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मनमानी फीस वसूल रहे हैं प्राइवेट मेडिकल कॉलेज, हॉस्टल में रहना भी किया अनिवार्य

छत्तीसगढ़ के तमाम निजी मेडिकल कॉलेजों ने इस बार नए सत्र के लिए डेढ़ से दो लाख रूपये तक फीस बढ़ा दी है. हालांकि, कॉलेजों में ट्यूशन फीस पहले जैसी ही है और लेकिन दूसरे टर्म की फीस बढ़ा दी गई है. मैनेजमेंट के साथ सरकारी कोटे की सीटों के लिए छात्रों को एक ही फीस देनी पड़ रही है.

फाइल फोटो। फाइल फोटो।
सुनील नामदेव
  • रायपुर,
  • 07 सितंबर 2017,
  • अपडेटेड 11:56 PM IST

छत्तीसगढ़ के मेडिकल कॉलेजों ने  MCI और सरकार के दिशा निर्देशों को नजरअंदाज करते हुए मनमानी फीस वसूलना शुरू कर दिया है. प्रदेश के आधा दर्जन निजी मेडिकल कॉलेजों ने फीस में दो लाख से ज्यादा की बढ़ोतरी कर दी है. एक मुश्त अधिक फीस बढ़ाने से छात्र और अभिभावक दोनों मुश्किल में है. फीस में हुए बढ़ोतरी की वजह से अभिभावकों को फीस के लिए मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है और वहीं छात्र नियम विरुद्ध फीस बढ़ोतरी को लेकर मैनेजमेंट से बहस कर रहे हैं. हालांकि, अभी तक फीस बढ़ोतरी को लेकर कोई भी राहत नहीं दी गई है.

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बता दें कि छत्तीसगढ़ के तमाम निजी मेडिकल कॉलेजों ने इस बार नए सत्र के लिए डेढ़ से दो लाख रूपये तक फीस बढ़ा दी है. हालांकि, कॉलेजों में ट्यूशन फीस पहले जैसी ही है और लेकिन दूसरे टर्म की फीस बढ़ा दी गई है. मैनेजमेंट के साथ सरकारी कोटे की सीटों के लिए छात्रों को एक ही फीस देनी पड़ रही है. मौजूदा शैक्षणिक सत्र 2017-18 में  कॉलेजों की फीस 7 लाख 30 हजार है, जो पिछले साल तक 5 लाख 87 हजार रूपये थी. छात्रों ने भारी भरकम फीस बढ़ाने की शिकायत चिकित्सा शिक्षा विभाग के अधिकारियों से की है.

आरोप है कि नीट (नेशनल इलिजबिलिटी कम इंट्रेस टेस्ट) के चलते मेडिकल कॉलेजों में डोनेशन का गोरखधंधा बंद हो गया है और आय श्रोत बढ़ाने के लिए निजी कॉलेजों ने इसका दूसरा रास्ता निकाला है. फीस विनियामक आयोग ने पिछले साल तीन साल के लिए फीस तय की थी. तब निजी कॉलेज ट्यूशन फीस के अलावा कॉशनमनी, प्रैक्टिकल व लाइब्रेरी फीस ले रहे थे.

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हॉस्टल में रहना अनिवार्य

नए सत्र के लिए इनके अलावा स्टूडेंट से आईडी कार्ड, लाइब्रेरी कार्ड, वेलफेयर, यूनीफार्म और एडमिशन फार्म फीस ली जा रही है. इसके अलावा हॉस्टल व मेस के लिए सवा लाख रूपये सालाना शुल्क तय किया गया है. यही नहीं हॉस्टल में रहना अनिवार्य भी कर दिया गया है और यह उस शहर के लिए भी लागू है. निजी कॉलेजों की इस मनमानी से छात्रों और अभिभावकों दोनों पर आर्थिक भार बढ़ गया है. अभिभावक और छात्र इसे औचित्यहीन बता रहे है और उनके मुताबिक जब हमारा घर है तो बच्चो को हॉस्टल में रहने के लिए क्यों बाध्य किया जा रहा है?

बैंक गारंटी की मुसीबत

वहीं अभिभावकों के लिए बैंक गारंटी मुसीबत बन गई है, इससे आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को मुश्किल का सामना करना पड़ सकता है. इस साल स्टूडेंट को बैंक गारंटी के रूप में एक साल की फीस जमा करनी होगी. यह प्रावधान  पालकों को भारी पड़ रहा है.

 

 

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