
राष्ट्रपति आर एन कोविंद ने इन्सॉल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड 2016 में बदलाव करने के लिए केन्द्र सरकार द्वारा बुधवार को पेश किए गए अध्यादेश को मंजूरी दे दी है. केन्द्र सरकार अब अध्यादेश के जरिए बैंकरप्सी कोड में एक नया सेक्शन 29A और 235A जोड़ देगा.
अध्यादेश के जरिए जोड़े जा रहे इस नए सेक्शन के तहत प्रावधान किया गया है, जिसका असर उन चन्द लोगों, जिसमें विलफुल डिफॉल्टर (स्वेच्छा से दिवालिया हुए) भी शामिल हैं, और जिनके अकाउंट को एक साल या अधिक समय के लिए नॉन पर्फॉर्मिंग एसेट घोषित किया गया है. ऐसे लोग अब किसी तरह के समाधान की प्रक्रिया में शामिल नहीं किए जा सकते.
अध्यादेश के जरिए यह बदलाव बैंकरप्सी कोड के सेक्शन 2, 5, 25, 30, 35 और 240 में सेक्शन 29A और 235A. राष्ट्रपति से अध्यादेश की मंजूरी के बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने ट्वीट कर यह जानकारी दी.
गौरतलब है कि इससे पहले बिजनेस टुडे ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि इस अध्यादेश से विलफुल डिफॉल्टर और जिनका अकाउंट रिजर्व बैंक से एनपीए घोषित हुआ है या फिर कंपनी एक्ट के तहत प्रतिबंधित हुए कंपनी के डायरेक्टर उस कंपनी की नीलामी प्रक्रिया में शामिल नहीं हो सकते. हालांकि मौजूदा स्थिति में इस कानून का ज्यादा मतलब नहीं है क्योंकि देश में दिवालियापन के 12 प्रमुख मामलों में किसी भी प्रमोटर को डिफॉल्टर घोषित नहीं किया गया है.
गौरतलब है कि केन्द्र सरकार द्वारा अध्यादेश को मंजूरी दिए जाने के बाद जिंदल समूह के चेयरमैन और एमडी सज्जन जिंदल ने कहा कि ऐसे प्रावधान से विश्वसनीय समाधान की कोशिश को झटका लगेगा. केन्द्र सरकार ने बैंकरप्सी कोड दिसंबर 2016 से लागू किया था. इस कोड की मदद से केन्द्र सरकार देश में 147 बिलियन डॉलर के गंदे कर्ज की समस्या से निपटने की कोशिश कर रहा है. इसी के चलते केन्द्र सरकार ने सभी बैंकिंग संस्थाओं से कहा था कि वह कर्ज में फ्रॉड करने वालों को दुबारा अपनी गंदी संपत्ति को खरीदने का मौका न दे.
लिहाजा, अध्यादेश से स प्रावधान को करने के बाद अब केन्द्र सरकार आगामी शीतकालीन सत्र में विधेयक के जरिए कानून में बदलाव करने की पहल करेगी. केन्द्र सरकार द्वारा यह कदम कुछ रिपोर्ट के बाद उठाया गया है जहां दावा किया गया था कि दिवालिया प्रक्रिया से गुजर रही कुछ कंपनियों के डायरेक्टर और प्रमोटर अपनी संपत्ति को एक बार फिर खरीदने की तैयारी कर रहे हैं. ऐसी कंपनियों को बैंकों द्वारा जल्द नीलामी के लिए लाया जाना है और मौजूदा कानून उन्हें दुबारा संपत्ति खरीदने से नहीं रोक रही थी.
गौरतलब है कि देश में गंदे कर्ज से निपटने के लिए स्थापित की गई नैशनल कंपनी लॉ ट्राइब्यूनल (एनसीएलटी) के सामने 300 ऐसे मामले लंबित हैं जहां संपत्ति की नीलामी करके डूबे हुए कर्ज को वसूलने की प्रक्रिया की जानी है.