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प्रणब के नागपुर दौरे पर सियासी हलचल, पक्ष और विरोध में पढ़ें 14 बयान

असम कांग्रेस के अध्यक्ष रिपुन बोरा ने कहा कि कांग्रेस पार्टी की विचारधारा धर्म निरपेक्षता की है, मेरा सवाल है कि आरएसएस जो कभी भी धर्म निरपेक्षता की विचारधारा का समर्थन नहीं करती है, इसलिए मैंने प्रणब मुखर्जी से अपील की है कि वो अपने फैसले पर दोबारा विचार करें.

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी
नंदलाल शर्मा
  • नागपुर/नई दिल्ली,
  • 07 जून 2018,
  • अपडेटेड 1:41 PM IST

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रम में जाने को लेकर सियासी हलचल मची हुई है. कांग्रेस नेता जहां प्रणब मुखर्जी से अपने फैसले पर विचार करने को कहते रहे हैं, वहीं संघ के जानकार कांग्रेस पर फासीवादी रवैया अपनाने का आरोप लगा रहे हैं.

प्रणब मुखर्जी गुरुवार 7 जून की शाम को नागपुर में संघ शिक्षा वर्ग को संबोधित करेंगे. पढ़िए इससे पहले विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के नेताओं ने संघ के कार्यक्रम में जाने पर क्या कहा.

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पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के RSS के कार्यक्रम में शामिल होने को लेकर पूर्व केंद्रीय वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि 'प्रणब मुखर्जी आरएसएस का निमंत्रण स्वीकार कर चुके हैं. ऐसे में इसकी चर्चा करनी ही बेकार है कि उन्हें उस कार्यक्रम में जाना चाहिए या नहीं. अगर मुझे निमंत्रण मिलता तो मैं उसे अस्वीकार कर देता. मगर अब जब वो निमंत्रण स्वीकार कर चुके हैं, तो उन्हें वहां जाना चाहिए और बताना चाहिए कि उनकी (संघ) विचारधारा में क्या गड़बड़ी है?'

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने खत लिखकर पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से RSS के कार्यक्रम में नहीं जाने की अपील की. पूर्व केंद्रीय मंत्री ने लिखा, 'इस कदम से प्रणब मुखर्जी के पूरे राजनीतिक जीवन पर एक प्रश्न चिह्न लग सकता है. उनके संघ मुख्यालय जाने का फैसला संघ की विचारधारा को मजबूती देने का काम कर सकता है.'

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बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने कहा, 'मैं प्रणब बाबू के फैसले से हैरान हूं. उन्होंने ही RSS के खतरे से आगाह किया था.'

पूर्व केंद्रीय मंत्री सीके जाफर शरीफ ने प्रणब मुखर्जी से कहा कि आपके जैसे कद्दावर नेता का चुनाव के पहले संघ के कार्यक्रम में जाना ठीक नहीं है.

गुजरात कांग्रेस के नेता अर्जुन मोढ़वाडिया ने कहा कि प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रम में नहीं जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि संघ एक ऐसी संस्था है जिसने सरदार पटेल के बयानों को तोड़ मरोड़ कर पेश किया है और भविष्य में प्रणब मुखर्जी के साथ भी ऐसा कर सकता है.

कांग्रेस नेता सुबोधकांत सहाय ने कहा कि प्रणब दा जा भी रहे हैं तो भी बहुत फर्क नहीं पड़ेगा. क्योंकि ये फैक्ट ऑफ लाइफ है कि आरएसएस है. फैक्ट ऑफ लाइफ है कि मोदी-आरएसएस है. फैक्ट ऑफ लाइफ है कि तड़ीपार बीजेपी का अध्यक्ष है.

प्रणब मुखर्जी की बेटी और कांग्रेस नेता शर्मिष्ठा मुखर्जी ने कहा, ‘‘आशा करती हूं कि प्रणब मुखर्जी को आज की घटना से इसका अहसास हो गया होगा कि बीजेपी का डर्टी ट्रिक्स विभाग किस तरह काम करता है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘यहां तक कि आरएसएस कभी यह कल्पना भी नहीं करेगा कि आप अपने भाषण में उनके विचारों का समर्थन करेंगे, लेकिन भाषण को भूला दिया जाएगा और तस्वीरें रह जाएंगी और इनको फर्जी बयानों के साथ फैलाया जाएगा.’’

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शर्मिष्ठा ने कहा, ‘‘आप नागपुर जाकर बीजेपी-आरएसएस को फर्जी खबरें गढ़ने, अफवाहें फैलाने और इनको किसी न किसी तरह विश्वसनीय बनाने की सुविधा मुहैया करा रहे हैं. और यह तो सिर्फ शुरुआत भर है.’’

एनसीपी के नेता माजिद मेनन ने कहा कि यह अच्छा होता कि अगर प्रणब मुखर्जी इस निमंत्रण को ठुकरा देते. लेकिन प्रणब दा का एक लंबा राजनीतिक करियर रहा है और वे देश के राष्ट्रपति रहे हैं. उन्हें भी अपने विचारों को संप्रेषित करने का अधिकार है. ठीक है वो करें. हम आशा करते हैं कि वो आरएसएस की विचारधारा के पक्ष में नहीं बोलेंगे.

असम कांग्रेस के अध्यक्ष रिपुन बोरा ने कहा कि कांग्रेस पार्टी की विचारधारा धर्म निरपेक्षता की है, मेरा सवाल है कि आरएसएस जो कभी भी धर्म निरपेक्षता की विचारधारा का समर्थन नहीं करती है, इसलिए मैंने प्रणब मुखर्जी से अपील की है कि वो अपने फैसले पर दोबारा विचार करें.

संघ के थिंक टैंक कहे जाने वाले मनमोहन वैद्य ने 6 जून को एक लेख लिखकर प्रणब के विरोध को कांग्रेस का बौद्धिक आतंकवाद करार दिया. वैद्य ने अपने लेख में लिखा, 'आरएसएस के कार्यक्रम में प्रणब मुखर्जी को बुलाए जाने पर एक खास राजनीतिक तबका विरोध कर रहा है, लेकिन संघ के किसी स्वयंसेवक ने प्रणब मुखर्जी को बुलाने का विरोध नहीं किया.'

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उन्होंने आगे कहा, 'एक कद्दावर नेता जो देश के पूर्व राष्ट्रपति हैं, उन पर जूनियर नेता सवाल उठा रहे हैं. विचारों का ये अंतर संवाद के भारतीय और गैर-भारतीय नजरिए की वजह से है. हम प्रणब दा के फैसले को स्वागत करते हैं. उन्होंने हतोत्साहित करने की तमाम कोशिशों को दरकिनार कर दिया. नागपुर में हमें उनके ज्ञानपूर्ण भाषण का बेसब्री से इंतजार है.'

आरएसएस के जानकार राकेश सिन्हा ने कहा, 'राहुल गांधी और सोनिया गांधी के आने के बाद कांग्रेस की संस्कृति में फासीवादी संस्कृति का आगमन हुआ है. फासीवाद की एक विशेषता होती है, कहां बोलें, क्या बोलें, कैसे बोलें... ये फासीवादी नेता निर्देशित करता है. आज कांग्रेस के बुद्धिजीवी यही कर रहे हैं, यह लोग प्रणब दा के भाषण की स्क्रिप्ट लिखने की कोशिश कर रहे हैं. ये न सिर्फ प्रणब दा का अपमान है, बल्कि ये लोकतांत्रिक संस्कृति और मर्यादा का अपमान है.'

आरएसएस प्रचारक इंद्रेश कुमार ने कहा कि कि डॉ. राजेंद्र प्रसाद, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, एपीजे अब्दुल कलाम और अब प्रणब मुखर्जी... सभी राष्ट्रपतियों में ये चार विशेष राष्ट्रपति गिने जाते हैं. इनको कोई ये नहीं कहता कि ये कांग्रेसी हैं. जब वह एक बार राष्ट्रपति बन गए तो वह किसी दल का नहीं रहा है. वह भारत के संविधान में भारत माता का हो गया.

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