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51 बुद्धिजीवियों का PM को खुला खत, रोहिंग्या पर वैश्विक ताकत की तरह खुद को करें पेश

उन्होंने म्यांमार में रोहिंग्या के खिलाफ हो रही हिंसा और अत्याचारों का हवाला देते हुए पीएम मोदी से अपील की कि उन्हें भारत में रहने दिया जाए.

पीएम मोदी (फाइल) पीएम मोदी (फाइल)
प्रज्ञा बाजपेयी/आशुतोष मिश्रा
  • नई दिल्ली,
  • 12 अक्टूबर 2017,
  • अपडेटेड 4:00 PM IST

रोहिंग्या शरणार्थी के मुद्दे पर देश की तमाम क्षेत्रों की मशहूर हस्तियों की तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक खुला खत लिखा गया है. इस खत में केंद्र सरकार से म्यांमार में जारी हिंसा के बीच रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस उनके देश नहीं भेजने की अपील की गई है.

इस खुले खत में म्यांमार में रोहिंग्या के खिलाफ हो रही हिंसा और अत्याचारों का हवाला देते हुए पीएम मोदी से अपील की गई कि उन्हें भारत में रहने दिया जाए.

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इस खत पर मशहूर वकील प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव, सांसद शशि थरूर, पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम, ऐक्टिविस्ट तीस्ता शीतलवाड़, पत्रकार करन थापर, सागरिका घोष, अभिनेत्री स्वरा भास्कर समेत कुल 51 मशहूर हस्तियों ने हस्ताक्षर किए हैं.

इसमें कहा गया है, "म्यांमार के रखाइन प्रांत में अमानवीय घटनाएं हो रही हैं. हमारा पड़ोसी देश भी बांग्लादेश करीब 400,000 शरणार्थियों की समस्याओं से जूझ रहा है. भारत सरकार ने 'ऑपरेशन इंसानियत' के तहत बांग्लादेश में रह रहे रोहिंग्या शरणार्थियों के लिए मदद की. हम सरकार के इस कदम का स्वागत करते हैं.

इस खत में कहा गया है कि ऐसे समय में जब इन राज्य हिंसा की आग में जल रहा है तो हिंसा की लहर को दबाने के लिए ज्यादा और त्वरित कदम उठाए जाने की जरूरत है. हम भारतीय नागरिक के तौर पर एकजुट होकर आपसे अपील करते हैं कि भारत इस मुद्दे पर नई और मजबूत सोच के साथ आए. एक उभरती हुई वैश्विक ताकत से ही ऐसी उम्मीद की जा सकती है. इस दृष्टिकोण में केवल रोहिंग्या मुसलमानों की समस्याओं पर ही ध्यान नहीं दिया जाए बल्कि म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ हिंसा पर भी विचार करे जिसने उन्हें अपने देश से भागने पर मजबूर किया.

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खत में तमाम बुद्धजीवियों की तरफ से कहा गया, हम भारत सरकार से उम्मीद करते हैं कि रोहिंग्या संकट पर वह एक वैश्विक शक्ति वाले नजरिए के साथ आए. रोहिंग्या मुसलमानों को उनके देश वापस भेजने का कदम ना केवल भारत के मानवतावादी सिद्धांतों और परंपराओं के खिलाफ होगा बल्कि अंतरराष्ट्रीय कानून के प्रति भारत की प्रतिबद्धता का भी उल्लंघन होगा.

इसमें यह भी कहा गया कि बेशक रोहिंग्या मुसलमानों के पास सुरक्षित और गरिमा के साथ अपने घर लौटने का अधिकार है लेकिन वर्तमान हालात में उनका देश लौटना बिल्कुल सही नहीं होगा. म्यांमार में जब तक हत्याओं, लूटपाट और हिंसा का दौर जारी है तब तक अंतरराष्ट्रीय कानून उन्हें भारत में रहने का अधिकार देता है. कई सिविल सोसायटी के सदस्य और यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग के उच्चायुक्त भी भारत से रोहिंग्या शरणार्थियों को बलपूर्वक उनके देश वापस नहीं भेजने की अपील की है.

इन 51 हस्तियों ने इस खत पर हस्ताक्षर किए हैं-

प्रशांत भूषण (वकील)

शशि थरूर (सांसद)

कामिनी जायसवाल वकील)

हर्ष मांडेर (ऐक्टिविस्ट)

केसी सिंह, (पूर्व भारतीय राजदूत)

जी. के. पिल्लई (पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री)

डी. पी त्रिपाठी (सांसद)

पी चिंदबरम (पूर्व केंद्रीय मंत्री)

राजू रामचंद्रन ( वकील)

मजीद मेमन (सांसद)

 करन थापर (पत्रकार)

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सागरिका घोष (पत्रकार)

अजय शुक्ला (भारतीय सेना के पूर्व अधिकारी)

मिलून कोठारी (

मनोज मित्तल (पत्रकार)

नुपुर बसु (पत्रकार)

निलंजन मुखोपाध्याय ( लेखक एवं पत्रकार)

योगेंद्र यादव (पॉलिटिकल साइंटिस्ट)

जॉन दयाल (ऐक्टिविस्ट)

तीस्ता शीतलवाड़ (पत्रकार, ऐक्टिविस्ट)

मिताली सारन (लेखिका, कॉलमनिस्ट)

रितु मेनन (ऐक्टिविस्ट)

फराह नकवी (लेखक, ऐक्टिविस्ट)

अरविंद नारायण (मानवाधिकार वकील)

सुधा भारद्वाज (ट्रेड यूनियनिस्ट)

सीड्रिक प्रकाश (ऐक्टिव्सट)

साइरस गुजदेर (बिजनेसमैन)

अनिल धआरकेर (पत्रकार)

रवि कुलकर्णी (वकील)

गुलाम पेश इमाम (बिजनेसमैन)

शकुंतला कुलकर्णी (कलाकार)

चित्रआ पालेकर (थिएटर कलाकार)

नंदन मूलस्ते (कंसल्टेंट)

जावेद आनंद (पत्रकार)

उर्वशी बूटालिया (लेखिका)

संजय राजौरा (पॉलिटिकल स्टैंड-अप)

प्रीतीश नंदी (पत्रकार)

प्रणंजय गुहा ठाकुर्ता (पत्रकार)

संजय काक (फिल्ममेकर)

गौरी गिल (कलाकार)

कंवर संधु (राजनेता)

राम रहमान (फोटोग्राफर)

अपूर्वानंद (ऐकैडमिक)

अनुराधआ चेनॉय (ऐकैडमिक)

लॉरेंस लियांग (वकील)

निवेदिता मेनन (ऐकैडमिक)

दिलीप सिमेन (ऐकैडमिक)

विजय रुक्मिनी रॉव (ऐक्टिविस्ट)

बीरज पटनायक (ऐक्टिविस्ट)

शोभा मथाई (एंटरप्रन्योर)

भारत का संविधान भी अनुच्छेद-21 में दिए गए जीवन जीने का अधिकार केवल नागरिकों को नहीं बल्कि हर व्यक्ति को प्रदान किया गया है इसलिए भारत सरकार का संवैधानिक कर्तव्य है कि वह रोहिंग्या शरणार्थियों की रक्षा करे.

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