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असफल शादी के बाद तलाक के मुद्दे पर हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 9 और 22 को चुनौती देते हुए दिल्ली हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है. इस एक्ट के अनुसार वैवाहिक विवाद के मामले में दंपति में से कोई भी एक कोर्ट में अर्जी दायर उसके साथी को वापस लाने और उसके साथ रहने के निर्देश के लिए आग्रह कर सकता है. अगर कोर्ट इससे संतुष्ट होती है तो वो दोनों के बीच समझौते के लिए कुछ दिन साथ रहने के आदेश को जारी कर सकता है.
याचिकाकर्ता का कहना है कि निजता के अधिकार के मद्देनजर किसी महिला या पुरुष को अपने साथी के साथ शारीरिक संबंध बनाने या साथ के लिए विवश नहीं किया जा सकता. ऐसे में इस एक्ट को असंवैधानिक घोषित किया जाना चाहिये. कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है ताकि सरकार का रुख साफ हो सके कि क्या वो किसी कानूनी बदलाव के लिए तैयार है. मामले की अगली सुनवाई 8 दिसंबर को होगी.
याचिका में बताया गया है कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने निजता के अधिकार को मूलभूत अधिकार के तौर पर मान्यता दी है. इस लिहाज़ से महिला या पुरुष की सहमति अब निजता के अधिकार के तहत आती है और ये मूलभूत अधिकार के दायरे में है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद महिला या पुरुष को शारीरिक संबंध या साथ रहने, संतान पैदा करने की सहमति देने के लिए किसी भी हाल मे मजबूर नहीं किया जा सकता.
याचिका इस बात पर जोर देती है कि वैवाहिक संबंध की बहाली का मतलब ही शादीशुदा जोड़े के बीच शारीरिक संबंध की बहाली है. इसके लिए कोई भी कानून किसी भी महिला या पुरुष को संबंध बनाने या साथ रहने के लिए मजबूर नहीं कर सकता और न ही इसको आधार बनाकर तलाक का आदेश दिया जा सकता है. कोई भी कानून यह नहीं पूछ सकता कि किसी शादीशुदा जोड़े के बीच शारीरिक संबंध क्यों नहीं है या कितने लंबे समय से नहीं है. इसके बारे में उनकी सहमति या राय पर भी सवाल नहीं किया जा सकता. 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने शादीशुदा जोड़े के बीच बिना किसी वाजिब कारण के शारीरिक संबंध न होने को मानसिक क्रूरता मानते हुए तलाक देने का आधार माना था.