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IIMC को नये सपने देखने और उसे पूरा करने वाला डायरेक्टर चाहिए: प्रो. सिंह

देश के प्रमुख मीडिया संस्थानों में सबसे टॉप पर रखा जाता है भारतीय जनसंचार संस्थान यानी IIMC. इन दिनों यह संस्थान अपने नए डायरेक्टर के चुनाव को लेकर चर्चा में है.

Prof. C.P. Singh Prof. C.P. Singh
मेधा चावला
  • नई दि‍ल्ली,
  • 22 अक्टूबर 2015,
  • अपडेटेड 6:24 PM IST

देश के प्रमुख मीडिया संस्थानों में सबसे टॉप पर रखा जाता है भारतीय जनसंचार संस्थान यानी IIMC. इन दिनों यह संस्थान अपने नए डायरेक्टर के चुनाव को लेकर चर्चा में है. FTII के चेयरमैन पद की नियुक्त‍ि पर हुए विवाद और आने वाले समय में संचार के बदलते व महत्वपूर्ण होते रोल को देखते हुए इस पद पर किसी ऐसे व्यक्त‍ि को बैठाए जाने की उम्मीद की जा रही है जो हर लिहाज से संचार की भूमिका को समझता हो.

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वैसे यह चुनाव इसलिए भी अहम है, क्योंकि इसी डायरेक्टर के कार्यकाल में इस संस्थान के संचार विश्वविद्यालय में बदले जाने की संभावना है. इन तमाम पहलुओं के मद्देनजर इस संस्थान का डायरेक्टर किस आधार पर तय किया जाए, इसी पर हमसे विस्तार में बात की इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी के यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मास कम्यूनिकेशन के प्रोफेसर सी पी सिंह ने.

- देश के प्रमुख मीडिया संस्थान में जल्द ही नए डायरेक्टर की नियु‍क्ति होनी है. आप इस पद पर आसीन होने वाले शख्स में क्या खूबियां देखना चाहेंगे?
अक्सर ऐसे संस्थानों में डायरेक्टर बहुत दूर की सोच नहीं पाते और बस अपना कार्यकाल निपटा कर चल देते हैं. लेकिन मौजूदा दौर को देखते हुए हमें भारतीय जनसंचार संस्थान में कई गुणों वाला डायरेक्टर चाहिए. वह मीडिया इंडस्ट्री, एकेडमि‍क्स और प्रशासन तीनों से खुद ही तपकर निकला हो और ऊर्जावान होने के साथ-साथ देश  दुनिया में कहां क्या घटित हो रहा है, इस पर पैनी नजर रखता हो तभी वह देश के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के कम्यूनिकेशन प्रोफेशनल बनाने में सक्षम संस्था खड़ी कर पाएगा. सिर्फ प्रशासन और एकेडमि‍क्स या इंडस्ट्री वाला भविष्य की जरूरतों के लिहाज से शायद ही काम का साबित होगा. अब तक का अनुभव यही बताता है. 

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- आने वाले समय में IIMC को कम्यूनिकेशन यूनिवर्सिटी बनाए जाने पर विचार चल रहा है और हो सकता है कि यह इसी डायरेक्टर के कार्यकाल में हो जाए. ऐसे में डायरेक्टर से अपेक्षाएं और भी रहेंगी...
बिल्कुल. कुछ और कहने से पहले मैं चीन का उदाहरण देना चाहूंगा. चीन ने जो कम्यूनिकेशन यूनिवर्सिटी तैयार की है, वह वर्ल्ड बेस्ट है. इसका मॉडल चीन ने अपनी जरूरतों को देखते हुए तैयार किया है, जिसमें स्टूडेंट्स को इस तरह भी तैयार किया जाएगा कि वे आगे किस तरह चीन के छवि निर्माण में योगदान दे सकते हैं. हमारे यहां जो यह नया संचार विश्वविद्यालय बनेगा, वह आम विश्वविद्यालय से हटकर होगा. और डायरेक्टर की क्षमताओं का पैमाना भी इन्हीं चुनौतियों के आधार पर किया जाना चाहिए. भारत में अभी 50 से ज्यादा विश्वविद्यालयों में मास कम्यूनिकेशन पढ़ाया जाता है. IIMC में ही 80 विकासशील देशों के छात्र ट्रेनिंग के लिए आते हैं. ऐसे में सोचने वाली बात यह है कि नए विवि का मकसद तुरत-फुरत नौकरी के लिए तैयार रंगरूट पैदा करना होगा या फिर 10 से 15 साल बाद इंडस्ट्री व समाज की जरूरत और भारत के नए संदर्भों को देखते हुए जानकार देना! जाहिर है, हमें आज की जरूरत नहीं, आने वाले समय में स्थितियों को संभालने वाले विशेषज्ञ इस विश्वविद्यालय से निकालने होंगे. 

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- आपकी बात को हम यूं समझें कि हम स्ट्रैटिजी को लेकर कमजोर हैं...
बेशक. स्ट्रैटिजी को लेकर हम ज्यादा बड़ी सोच वाले नहीं है. संस्थान का मकसद सिर्फ कुछ नौकरी लायक पत्रकार पैदा करना हीं नहीं है बल्किी ऐसे प्रोफेशनल पैदा करना है जो समाज और मीडिया इंडस्ट्री की सिर्फ वर्तमान जरूरतों को पूरी करने तक अपने को सीमित न रखें और जिनके लिए कम्यूनि‍केशन का मतलब सिर्फ पत्रकारि‍ता न हो. भारत के लोग, भारत के लोगों से किस तरह बात करें कि कल को हम बेहतर नागरिक पैदा कर सकें... देश की तमाम विविधताओं को देखते हुए ही हमें इस विश्वविद्यालय का आधार रखना है. किस बात से देश की छवि बनेगी, किससे बिगड़ेगी, इंटरनेशनल स्तर पर कैसे देश का मजबूत पक्ष रखा जाए, ये सब इसी स्ट्रैटिजी का हिस्सा हैं.
सम्राट अशोक का उदाहरण देखें. उन्होंने उस समय उपलब्ध हर तरीके से अपना शांति संदेश ऐसे फैलाया कि सभी भूल गए कि कलिंग के युद्ध में हजारों लोगों की जान गई थी जिसके बाद सम्राट ने अहिंसा का रास्ता चुना था.
अमेरिका को देखें- दूसरे विश्व युद्ध के बाद वहां के पत्रकारों ने जो भी किया लेकिन कभी देश की छवि को खराब नहीं होने दिया. इराक पर हमला किया गया, इस तर्क पर कि वहां विश्व शांति को खतरा बनते खतरनाक हथियार हैं. लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा. फिर भी अमेरिका की किरकिरी नहीं हुई. यही कम्यूनिकेशन स्ट्रैटिजी का कमाल है, जिसमें हम पीछे हैं और इसी के एक्सपर्ट हमारी जरूरत हैं.

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- इस आधार पर नए डायरेक्टर से आप और क्या अपेक्षाएं रखते हैं?
छोटी चीजों से ऊपर उठकर हमें यह समझना होगा कि महज स्क‍िल और नॉलेज से भी काम नहीं बनेगा. तभी मैं कहता हूं कि नये डायरेक्टर को इंडस्ट्री और एकेडमी फिल्ड के अनुभव के साथ-साथ दूरदर्शी और शोध दृष्टिह संपन्न भी होना चाहिए. बस नाम का एक और डायरेक्टर वक्त की जरूरत नहीं है. वह दूरदर्शी हो, रिसर्च जानता हो और उसे देश-दुनिया का गहरा अनुभव भी हो. यानी इस पोस्ट के लिए हमें पांच बराबर शिखर वाला एक पहाड़ चाहिए, जो सिस्टम का शिकार न बने. वहीं वह स्टूडेंट्स को पत्रकारिता की मशीन न बनाएं, बल्क‍ि इससे हटकर संचार की ताकत को समझे और दूरदर्शिता के साथ देश की छवि को सुधारने का काम करें! नया डायरेक्टर ऐसा हो जो न सिर्फ बड़े सपने दिखाए बल्कि उसे पूरा करने का जज्बा भी रखे. वह तथ्य व सत्य को सामने लाने वाले विशेषज्ञ हमें दे. पिछले 50 साल में यहां से 80 देशों के पत्रकार निकले हैं. इनके साथ कनेक्शन बैठाना काम आ सकता है.

- कोर्स स्ट्रक्चर को लेकर आपकी क्या राय है?
मेरे हिसाब से तो IIMC में तीन स्तर पर कोर्स होने चाहिए - पहला स्किल लेवल के, दूसरे इन-सर्विस से जुड़े और तीसरे हाई लेवल स्ट्रैटिजिक रिसर्च. पहला स्तर प्रफेशनल कोर्स कराने को, दूसरे में जो लोग कम्यूनिकेशन लाइन में काम कर रहे हैं उनको और ट्रेनिंग दी जाए और तीसरे में नेशनल व इंटरनेशनल स्तर की रिसर्च कराई जाए. मौजूदा दौर में यहां बस पहले ही स्तर पर काम चल रहा है. वहीं टीचर्स को भी इंडस्ट्री की जरूरत पूरी करने की सोच से आगे बढ़ना होगा. उनको देश के साथ अपना सपना जोड़ना होगा. युवाओं के साथ चलने पर हमें खुद ही समझ आ जाएगा कि हमें कैसी कम्यूनिकेशन स्ट्रैटिजी की जरूरत है. यहां मैं डायरेक्टर से उम्मीद करता हूं कि वह ऊर्जावान होने के साथ ही सपने दिखाने वाला हो. सपने देखना ही आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त करता है. बहुत खतरनाक हो जाता है सपनों का मर जाना, इसलिए नया डायरेक्टर खतरनाक सपने खतरनाक तरीके से दिखाए और उनको पूरा करने का जज्बा भी रखे.

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- पिछले दिनों डायरेक्टर की उम्र का मुद्दा भी उठा. इसे 65 से घटाकर 60 साल कर दिया गया है. आप क्या कहेंगे?
मेरे हिसाब से तो यह सही है. IIMC एक नए विवि में बदलेगा. इसे ऐसे डायरेक्टर की जरूरत हो जो सीखने वाला हो, अपनी चलाने वाला न हो, फलेक्सबिल हो, चुनौती लेने वाला हो, समझौता नहीं करे, उसमें अनुभव के साथ जिजीविषा हो, कुछ कर गुजरने का जज्बा हो, वह पैशन हो जो संस्थान के साथ देश की छवि को बढ़ाए. वैसे विदेशों में यह उम्र सीमा 55 साल निर्धारित की गई है. वे मानते हैं कि इस पड़ाव तक लोग अपनी इंटेलीजेंस दे चुके होते हैं.

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