रतिशत कम हो रही है. भारत में भ्रूण के विकास और प्रदूषण के बीच सहसंबंध का पहली बार किसी वैज्ञानिक तरह से आंकलन किया गया है.
यह अध्ययन आइआइटी दिल्ली के कुनाल बाली, साग्निक डे और सौगरांग्शु चौधरी की मदद से भारतीय सांख्यकीय संस्थान की प्राची सिंह ने किया है.
अध्ययन के अनुसार भ्रूण के विकास में वायु प्रदूषण के कारण आने वाली बाधा की वजह से बच्चे भविष्य में बौने और कम विकसित रह जाते हैं. इतना ही नहीं जीवनभर उन्हें सेहत संबंधी न जाने कितनी बीमारियों से जूझना पड़ता है.
भ्रूण के विकास का स्तर ही भविष्य में मत्युदर, बीमारियों का फैलाव, बच्चों का स्वास्थ्य, क्षमता और संभावित आय निर्धारित होती है. बच्चों के अलावा गर्भवती मां भी वायु प्रदूषण के चलते सांस की बीमारियों से पीड़ित होती है जिससे भ्रूण का विकास प्रभावित होता है.
अध्ययन के लिए एक लाख 80 हजार बच्चों के नमूने लिए गए. स्टंटिंग अथवा उम्र से अनुसार लंबाई में कमी सकल घरेलू उत्पाद को प्रभावित करती है. अध्ययन में पाया गया कि वायु प्रदूषण से होने वाली स्टंटिंग से सकल घरेलू उत्पाद में 0.18 प्रतिशत की गिरावट आती है. अगर भारत से स्टंटिंग पूरी तरह खत्म कर दी जाए तो सकल घरेलू उत्पाद में 10 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है.
स्टंटिंग मुख्य रूप से जन्म के दो साल बाद पता चलती है और इसके प्रभाव मुख्यत: अपरिवर्तनीय रहते हैं. स्टंटिंग के दुष्परिणाम दिमाग के अल्प विकास, मानसिक और सीखने की क्षमता में कमी, बचपन में पढ़ाई में खराब प्रदर्शन के रूप में दिखाई देते हैं. अध्ययन के अनुसार, भारत में आउटडोर प्रदूषण बहुत से स्थानों पर सुरक्षित मानकों से अधिक है. आउटडोर प्रदूषण पड़ोस में बायोमास दहन से प्रभावित होता है और यह बच्चों के विकास संकेतकों पर असर डालता है.
अध्ययन में पाया गया कि वायु प्रदूषण और गरीबी का निकट संबंध है. प्रदूषण गरीब बच्चों के स्वास्थ्य पर बेहद बुरा प्रभाव डालता है. गरीब परिवारों के बच्चों का बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं से महरूम रहना इसकी एक बड़ी वजह है. अध्ययन में यह भी पाया गया कि वायु प्रदूषण का नकारात्मक प्रभाव उत्तर भारतीय राज्यों तक ही सीमित है. गौरतलब है कि इन्हीं राज्यों में प्रदूषण का स्तर दक्षिण भारत के राज्यों की तुलना में अधिक है.
वायु प्रदूषण को रोकने के लिए जंगलों में लगने वाली आग का प्रभावी प्रबंधन किए जाने की जरूरत है. वायु प्रदूषण से निपटने के लिए प्रभावी नीतियों की जरूरत है. हालांकि अध्ययन में नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम को इस दिशा में उठाया गया अच्छा कदम बताया गया है.
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