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आधुनिक हिंदी थियेटर के पितामह थे पृथ्वीराज कपूर

पृथ्वीराज कपूर के जन्मदिवस तीन नवंबर पर विशेषआधुनिक हिंदी थियेटर के पितामह पृथ्वीराज कपूर ने नाटकों के साथ ही सिनेमा क्षेत्र में भी अभिनय को नया मुकाम दिया और शहंशाह अकबर, सिकंदर आदि के किरदारों को निभाते हुए दर्शकों को ऐसा सम्मोहित किया कि सिनेप्रेमी आज भी उन भूमिकाओं से रोमांचित हो जाते हैं.

भाषा
  • नई दिल्‍ली,
  • 03 नवंबर 2010,
  • अपडेटेड 8:44 AM IST

पृथ्वीराज कपूर के जन्मदिवस तीन नवंबर पर विशेष
आधुनिक हिंदी थियेटर के पितामह पृथ्वीराज कपूर ने नाटकों के साथ ही सिनेमा क्षेत्र में भी अभिनय को नया मुकाम दिया और शहंशाह अकबर, सिकंदर आदि के किरदारों को निभाते हुए दर्शकों को ऐसा सम्मोहित किया कि सिनेप्रेमी आज भी उन भूमिकाओं से रोमांचित हो जाते हैं.

बहुचर्चित मुगल-ए-आजम और सोहराब मोदी की फिल्म सिकंदर में सिकंदर की भूमिका को जहां उन्होंने अमर बना दिया वहीं उन्होंने राजकपूर की फिल्म आवारा में जज के अलावा फिल्म कल आज और कल में तीन पीढियों के बीच के तनाव को झेल रहे वृद्ध की बेहतरीन भूमिका की.

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आकषर्क व्यक्तित्व और दमदार आवाज के धनी पृथ्वीराज के पिता उन्हें वकील बनाना चाहते थे. लेकिन पढ़ाई के दिनों में ही वह थियेटर की ओर आकषिर्त हुए और फिर उसी के हो गए. नाटकों से शुरू हुआ सफर फिल्मों में सक्रिय रहा.

उन्होंने नाटकों और फिल्मों दोनांे माध्यमों में समान रूप से कामयाबी हासिल की लेकिन उनका पहला प्यार थियेटर ही था. इसी लगाव के बीच उन्होंने 1944 में पृथ्वी थियेटर की स्थापना की. पृथ्वी थियेटर ने अगले 16 साल में दो हजार से अधिक नाट्य प्रस्तुतियां की. अधिकतर नाट्य प्रस्तुतियों में पृथ्वीराज कपूर ने महत्वपूर्ण भूमिकाएं कीं.

उन दिनों थियेटर पर पारसी प्रभाव अधिक था, लेकिन पृथ्वीराज कपूर ने पृथ्वी थियेटर के जरिए पहली बार सही मायने में आधुनिक थियेटर की धारणा को साकार किया. जब स्टेज पर पृथ्वीराज की भारी भरकम आवाज गूंजती तो दर्शक मंत्रमुग्ध रह जाते. पृथ्वी थियेटर उनके तीन पुत्रों के अलावा कई कलाकारों के लिए अभिनय संस्थान साबित हुआ जो बाद के दिनों में थियेटर और फिल्मों के सफल कलाकार साबित हुए. पृथ्वी थियेटर के नाटकों में यथार्थवाद और आदर्शवाद पर विशेष जोर दिया जाता था. इसके साथ ही सामाजिक जागरूकता, देशभक्ति और मानवीयता जैसे पक्षों पर भी विशेष ध्यान दिया जाता था. उनके प्रमुख नाटकों में दीपार, पठान, किसान, आहुति आदि शामिल हैं.

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फिल्मों में वह टॉकी (बोलती फिल्में) दौर से पहले से ही सक्रिय थे. लेकिन उन्हें असली पहचान पहली बोलती फिल्म आलमआरा से मिली. 1931 में प्रदर्शित इस फिल्म में वह एक महत्वपूर्ण भूमिका में थे. इस फिल्म की कामयाबी ने उनके कदम हिंदी सिनेजगत में जमा दिए. 1941 में प्रदर्शित सोहराब मोदी की फिल्म सिकंदर में उन्होंने महान शासक की भूमिका निभायी. अपने बेहतरीन अभिनय और रौबीली आवाज से उन्होंने इस किरदार को अमर कर दिया. बाद के दिनों में सिकंदर के किरदार को ध्यान में रखकर कई फिल्में बनीं. लेकिन पृथ्वीराज ने ऐसा मानक स्थापित कर दिया था कि अधिकतर भूमिकाएं उसी से प्रभावित नजर आयीं.

पृथ्वीराज कपूर ने बाद के दिनों में के आसिफ की फिल्म मुगल.ए.आजम में बादशाह अकबर की जीवंत भूमिका निभायी. इस फिल्म में उन्होंने एक बादशाह और एक पिता के बीच के अंर्तद्वंद्ध को बेहतरीन ढंग से जिया, जिसे देखते ही दर्शक मानो बंध से जाते हैं. नाटकों में सक्रिय रहने के बीच उन्होंने दर्जनों फिल्मों में अभिनय किया. उनकी चर्चित फिल्मों में विद्यापति, आनंदमठ, दहेज, परदेसी, रूस्तम सोहराब, राजकुमार आदि शामिल हैं. पृथ्वीराज को पद्मभूषण के अलावा मरणोपरांत दादा साहब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया.

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